किसकी गलती से हुआ नुकसान (व्यंग्य)
बचे खुचे विपक्षी दल के नेताओं को भी काम मिल गया होता है। कोरोना से परेशान हो चुकी हर सरकार कह रही होती है कि विकास जारी रखो। चाय पकौड़े खाने का मन ज्यादा होता है लेकिन बारिश के मौसम में बैठकें भी करनी पड़ती है।
आइए बरसात के जाने के बाद बरसात की बातें करें। ऐसा माना जाता रहा है कि बरसात का मौसम जाते जाते भी बहुत कुछ बहा जाता है लेकिन गौर से देखें तो काफी कुछ रोक भी जाता है। जानबूझ कर बारिश के दौरान किए जा रहे कितने ही विकासात्मक कार्य न चाहते हुए भी रोकने पड़ते हैं। उच्च कोटि का रेत, बजरी जो काफी दूर नदियों से रात को अवैध माइनिंग कर निकाल कर लाया जाता है, अगर स्टोर न कर सको तो बह जाता है। अवैध ज़मीन पर फ़टाफ़ट बनाई जा रही संरचनाओं का निर्माण रुक जाता है। लोग टूटी हुई सड़कों, बन रही अधूरी सड़कों के वीडियो सोशल मीडिया पर डाल रहे होते हैं।
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बचे खुचे विपक्षी दल के नेताओं को भी काम मिल गया होता है। कोरोना से परेशान हो चुकी हर सरकार कह रही होती है कि विकास जारी रखो। चाय पकौड़े खाने का मन ज्यादा होता है लेकिन बारिश के मौसम में बैठकें भी करनी पड़ती है। मंत्रीजी मास्क उतार कर चीख चीख कर कहते रहते हैं मीटिंग तो करनी पड़ेगी। उनके सामने विपक्ष की कोई बिसात नहीं है लेकिन आने वाले चुनाव तो संभालने ही पड़ते हैं। हुआ यह कि पिछले दिनों की खतरनाक बरसात ने एक बहुत पुरानी ऐतिहासिक पुलिया बहा दी। यह पुलिया अंग्रेजों के ज़माने में बनाई गई थी जिसका चार साल पहले एक गोल किनारा टूट गया था लेकिन कोई भी इंजीनियर उसे ठीक न कर पाया था। पूरी तरह से अनदेखी के कारण पुरानी छोटी आकार की ईंटें उखड़ती गई और निरंतर ट्रैफिक के बोझ और विभागीय अनदेखी के कारण इस बार पुलिया काफी टूट गई। टूट कर बह जाने पर एक तकनीकी विशेषज्ञ ने समझाया कि इसमें अंग्रेजों की गलती है, उन्होंने पुलिया पक्की तो बनाई पर इतनी पक्की और टिकाऊ नहीं बनाई कि भविष्य में बढ़ते ट्रैफिक का बोझ सह सके। उन्हें सही अंदाज़ा लगा लेना चाहिए था और इस तरह से बनाना चाहिए था कि बार बार मरम्मत हो सके।
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दूसरी गलती अपनी मर्ज़ी से कहीं भी हो जाने वाली बारिश की रही। लोग इतना पूजा पाठ करते हैं, ऊपर वाले को चाहिए कि उनकी इच्छानुसार ही बारिश किया करे। लेकिन ऐसा ऊपर वाला करता नहीं और नीचे वालों का बहुत नुकसान होता है। संजीदा तरीके से आयोजित बैठक में यह प्रस्ताव पास किया गया कि स्थितिवश हम अंग्रेजों का भी कुछ नहीं कर सकते और कुदरती प्रकोप को तो भगवान भी नहीं रोक सकते। अब हम यही कर सकते हैं कि चाहे मौसम कैसा भी हो, सम्बंधित विभाग, मास्क लगाकर, हाथ धोकर, सेनिटाइजड माहौल में आपातकालीन बैठकें करें। वहां बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दें कि जितना भी नुकसान हुआ यह ऊपरवाले के कारण हुआ। इसलिए वक़्त बर्बाद न करते हुए मरम्मत के लिए अविलम्ब एस्टीमेट बनाए और विश्वस्त ठेकेदारों को यह काम दिलवाकर काम शुरू करा दिया जाए।
- संतोष उत्सुक
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