कोटा से मिटाने होंगे आत्महत्याओं के दाग

Kota
Creative Commons licenses

कोचिंग के बड़े केंद्र कोटा में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं की घटनाएं शहर के दामन पर दाग लगा रही है। कोटा में 2015 से लेकर अब तक 138 छात्रों ने आत्महत्या कर अपने जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं।

राजस्थान का कोटा शहर जितना शैक्षणिक संस्थाओं के लिए प्रसिद्ध है। अब उतना ही यहां के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के कारण देश भर में बदनाम हो रहा है। हालांकि कोटा में छात्र आत्महत्याओं के मामले यहां पर कोचिंग लेने वाले छात्रों की संख्या की तुलना में बहुत कम है। मगर यहां पढ़ने वाले छात्रों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्याओं की दुखद घटनाओं को भी नकारा नहीं जा सकता है। पिछले जनवरी माह में ही कोटा में 6 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी। इसी साल 8 जनवरी को हरियाणा के महेंद्रगढ़ निवासी छात्र नीरज, 9 जनवरी को गुना मध्य प्रदेश के अभिषेक लोधा, 15 जनवरी को उड़ीसा के अभिजीत गिरी, 18 जनवरी को बूंदी जिले के मनन जैन,  22 जनवरी को अहमदाबाद गुजरात की अफ्शा शेख और 22 जनवरी को ही नौगांव असम के छात्र पराग ने आत्महत्या कर ली थी। इनमें से पांच छात्र इंजीनियरिंग की व एक छात्रा नीट की तैयारी कर रही थी।

कोचिंग के बड़े केंद्र कोटा में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं की घटनाएं शहर के दामन पर दाग लगा रही है। कोटा में 2015 से लेकर अब तक 138 छात्रों ने आत्महत्या कर अपने जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं। यहां 2015 में 18, 2016 में 17, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 18, 2020 में 4, 2021 में एक, 2022 में 15, 2023 में 26, 2024 में 16 व 2025 में अब तक छह छात्र आत्महत्या कर अपनी जान गंवा चुके हैं। 2020 व 2021 में कोविड के चलते यहां के कोचिंग संस्थाओं के बंद रहने के कारण आत्महत्याओं के आंकड़ों में गिरावट रही थी। कोटा में कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई करने वाले छात्रों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्या की घटनाओं से पूरा देश सकते में है। सरकार व प्रशासन द्वारा लाख प्रयासों के उपरांत भी कोटा के छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाएं नहीं रूक पा रही है। 

इसे भी पढ़ें: पाठ्यक्रमों में बदलाव भी बन गया सत्ता पाने का हथियार

कोटा कभी राजस्थान का बड़ा औद्योगिक नगर होता था। मगर श्रमिक आंदोलनो के चलते यहां के उद्योग धंधे बंद होते गए। आज कोटा में नाम मात्र के ही उद्योग रह गए हैं। 1990 के दौरान कोटा शहर में कोचिंग संस्थान खुलने लगे थे। 2005 तक यहां बड़ी संख्या में कोचिंग संस्थान स्थापित हो गए जिनमें प्रतिवर्ष लाखों छात्र पढ़ने लगे। आज कोटा शहर की पूरी अर्थव्यवस्था इन कोचिंग संस्थानों पर ही निर्भर है। शहर के हर चौक-चौराहों पर छात्रों की सफलता से अटे पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि अब कोटा में कोचिंग ही सब कुछ है। 

यह सही है कि कोटा में सफलता की दर तीस प्रतिशत से उपर रहती है। देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओं में टाप टेन में पांच छात्र कोटा के रहते हैं। मगर उसके साथ ही कोटा में एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो असफल हो जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक कोटा के कोचिंग मार्केट का सालाना आठ से दस हजार करोड़ का टर्नओवर है। कोचिंग सेन्टरों द्वारा सरकार को सालाना 800 करोड़ रूपये से अधिक टैक्स के तौर पर दिया जाता है। 

कोटा शहर देश में कोचिंग का सबसे बड़ा केन्द्र बन चुका है। यहां प्रतिवर्ष लाखों छात्र कोचिंग करने के लिए आते हैं। जिससे कोचिंग संचालकों को सालाना कई हजार करोड़ रुपए की आय होती है। हालांकि कोटा आने वाले सभी छात्र मेडिकल व इंजीनियरिंग परीक्षा में सफल नहीं होते हैं। मगर देश की शीर्षस्थ मेडिकल व इंजीनियरिंग संस्थानों में चयनित होने वाले छात्रों में कोटा के छात्रों की संख्या काफी होती है। इसी कारण अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं। 

कोटा में छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का मुख्य कारण छात्रों पर पढ़ाई करने के लिए पड़ने वाला मनोवैज्ञानिक दबाव को माना जा रहा है। कोटा में कोचिंग लेने वाले छात्रों को प्रतिवर्ष लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। बहुत से छात्रों के अभिभावकों की स्थिति इतना खर्च वहन करने की नहीं होती है। यहां पढ़ने वाले छात्रों में अधिकांश मध्यम वर्गीय परिवारों से होते हैं। उनके अभिभावक आर्थिक रूप से अधिक सक्षम नहीं होते हैं। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए वह लोग विभिन्न स्तरों पर पैसों की व्यवस्था कर बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं। 

कोटा आने वाले छात्रों को पता है कि उनके अभिभावकों ने कितनी मुश्किल से कोचिंग लेने के लिए उन्हें कोटा भेजा है। ऐसे में यदि वह सफल नहीं होंगे तो उनके अभिभावक जिंदगी भर कर्ज में दबे रह जाएंगे। यही सोचकर छात्र हमेशा मनोवैज्ञानिक दबाव महसूस करता रहता है। इसके अलावा यहां पढ़ने वाले छात्रों पर पढ़ाई का भी बहुत अधिक दबाव रहता है। यहां के  कोचिंग संस्थानो में कई शिफ्टों में अलग-अलग बैच में पढ़ाई होती हैं। कोचिंग संस्थान भी अच्छा परिणाम दिखाने के चक्कर में छात्रों को मशीन बनाकर रख देते हैं। छात्रों पर हर दिन पढ़ाई का दबाव बना रहता है तथा साप्ताहिक टेस्ट पास करने के चक्कर में छात्र दिन-रात पढ़ाई करते रहतें हैं। जिससे ना तो उनकी नींद पूरी हो पाती है ना ही वह मानसिक रूप से आराम कर पाते हैं। ऐसे में छात्र जल्दी उठकर कोचिंग संस्थान में जाकर पढ़ाई करने व दिनभर पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण वह तनाव में आ जाता है। इससे कई छात्र पढ़ाई में पिछड़ने के डर से आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।

कोटा में देश के तमाम नामी गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे-मोटे 300 कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। दिल्ली, मुंबई के साथ ही कई विदेशी कोचिंग संस्थाएं भी कोटा में अपना सेंटर खोल रही हैं। लगभग ढ़ाई लाख छात्र इन संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं। कोटा में सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं। आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में पढने वाले छात्र बड़ी-बड़ी कम्पनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोडकर यहां के कोचिंग संस्थाओं में पढ़ा रहे हैं। तनख्वाह ज्यादा होने से कोटा शहर में 75 से ज्यादा आईआईटी पास छात्र पढ़ा रहे हैं।

केंद्र सरकार ने कोचिंग संस्थानों के लिए दिशानिर्देशों की घोषणा की है। जिनमें कोचिंग संस्थान 16 वर्ष से कम आयु के छात्रों का नामांकन नहीं कर सकते। इसके अलावा न ही वे अच्छी रैंक या अच्छे अंकों की गारंटी दे सकते हैं और न ही गुमराह करने वाले वायदे कर सकते हैं। छात्रों के आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं, कोचिंग सेंटरों में सुविधाओं का अभाव और उनके पढ़ाने के तौर- तरीकों के बारे में शिकायतें मिलने के बाद सरकार ने इनकी घोषणा की है। दिशानिर्देशों के अनुसार कोई भी कोचिंग सेंटर स्नातक से कम शिक्षा वाले ट्यूटर को नियुक्त नहीं करेगा। छात्रों का नामांकन सिर्फ सेकेंडरी स्कूल परीक्षा देने के बाद हो सकेगा। 

कोटा में छात्रों की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं पर राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ द्वारा स्व प्रेरित संज्ञान आधारित याचिका की सुनवाई के दौरान राजस्थान सरकार की तरफ से कहा गया है कि विधानसभा के मौजूदा सत्र में इसके लिए एक नया कानून लाया जाएगा। जिससे छात्रों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं की घटनाओ पर रोक लगाई जा सकेगी। 

सरकार चाहे जितनी कोशिश करे कोटा में पढ़ने वाले छात्र जब तक बिना किसी दबाव के पढाई करेंगे तभी यहां का माहौल सुधरेगा। यहां चल रहे कोचिंग संस्थानों को मशीनी स्तर पर चलाई जा रही प्रतिस्पर्धा को रोककर एक सकारात्मक वातावरण बनाना होगा। तभी छात्र खुद को सुरक्षित महसूस कर पढाई कर पाएंगे। कोटा में संचालित कोचिंग संस्थान अपने काम को पैसे कमाने कि मशीन समझना बंद कर अपने छात्रों के साथ संवेदनशील व्यवहार नहीं करेंगे तब तक कोटा के हालात नहीं सुधर पायेंगे। कोटा के मौजूदा हालातों के कारण ही यहां कोचिंग लेने वाले छात्रों की संख्या में काफी कमी होने लगी हैं। जो कोटा शहर की अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।

रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़