हिंदी ने अपना दर्द कुछ इस तरह सुनाया (कविता)
युवा रचनाकार सनुज कुमार की कविता में जानिये किस प्रकार हम सिर्फ हिंदी दिवस पर ही अपनी मातृभाषा के प्रति गंभीर नजर आते हैं और बाकी दिन हमारे दिलोदिमाग पर अंग्रेजी ही हावी रहती है।
आज हिंदी दिवस पर मुझे फिर विचार आया
मातृ भाषा से मिल आऊं भले ही उन्होंने नहीं बुलाया
व्यथा तो उनको, मुझसे बहुत-सी होगी
डरते डरते मैंने हिंदी का दरवाजा खटखटाया
मिला तो हिंदी ने प्यार से बिठाया
दर्द अपना कुछ इस तरह सुनाया
बोली वैसे तो तू साल में एक बार आता है
कुछ करता भी है या दिखावे को हिंदी दिवस मनाता है।
मैंने कहा हिंदी दिवस तो हम सम्मान से मनाते हैं
ऐसा दिन होता है जहां सभी आपके गुणगान गाते हैं
हिंदी एक बनावटी हंसी के साथ मेरी ओर मुस्कुराई
बयां करते हुए अपने दर्द को पूरी दासतां सुनाई
कहा, क्या पूरे वर्ष में तुम्हें एक ही दिन मेरे लिए मिलता है
बाकी दिनों में तो अंग्रेजी के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखता हैं
अब तो अपने ही देश में एक दिन की मेहमान हो गयी हूं
धीरे धीरे अपने ही बच्चों में अल्पज्ञान हो गयी हूं।
बात हिंदी की सही थी, शर्म तो हमें भी नहीं आती
हर वर्ष हिंदी दिवस मनाते हैं पर अंग्रेजी कहीं नहीं जाती
आम बात करने में हिंदी बोलते हिचकिचाते हैं
हिंदी को पराया कर अंग्रेजी को गले लगाते हैं
फिर सोचा नया दौर है हर तरफ अंग्रेजी का शोर है
आधुनिक समाज में जीते हैं हर तरफ दिखावे का जोर है
आज के दौर में जिसने पैदा किया उसकी याद नहीं आती
ऐसे में मातृभाषा को भूल जायें, कौन सा अपराध घोर है
पर सच कहूं तो मैं मन ही मन परेशान हो गया
मुझसे हिंदी का कहीं न कहीं तो अपमान हो गया
अरे यही वो भाषा है जिसको बोलकर बड़ा हुआ
बचपन की शिक्षा का आरम्भ भी तो इससे ही हुआ
दादा दादी नाना नानी की कहानियां इसमें ही बसती थीं
मां की लोरी भी तो इसी भाषा में ही कानों में पड़ती थी
जिसको सुनकर मैं सपनों में खो जाता था
और कुछ लम्हों का सही, शहजादा हो जाता था
तभी सोच लिया मैंने राजभाषा को सम्मान दिलाऊंगा
हिन्दी की व्यथा को आप सभी तक पहुंचाऊंगा
आओ हम सब मिलकर हिंदी को कंठ में बसायें
मातृभाषा पर गर्व करें, गौरवमान बढ़ायें
संकल्प लें कि हिंदी को चहूं ओर फैलायेंगे
पूरे देश में गर्व से हिंदी का परचम लहरायेंगे
बदल देंगे वर्तमान को अंग्रेजी तो क्या चीज है
बच्चे बच्चे में हिंदी के प्रति अपनापन जगायेंगे
यही विनती मैं आपसे पुनः करता हूँ
हिंदी के जख्मों में मरहम भरता हूँ
हिंदी है मेरे वतन की शान बता रहा हूँ
हिंदी है सर्वोपरि पुनः समझा रहा हूँ
- सनुज कुमार
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