चीप दुनिया और चिप दुनिया (व्यंग्य)
केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय के अधीन में कार्य करने वाले राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉक्टर वल्लभ भाई ने कहा कि गाय के गोबर से तैयार की गई चिप से सेलफोन टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशन से बचा जा सकता है!
हाय रे भगवान! यह मेरे हाथों क्या हो गया? उपलियों की महिमा पहचाने बिना मैंने उन्हें अग्नि की भेंट कर दी। मुझ मुए को मौत न आयी ऐसा करते हुए! वे उपलियाँ नहीं सोने के टुकड़े थे। मेरे अमीर बनने का अलाउद्दीनी चिराग, मेरे जिगर के टुकड़े थे। अब पछताय होत क्या जब उपली बन गई राख! जली को उपली कहते हैं, बुझी को मुझसा मूरख कहते हैं। इतने बरसों में उपलियों ने जितना धुआँ न छोड़ा होगा, उतना तो मैं पिछले दो-तीन दिनों में छोड़ चुका हूँ। अब करूँ भी तो क्या करूँ? एक बार डाला हुआ वोट, जली हुई उपली और खोया हुआ मौका फिर कभी वापस नहीं आता। बशर्ते फिर से चुनाव में गोबर करने का मौका मिल नहीं जाता। कोरोना काल में दुनिया जितनी नीचे गिर सकती थी, गिरी। जितनी बेरोजगारी, भूखमरी, बदहाली देखना था, देखा। मृत्यु का डिस्को डांस भी खूब देखा। किंतु इन सबके बीच कुछ अद्भुत, अनोखा तथा आँखें फाड़ डालने वाली घटना घटी, तो वह था उपली चिप का आविष्कार। यह हमारे समय का विज्ञान के द्वारा प्रदान की गई अनोखी भेंट है– उपली चिप।
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केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय के अधीन में कार्य करने वाले राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉक्टर वल्लभ भाई ने कहा कि गाय के गोबर से तैयार की गई चिप से सेलफोन टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशन से बचा जा सकता है! अब वह दिन दूर नहीं जब वृक्षो रक्षति रक्षितः के बजाय उपली रक्षति रक्षितः कहना पड़ेगा। पहले हम गोबर की उपली बनाकर चूल्हे के मुँह में ठूस देते थे। बदले में मिलता था धुआँ और खांसी। देश पहले से धुआँ-धुआँ हैं और ऊपर से फोन पर कोरोना की खांसी अलग से। अगर हम वल्लभ जी की बात मानकर गोबर की चौकोर उपली बनाकर उसके सौ छोटे-छोटे चिप बना लेते तो सेलफोन के रेडिएशन के साथ-साथ स्वास्थ्य की सभी समस्याओं से निजात मिल जाती।
यह न जाने नोबल बाँटने वाले कहाँ मर गए हैं जो ऐन वक्त पर सो जाते हैं। अरे भाई! कोई उन्हें जगाएँ और बताएँ कि इतने दिनों से बेवकूफों में नोबल बाँटकर पुरस्कार का नाम बेड़ा गर्क कर रखा है। नोबल देना है तो उपली चिप आविष्कर्ता को दें! अगर वे नहीं मानते हैं तो इसके लिए हमें स्वीडन के मुख्यालय पर धरना, अनशन, भूख हड़ताल जो चाहे करना पड़े, पीछे नहीं हटना चाहिए। क्या दुनिया ने कभी उपली चिप देखी भी है! दुनिया चीप बनाती है। हम चिप बनाते हैं। अब हम चीप नहीं चिप हैं! वह भी उपली चिप!
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अब समय आ गया है कि हम अपनी हजारों साल पुरानी उपली कला को नया आयाम दें। पढ़ाई की डिग्रियाँ छोड़-छाड़कर चप्पे-चप्पे पर दीवार पर गोबर की उपली संस्कृति सजाएँ। गोबर से सनी हथेलियाँ न केवल हमारा भाग्य खोलेंगी बल्कि जात-पात, ऊँच-नीच, भाषा, लिंग भेद मिटाकर नवसमाजयुक्त उपली चिप बनाने में भी काम आयेंगी। हम इन चिपों का विदेश में आयात करेंगे। विदेशों में भारत की पर्यावरणीय चिंता का नया परचम लहरायेंगे। धरती की गरमी हो या फिर ओजोन परत के छेद– सभी समस्याओं का एकमात्र रामबाण इलाज होगा- उपली चिप। बहुत जल्द यू.एन.ओ. में बैठक आयोजित करेंगे। दुनिया को गोबर, गोबर से उपली और उपली से चिप बनाना सिखायेंगे। तब चीप दुनिया, चिप दुनिया कहलाने लगेगी।
-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त'
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