सुनक सरकार में डेविड कैमरून को जगह : सरकार में लौटे पूर्व प्रधानमंत्रियों से सबक
दिसंबर 1916 में लॉयड जॉर्ज के प्रधानमंत्री बनने के बाद बालफोर को (डगलस-होम और कैमरून की तरह) विदेश मंत्री नियुक्त किया गया था। वह 1919 तक इस पद पर बने रहे। बाद में उन्होंने दो बार (1919-22, 1924-29) परिषद के प्रेसिडेंट के रूप में काम किया। विदेश कार्यालय में उन्होंने महत्वपूर्ण नीतिगत पहलों का निरीक्षण किया, जिसमें 1917 में तैयार ‘‘बालफोर घोषणापत्र’’ भी शामिल था। इसमें फलस्तीन के भीतर ‘‘यहूदी लोगों के लिए राष्ट्रीय घर’’ के निर्माण की योजना को ब्रिटिश सरकार के समर्थन का वादा किया गया था। इस तरह, बालफोर ने एक बड़ी समस्या खड़ी की, जो आज भी उनके उत्तराधिकारियों को विरासत में मिलती है।
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरून को अपने विदेश मंत्री के रूप में नियुक्त करने के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के फैसले ने लोगों को आश्चर्यचकित करने के साथ ही खंडित राय पैदा की है, क्योंकि कैमरून 2016 में राजनीति छोड़ चुके थे। हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब किसी पूर्व प्रधानमंत्री ने सरकार में वापसी की है। बीसवीं सदी में ऐसे पांच उदाहरण हैं, जिनमें से दो ने विदेश मंत्री के रूप में भी सेवाएं दीं। इन सभी को पार्टी या गठबंधन में एकता को बढ़ावा देने और अनुभव प्रदान करने के लिए वापस लाया गया था। कैमरून लगभग 50 वर्षों में अपने किसी उत्तराधिकारी के नीचे काम करने वाले पहले पूर्व प्रधानमंत्री हैं। यह संभवतः रेखांकित करता है कि मौजूदा प्रधानमंत्री को उनकी छवि के तले दबने का डर नहीं है।
दरअसल, कोई पूर्ववर्ती सरकार में तभी लौटता है, जब उसे खतरा नहीं माना जाता है। एलेक्स डगलस-होम : एक अनुभवी हाथ -कैमरून से पहले 1963-64 में 363 दिनों तक शासनाध्यक्ष के रूप में काम करने वाले एलेक्स डगलस-होम ब्रिटिश सरकार में वापसी करने वाले पिछले पूर्व प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एडवर्ड हीथ की सरकार में विदेश मंत्री के रूप में वापसी की। हीथ खुद डगलस-होम की सरकार में मंत्री रह चुके थे। हीथ की जीवनी लिखने वाले डी आर थोर्प ने बाद में बताया था कि डगलस-होम को नियुक्त करने के पीछे हीथ का यह मकसद था कि ‘‘वह उनके प्रशासन में मजबूती और स्थिरता लाने’’ में मददगार साबित हो सकते थे। ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री का ध्यान ब्रिटेन को यूरोपीय आर्थिक समुदाय (यूरोपीय संघ के पूर्ववर्ती) में प्रवेश दिलाने के संबंध में बातचीत करने पर केंद्रित था, तब अंतरराष्ट्रीय मामलों से निपटने में सक्षम विदेश मंत्री का होना जरूरी था।
नेविल चैंबरलेन : पर्दे के पीछे से भी उतने ही सक्रिय -ब्रिटेन में दूसरे विश्व युद्ध के शुरुआती दिनों की कहानी अक्सर नेविल चैंबरलेन की जगह विंस्टन चर्चिल को उसी दिन प्रधानमंत्री नियुक्त करने के इर्द-गिर्द घूमती है, जिस दिन जर्मनी ने फ्रांस और अन्य देशों पर हमला किया था। यह बात भी अक्सर भुला दी जाती है कि नवंबर 1940 में अपने निधन से एक महीने पहले तक, चैंबरलेन ने चर्चिल प्रशासन में परिषद के लॉर्ड प्रेसिडेंट के रूप में काम किया, युद्ध कैबिनेट का हिस्सा रहे और कंजर्वेटिव नेता के रूप में सेवाएं दीं। इतिहास जहां अक्सर चर्चिल के उदय पर केंद्रित रहा है, वहीं सरकार में चैंबरलेन की लगातार मौजूदगी ने दिखाया कि शुरुआत में युद्धकालीन प्रधानमंत्री की शक्तियां कितनी सीमित थीं। चर्चिल ने एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया और किसी भी पार्टी के नेता नहीं थे, जबकि चैंबरलेन, एक पूर्व प्रधानमंत्री थे जिसका नेतृत्व तुष्टिकरण से जुड़ा था, और वह कैबिनेट में बने रहे।
यह मामला दिखाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री को सरकार में शामिल करना कभी-कभी प्रधानमंत्री के आत्मविश्वास के बजाय उसकी अंतर्निहित कमजोरी की तरफ इशारा कर सकता है। स्टैनले बाल्डविन और रामसे मैकडोनाल्ड : सुलह-समझौते में माहिर -1930 के दशक की महामंदी के दौरान, ब्रिटेन ने राष्ट्रीय सरकारें (राष्ट्रीय हित में काम करने वाले प्रमुख दलों के गठबंधन) बनाने का प्रयोग किया, जिनमें पूर्व और वर्तमान प्रधानमंत्रियों के एक-दूसरे के अधीन काम करने को लेकर तरह-तरह की अटकलें हावी थीं। रामसे मैकडोनाल्ड के नेतृत्व वाली दूसरी लेबर सरकार के दौरान, इस बात को लेकर सवाल उठे कि क्या प्रथम विश्व युद्ध के नेता डेविड लॉयड जॉर्ज और उनके लिबरल पार्टी के सहयोगी लेबर पार्टी के साथ गठबंधन के लिए तैयार होंगे ? लॉयड जॉर्ज की पार्टी ने बेरोजगारी दूर करने पर ध्यान केंद्रित किया।
ऑपरेशन के बाद की जटिलताओं के कारण उन्हें संभवतः अगस्त 1931 में गठित राष्ट्रीय सरकार में एक बड़ी भूमिका से हाथ धोना पड़ा। हालांकि, जहां लॉयड जॉर्ज की वापसी कभी नहीं हुई, वहीं शीर्ष कंजर्वेटिव नेता (और दो बार के पूर्व प्रधानमंत्री) स्टेनली बाल्डविन ने 1931 से 1935 तक मैकडोनाल्ड की कंजर्वेटिव-प्रभुत्व वाली राष्ट्रीय सरकार में सेवाएं दीं। परिषद के लॉर्ड प्रेसिडेंट के रूप में कार्य करने वाले बाल्डविन एक शक्तिशाली उप प्रधानमंत्री थे, क्योंकि सरकार में उनकी पार्टी के सांसदों की संख्या सबसे ज्यादा थी। इसके बाद बाल्डविन और मैकडोनाल्ड ने अपनी-अपनी भूमिकाओं की अदला-बदली की। 1935 में बाल्डविन एक बार फिर प्रधानमंत्री बने और सेहत के मोर्चे पर चुनौतियों का सामना कर रहे मैकडोनाल्ड ने भी कैबिनेट में वापसी की।
उन्हें आम चुनाव में हार झेलनी पड़ी, लेकिन जल्दी से कराए गए उपचुनाव में वह अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे और खुद से बहुत ही जूनियर गठबंधन सहयोगी के नेता के रूप में वापसी की। युद्ध के बीच का युग दो अहम सबक प्रदान करता है। पहला, लॉयड जॉर्ज की वापसी को लेकर व्यापक रूप से व्याप्त आशंकाएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि मौजूदा प्रधानमंत्री शायद ही कभी अपने पूर्ववर्तियों को पसंद करते हैं, जो सरकार की मशीनरी के बहुत करीब होते हैं। दूसरा, बाल्डविन और मैकडोनाल्ड का उदाहरण दिखाता है कि गठबंधन या एक-दलीय प्रशासन में अधिक शक्तिशाली गुट से संबंधित होना उस राजनेता की प्रभावशीलता को कैसे बढ़ा सकता है। राजनीति में प्रतिस्पर्धा कभी खत्म नहीं होती। अर्थुर बालफोर : वैश्विक प्रभाव -इस सूची में अंतिम और शायद सबसे प्रभावशाली नाम पूर्व प्रधानमंत्री आर्थर बालफोर का है।
लॉर्ड सैलिसबरी के भतीजे बालफोर 1902 में कंजर्वेटिव प्रधानमंत्री के रूप में अपने चाचा के उत्तराधिकारी बने। उन्हें मंत्री पद पर नियुक्त करने के लॉर्ड सैलिसबरी के फैसले को ‘‘बॉब आपके चाचा हैं’’ वाक्यांश का मूल माना गया था। बालफोर ने दिसंबर 1905 में एक राजनीतिक पैंतरेबाजी के तहत इस्तीफा दे दिया, जिसके कारण 1906 के चुनाव में लिबरल पार्टी धराशायी हो गई। लगभग एक दशक तक कार्यालय से बाहर रहने के बाद, 1915 में एच एच एस्क्विथ के नेतृत्व में गठबंधन सरकार के गठन के बाद वह कैबिनेट में लौटे। उन्हें एडमिरेलिटी (नौसेना) के पहले लॉर्ड की भूमिका सौंपी गई, जो एक प्रमुख कार्यालय था, क्योंकि रॉयल नेवी उस समय दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना थी। वह यहीं नहीं रुके।
दिसंबर 1916 में लॉयड जॉर्ज के प्रधानमंत्री बनने के बाद बालफोर को (डगलस-होम और कैमरून की तरह) विदेश मंत्री नियुक्त किया गया था। वह 1919 तक इस पद पर बने रहे। बाद में उन्होंने दो बार (1919-22, 1924-29) परिषद के प्रेसिडेंट के रूप में काम किया। विदेश कार्यालय में उन्होंने महत्वपूर्ण नीतिगत पहलों का निरीक्षण किया, जिसमें 1917 में तैयार ‘‘बालफोर घोषणापत्र’’ भी शामिल था। इसमें फलस्तीन के भीतर ‘‘यहूदी लोगों के लिए राष्ट्रीय घर’’ के निर्माण की योजना को ब्रिटिश सरकार के समर्थन का वादा किया गया था। इस तरह, बालफोर ने एक बड़ी समस्या खड़ी की, जो आज भी उनके उत्तराधिकारियों को विरासत में मिलती है। कैमरून हाउस ऑफ लॉर्ड्स से ऐसे मुद्दों से निपटेंगे, जिन्हें उस समय ऊपरी सदन पर कंजर्वेटिवों के नियंत्रण के कारण ‘‘मिस्टर बालफोर का पूडल’’ करार दिया गया था।
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