शिक्षित बेरोजगार (व्यंग्य)
शिक्षित बेरोजगार और बेरोजगार में फर्क है। बेरोजगार जो होगा, वो कभी न कभी अपने पेट पालने के लिए अपने पुश्तैनी धंधे को पकड़ लेगा, कुछ काम काज करके अपनी रोज़ी-रोटी ढूंढ ही लेगा, उसमें खुश भी रहेगा।
कहते हैं न आवश्यकता आविष्कार की जननी है। देश में अंग्रेजों के शासन काल में बाबुओं की जरूरत थी तो देशवासियों को गुरुकुल के आश्रमों से निकाल-निकाल कर विलायती शिक्षा के नाम पर स्कूलों में, कॉलेजों में पढाया जाने लगा! अंग्रेज तो देश छोड़ कर चले गए लेकिन ये बाबुओं की भीड़ यहीं रह गयी। अब सरकार ही सारी समस्याओं की जिम्मेदारी ले ये तो सही बात नहीं है न। गरीबी, महंगाई, भ्रष्टाचार, घोटालों से ही सरकार को समय नहीं मिलता की देश में बेरोजगारी की समस्या भी पैदा करे। इसलिए सरकार ने कोचिंग संस्थाओं को इस जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए आग्रह किया। उन्हें करों में छूट दी गयी, उनके लिए सस्ते दामों पर जमीन मुहैया कराई गयी। बस फिर क्या कोचिंग संस्थान इसे अपना राष्ट्र धर्म मानकर इस मुहिम में अपना अनवरत योगदान दे रही है। कुकुरमुत्तों की तरह कोचिंग संस्थान उग आयी, गली-गली मोहल्ले में इधर एस टी डी बूथ हटते गए और उनकी जगह ले ली इन कोचिंग संस्थाओं ने। देश में बेरोजगारी की समस्या बढ़ी है, तो चिंता सिर्फ सरकार ही क्यों करें? सरकार को कम चिंताएं है क्या, कुर्सी की चिंता के आगे सब चिंताएं गौण है। अब सरकारी संरक्षण में पल-बढ़ रहे कोचिंग संस्थानों को भी चिंता करनी चाहिए। सबसे बढ़िया बात, ये कोचिंग संस्थान सिर्फ बेरोजगार पैदा नहीं कर रहे, बल्कि शिक्षित बेरोजगार पैदा कर रहे हैं।
शिक्षित बेरोजगार और बेरोजगार में फर्क है। बेरोजगार जो होगा, वो कभी न कभी अपने पेट पालने के लिए अपने पुश्तैनी धंधे को पकड़ लेगा, कुछ काम काज करके अपनी रोज़ी-रोटी ढूंढ ही लेगा, उसमें खुश भी रहेगा। मगर शिक्षित बेरोजगार कुछ नए तरीके इजाद करेगा, जुगाड़ करेगा, शॉर्टकट अपनाएगा, रोजगार के बारे में सोचेगा, चिंता करेगा कि कैसे रातों-रात अमीर बन जाए, अंबानी, अदानी बना जाए। लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गाली देगा। अपने माँ बाप, सिस्टम, व्यवस्था, ईश्वर सभी को अपनी हालत के लिए जिम्मेदार ठहराएगा। तभी तो देश का शिक्षित बेरोजगार एक जिम्मेदार नागरिक कहलाता है। और फिर देश की सूचना क्रांति में इसका बहुत बड़ा योगदान होता है।
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नेटवर्क, वाई-फाई, 5जी, 4जी, ये जी और वो जी सब इसी के बलबूते चल रहे हैं। अगर शिक्षित बेरोजगार नहीं होंगे तो मोबाइल इंडस्ट्री के लेटेस्ट वर्ज़न के फोन सभी औंधे मुँह गिरेंगे। सोचिए, कितना बड़ा योगदान है इन कोचिंग संस्थानों का। रील इंडस्ट्री भी इन शिक्षित बेरोजगारों पर टिकी हुई है। दिन और रात शिक्षित बेरोजगारों की फौज या तो रील बनाने में या देखने में व्यस्त है। सरकार की बेरोजगारी की समस्याएं तो यूँ ही चुटकी में हल हो गयी है, बस सरकार इतना सा भला और कर दे, इन्हें मुफ्त का डाटा और एक कैमरे वाला मोबाइल मुफ्त में दिला दे। रील बनाने के लिए उपयुक्त स्थान तो सरकार ने वैसे ही उपलब्ध करा रखे हैं, ढहते पुल, बाढ़, रोड एक्सीडेंट्स, ट्रेन दुर्घटना, गिरती इमारतें, इतने रील फ्रेंडली स्थान उपलब्ध होते रहते हैं! वैलेंटाइन डे, फ्रेंडशिप डे, सोशल मीडिया, फूड इंडस्ट्री, ऑनलाइन शॉपिंग, फलाना डे, ढिकाना डे, सब इन शिक्षित बेरोजगारों के कन्धों पर टिके हुए हैं।
फिर आजकल के पेरेंट्स की भी महत्वाकांक्षाएं भी तो है जी, वो किन पर थोपें अगर अपने बच्चों पर नहीं थोपें तो। कोचिंग संस्थान इस का भी विशेष ध्यान रखती है। जी हाँ, आपका बच्चा पेट में है, तभी से इन कोचिंग संस्थानों को आपके बच्चे को इंजीनियर, डॉक्टर, आईएएस बनाने की होड़ लग जाती है। अभिमन्यु भी तो पेट में ही चक्रव्यूह तोड़ना सीखा था।गर्भाधान के समय ही आप कोचिंग संस्थान में अपने बच्चे का रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। आजकल संस्थान टीचर्स को ट्रेनिंग दे रहे हैं कि जाओ, 9 महीने होम विजिट सेशन दो, गर्भ में ही करिकुलम पूरा करवाओ। जब बच्चा पैदा हो तो जन्मजात शिक्षित बेरोजगार बनकर निकले। फाउंडेशन एट योर' होम," ‘जन्म के पहले भी और जन्म के बाद भी।' पेरेंट्स बच्चे के जन्म से ही पग पालने में देखे नहीं की पहचान जाएँ‘....अले ले ले ....मेरा बेटा तो कलेक्टर बन गया ....अली ली ली ...देखो मेरा बच्चा डॉक्टर बन गया .. । ‘कोचिंग संस्थान भी उन बच्चों को वरीयता अनुसार पोस्ट-बर्थ कोर्स में भर्ती करे जिन्होंने उनका प्री -बर्थ चौरस अख्तियार किया हो।
कोचिंग संस्थाने अपना धर्म निभा रही हैं तो सरकार को भी चाहिए की थोड़ा ध्यान दे। सरकार को चाहिए कि नौकरियाँ उतनी ही निकाले जितनी निकालनी है। लेकिन एक पोस्ट पर 10 लोगों को नियुक्ति दे दे। काम के घंटे कम कर दे। एक व्यक्ति को दस घंटे की जगह एक घंटे का काम। वैसे भी शिक्षित बेरोजगार को कौनसा काम करना होता है। उसे तो बता दिया गया है की सरकारी नौकरी का तमगा लगने से शादी ब्याह हो जायेंगे। माँ बाप की री री मिट जायेगी। तनख्वाह! साहब! उसकी क्या चिंता सरकार को अपने खुद का बजट बिगाड़ने की कतई आवश्यकता नहीं है। जितनी तनख्वाह एक व्यक्ति को दी जाती है, उसका दसवां हिस्सा बाँट दो, फिर सभी राजी हो जाएंगे।
नौकरी हो, सरकारी हो, चाहे 6 हजार तनख्वाह हो तो, चल जाएगा। प्राइवेट की तीस हजार की नौकरी से 6 हजार की सरकारी नौकरी कहीं बेहतर है—इज्ज़त है, कामचोरी है, हरामखोरी है, और क्या जान लेंगे सरकार की। साथ ही रिश्वत की मलाई चाटने को मिल जाए तो पौ बारह। शादी का खर्चा तो दहेज में ही वसूल लेगा बाप।
इससे भी आगे देखा जाए तो कोचिंग संस्थानों ने कई रोजगार के अवसर भी खोले हैं। माँ बाप ने घर से धक्का तो दे दिया बच्चों को। शहर भेज दिया। महंगे स्कूल, कॉलेज की फीस, कोचिंग, रहन-सहन, खाने पीने का खर्चा, सेटिंग अगर कोई हो गयी तो उसको घुमाने का खर्चा। बच्चों को दिन में तारे नजर आने लगते हैं। अब नए रोजगारों की तलाश होने लगी है। कोचिंग संस्थाओं ने डिलीवरी बॉय, रईसी लोगों के बिगडैल कुत्तों को घुमाने का काम, होटलों, शॉप, रेस्टोरेंट में पार्ट टाइम जॉब, अखबार बाँटने का काम आदि इन बच्चों के लिए सुरक्षित करवा दिए हैं। एक बार कोचिंग संस्थान से बाहर निकला तो कुछ तो एक्सपीरियंस लेकर निकलेगा न। डॉक्टर,आई ए एस नहीं बना तो कम से कम इतना तो कमा ही लेगा की शाम को अपनी एक बीयर, एक पिज्जा और सेटिंग के मोबाइल का रिचार्ज तो करा ही सकता है।
– डॉ मुकेश ‘असीमित’
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