पार्किंग से जुड़े सुझाव (व्यंग्य)
संभव हो तो गाड़ी का नंबर थोडा बहुत वीआईपी लेने की कोशिश करें। खूब सारे पुलिस वालों को पटाकर रखें और जहां कैमरा नहीं लगे हैं वहां पार्क करें। एक दो छुटभैया नेताओं, पार्षद से संबंध गांठ कर रखें। उनके नाम, फोन नंबर रखें।
गाड़ी पार्क करना एक कला है। वह बात अलग है कि पार्किंग कई जगह झगड़ा, लड़ाई और पिटवाई करवा रही है। जिन जगहों पर पार्किंग है और चाहने वाले को मिल जाए तो वहां आनंद है लेकिन परेशानी वहां है जहां पार्किंग आम तौर पर उपलब्ध न हो और गाड़ी पार्क करनी हो। हमारे एक पार्किंग विशेषज्ञ मित्र ने कुछ सुझाव दिए हैं जो सभी के काम आ सकते हैं। इन सुझावों के साथ छोटी छोटी शर्तें यह हैं कि वक़्त आपके साथ हो, आपके नक्षत्र ठीक हों और व्यवस्था में जान पहचान हो।
संभव हो तो गाड़ी का नंबर थोडा बहुत वीआईपी लेने की कोशिश करें। खूब सारे पुलिस वालों को पटाकर रखें और जहां कैमरा नहीं लगे हैं वहां पार्क करें। एक दो छुटभैया नेताओं, पार्षद से संबंध गांठ कर रखें। उनके नाम, फोन नंबर रखें। हमेशा यह दिखावा करें कि आपकी, ‘बहुत ज़्यादा जान पहचान’ है लेकिन किसी को फोन कर तंग नहीं करते। बात न बने तो, ‘हम तो ऐसे ही हैं’ जैसा दृष्टिकोण बनाए रखें। यह भी कहते रहें कि पार्किंग नीति बनाना और पार्किंग उपलब्ध करवाना सरकार की ज़िम्मेदारी है। वैसे तो फुटपाथ या गलियों में गाड़ियां खड़ी करते ही हैं, आज हटवा दो, खबर छपवा दो, चालान कटवा दो यानी जो मर्ज़ी कर लो पार्किंग फिर वहीँ होने लगती हैं। इसलिए जब कहीं और जगह न मिले तो ऐसी जगह ढूंढकर अपनी गाड़ी फंसा दें।
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‘जहां जगह मिले पार्क कर दो’ फार्मूला जारी है इसलिए प्रशासन को हर कहीं पार्किंग फीस शुरू कर देनी चाहिए। नकद आमदनी, आम पब्लिक भी खुश। इस सन्दर्भ में सम्बंधित पार्षद को संजीदा, सक्रिय भूमिका करनी चाहिए ताकि उनकी वोटें सलामत रहें। पैदल चलने वालों का क्या है वो तो सदियों से रोते रहे हैं अब भी रोते रहेंगे। क्या फर्क पड़ता है। उनका जन्म गलत नक्षत्रों में हुआ है। प्रशासन को ठोस कदम उठाने की झूठी बातें करते रहना चाहिए लेकिन ठोस क्या हलके कदम भी नहीं उठाने चाहिए।
सरकारें कारों का निर्माण बंद नहीं करवा सकती न ही सार्वजनिक यातायात व्यवस्था विकसित कर सकती है। वाहनों पर कई तरह के शुल्क लगा और बढ़ा सकती है। वैसे अगर सार्वजनिक वाहनों में सफ़र करना सबके लिए आवश्यक हो जाए तो खूब सुधार हो सकता है, बहुत मज़ा आ सकता है। भेड़, बकरियां, घोड़े, गधे जैसे सामाजिक पशु, आदमी, इंसान और हैवान सब एक हो सकते हैं। समानता का लोकतंत्र बहुत ज्यादा मज़बूत हो सकता है। यह बात अलग है कि लोग अपने तरीके से लोकतंत्र मज़बूत कर रहे हैं। गैर चिन्हित स्थल, नो पार्किंग जोन, नो स्टॉपिंग जोन एवं कंट्रोल्ड पार्किंग में सहयोग न करके, कहीं भी किसी भी स्थल पर गाड़ी ले जाकर मनमानी गति से रेस लगाकर, दूसरों की गाड़ी में अपनी गाड़ी ठोककर, चालान करवाकर और शान से जुर्माना भर कर गर्व महसूस करते हैं। इसके लिए खूब सारी शाबासी के हक़दार हैं।
कुछ भी हो यह हमारा लोकतान्त्रिक अधिकार नियमित होना चाहिए कि हम गाडी कहीं भी पार्क करें। वैसे समय आ गया है अब वही व्यक्ति पैदल चलने के लिए अधिकृत होना चाहिए जिसे पंजीकृत डॉक्टर लिख कर दे। एक नायाब टिप और, पार्किंग के पचड़े में, कहीं भी कुछ हो जाए तो आठ दस बार ‘सॉरी’ बोलने को तैयार रहें।
- संतोष उत्सुक
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