काहे को दुनिया बनाई... (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Oct 14 2020 5:18PM

बिजली नहीं आई, अंधेरा रहा और दिमाग कुछ भी करो न, करो न, करता रहा। बुज़ुर्ग कहते हैं कि ऊपर वाले ने प्यारी धरती, उजले मुखड़े बनाए जिन पर रंग बिरंगे डिज़ाईनर मास्क भी लग गए लेकिन उजले कहे जाने वाले इन मुखड़ों के पड़ोस में दिल तो जले, भुने, काले ही रहे।

पिछले कुछ महीनों से हम स्वीकार कर रहे हैं ज़िंदगी की असलियत भी स्वादिष्ट होती है। जीवन में दुःख ज़्यादा हैं, लेकिन हम विकासजी के साथ नाच, गाने, खाने पीने में मस्त रहे। कल रात बिजली गई तो कहीं बजता, ‘दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई, काहे को दुनिया बनाई’ कान में ऐसा पड़ा कि दुनिया बनाने वाले पर हैरानी होने लगी। किसी ज़माने में इस गीत के माध्यम से कई संजीदा सवाल ऊपरवाले से किए थे जिनके जवाब अभी तक किसी को भी नहीं मिले। दिमाग में, ‘जवाब जिनका नहीं वो सवाल होते हैं’, जैसी बातें भी आती रही। दुनिया में इतना कुछ होने के बावजूद ऊपरवाला अभी तक गुपचुप तमाशा देख रहा है, क्या हमें मान लेना पडेगा कि वास्तव में उसकी खुदाई यही है। वह संकेत देकर नीचेवालों को समझाता है, लेकिन नीचे वाले अपनी खोटी सोच के कारण, इशारे तो क्या थपेड़े भी नहीं समझते। आज का सच यह है कि इंसान ने विकास की हद कर दी मगर स्वयं मिट्टी का पुतला ही बना रहा। उगाऊ दिमाग मिला लेकिन कचरा ज्यादा उगाया। यह ऊपर वाले की ही गलती मानी जाएगी कि इतनी खूबसूरत सृष्टि रची लेकिन अगली गलती यह की, कुपात्र के हाथों में सेब जैसा आकर्षक व स्वादिष्ट फल सौंप दिया। ज्यादा बड़ी गलती यह की, उसे सेब खाने भी दिया।

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बिजली नहीं आई, अंधेरा रहा और दिमाग कुछ भी करो न, करो न, करता रहा। बुज़ुर्ग कहते हैं कि ऊपर वाले ने प्यारी धरती, उजले मुखड़े बनाए जिन पर रंग बिरंगे डिज़ाईनर मास्क भी लग गए लेकिन उजले कहे जाने वाले इन मुखड़ों के पड़ोस में दिल तो जले, भुने, काले ही रहे। यहाँ झूठी मुस्कुराहटें देते शातिर दिमाग एक दूसरे को खत्म करने को आतुर रहते हैं और शांति स्थापित करने की महंगी बैठकें करते हैं। इस अचरज भरी दुनिया में बाढ़ के मौसम में पानी बचाने की बात की जाती है। सुबह से शाम तक पानी नष्ट करते हैं और पानी बचाने के लिए भाषण, योजनाएं, बैठकें, जुलूस, प्रतियोगिताएं करते हैं लेकिन पानी बचाते नहीं। पिछले दिनों उन्होंने अपनी कागज़ी दीवार पर चढ़कर मित्रों को महान सन्देश दिया कि पानी बचाएं, एक दर्जन सुझाव भी बहा डाले और देशवासियों से भी सवाल पूछ डाला कि हम सब कब, अपने जीवन में पानी की हार्वेस्टिंग करना सीखेंगे। स्वाभाविक था इस उच्चकोटि पोस्ट पर उन्हें लाइक मिलने शुरू हो गए और तारीफ़ भी। बड़े अदब से उन्हें सूचित किया कि पानी की हार्वेस्टिंग करना तो ऊपरवाले का कर्तव्य है क्यूंकि उन्होंने ही दुनिया बनाई है। यह बात उन्हें पसंद नहीं आई लेकिन बात यही सही है, दुनिया ऊपरवाले ने बनाई तो यह उनकी ही ज़िम्मेदारी है कि दुनियावालों के राशन और पानी का प्रबंध भी करें।

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अगर यह दुनिया न बनाई होती तो कोई पंगा नहीं होता, न कोरोना होता न ही कोई दूसरा रोना होता। इतिहास गवाह है, मुफ्त में मिली इस सृष्टि में समझदार दुनिया वालों ने अपना काम बेहद कर्मठता, संजीदगी व ईमानदारी के साथ किया ही है। 

- संतोष उत्सुक

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