RSS मुख्यालय के साथ ही दीक्षाभूमि का दौरा कर मोदी ने गजब का राजनीतिक संतुलन साधा है

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ANI

भाजपा ने संघ के साथ संबंधों में सुधार किया जिसके चलते पार्टी को हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में विधानसभा चुनावों में जोरदार जीत मिली थी। दूसरी ओर, संघ और भाजपा के बीच मतभेदों को दोनों ही संगठनों के नेता नकारते हैं और कहते हैं कि ऐसी बातें वही लोग करते हैं जो भाजपा और संघ को नहीं समझते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागपुर यात्रा के दौरान आरएसएस मुख्यालय स्थित हेडगेवार स्मृति मंदिर का दौरा कर नया इतिहास रच दिया क्योंकि संघ के 100 वर्षों के इतिहास में दूसरी बार देश का कोई प्रधानमंत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय पहुँचा था। हम आपको याद दिला दें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2000 में अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान नागपुर में संघ मुख्यालय का दौरा किया था। संयोग देखिये कि मोदी भी अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान ही संघ मुख्यालय पहुँचे। मोदी के संघ मुख्यालय के दौरे पर जहां विपक्ष बौखला रहा है वहीं इस यात्रा ने आरएसएस के भीतर भी कई लोगों को सुखद आश्चर्य में डाल दिया है। वैसे कुल मिलाकर मोदी की इस यात्रा को भाजपा और आरएसएस द्वारा आपसी मतभेद दूर करने और एकजुट होने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से नागपुर में अपने संबोधन के दौरान आरएसएस की भरपूर प्रशंसा को अपने वैचारिक मार्गदर्शक के प्रति भाजपा के रुख में आये बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। हम आपको याद दिला दें कि पिछले साल लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि भाजपा उस समय से आगे बढ़ चुकी है जब उसे आरएसएस की जरूरत थी और अब वह “सक्षम” है तथा अपने काम खुद करती है। नड्डा की इस टिप्प्णी से संघ कार्यकर्ताओं में रोष उत्पन्न हो गया था और लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा और आरएसएस के बीच दूरी देखी गयी थी जिसका नुकसान भाजपा को लोकसभा में बहुमत गंवा कर उठाना पड़ा था। 

हालांकि लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा ने संघ के साथ संबंधों में सुधार किया जिसके चलते पार्टी को हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में विधानसभा चुनावों में जोरदार जीत मिली थी। दूसरी ओर, संघ और भाजपा के बीच मतभेदों को दोनों ही संगठनों के नेता नकारते हैं और कहते हैं कि ऐसी बातें वही लोग करते हैं जो भाजपा और संघ को नहीं समझते हैं। वैसे जानकारों का यह भी कहना है कि संघ को मुख्य आपत्ति इस बात पर थी कि भाजपा एक व्यक्ति केंद्रित पार्टी बनती जा रही है। हम आपको याद दिला दें कि साल 2014 के बाद ''मोदी ब्रांड राजनीति” के तहत भाजपा सारे चुनाव लड़ती रही है। लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा ने अन्य नेताओं को भी आगे बढ़ाया है और आने वाले समय में दूसरी पंक्ति के कई और नेताओं को बड़ी भूमिकाएं मिलने जा रही हैं। वैसे, आरएसएस के शताब्दी समारोह और बेंगलुरु में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले प्रधानमंत्री की नागपुर यात्रा इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि भाजपा जल्द ही अपने नये राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करने वाली है। हालांकि हाल ही में संघ की ओर से स्पष्ट किया गया था कि उसके सभी आनुषांगिक संगठन अपने कार्यों के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेते हैं लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि साल 2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की करारी हार के बाद मोहन भागवत के हस्तक्षेप के बाद ही लालकृष्ण आडवाणी युग समाप्त हुआ था और मोदी आगे लाये गये थे। साल 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद मोहन भागवत की कुछ टिप्पणियों को पार्टी नेतृत्व और प्रधानमंत्री मोदी की सीधी आलोचना के रूप में भी देखा गया था। इसलिए ऐसा हो नहीं सकता कि भाजपा अपने नये अध्यक्ष के नाम पर बिना संघ प्रमुख से चर्चा किये बिना फैसला कर ले।

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हम आपको यह भी बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्रियों और वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने पूर्व में सावधानी बरतते हुए सरकार और संघ के बीच अंतर सुनिश्चित किया लेकिन मोदी चूंकि खुद संघ के प्रचारक रहे हैं इसलिए वह संघ की तारीफ करने में नहीं चूकते। हाल ही में तीन बड़े मौके आये जब मोदी ने अपने जीवन को सही मार्गदर्शन देने के लिए संघ का आभार जताया और इस सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन की भरपूर प्रशंसा की। प्रधानमंत्री ने नागपुर में भी आरएसएस को एक ऐसे संगठन के रूप में संदर्भित किया जिसने "समर्पण और सेवा के उच्चतम सिद्धांतों को कायम रखा"। साथ ही उन्होंने संघ की "राष्ट्र निर्माण और विकास में रचनात्मक भूमिका" को रेखांकित करके अपनी "2047 तक विकसित भारत" की योजनाओं में संघ की भूमिका के महत्व को भी दर्शाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने प्रयागराज में हाल ही में संपन्न महाकुंभ मेले में “महत्वपूर्ण भूमिका” निभाने के लिए भी स्वयंसेवकों को श्रेय दिया था। इसके अलावा, हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों पर आरएसएस द्वारा की जाने वाली सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने पर लगाए गए प्रतिबंध को भी हटा दिया गया था। यही नहीं, जिस तरह भाजपा के वरिष्ठ नेता गठबंधन सरकार होने के बावजूद अपने मूल एजेंडे में शामिल मुद्दों पर आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं वह इस बात का संकेतक है कि आरएसएस के कुछ मुख्य एजेंडे भाजपा की राजनीति में फिर से सबसे आगे आ रहे हैं। 

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ मुख्यालय के दौरे के साथ ही डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के पंचतीर्थों में से एक दीक्षाभूमि का भी दौरा कर राजनीतिक संतुलन साधने की कोशिश की। प्रधानमंत्री ने संघ मुख्यालय में दिये गये अपने संबोधन में भी बाबा साहेब को याद किया और भारतीय संविधान की भरपूर प्रशंसा की। प्रधानमंत्री मोदी ने आरएसएस मुख्यालय में डॉ. हेडगेवार स्मृति मंदिर का दौरा कर संघ के संस्थापकों को श्रद्धांजलि अर्पित की साथ ही वह दीक्षाभूमि भी गए, जहां डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 1956 में अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। मोदी दीक्षाभूमि स्थित स्तूप के भीतर गए और वहां रखी आंबेडकर की अस्थियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। मोदी ने जहां आरएसएस को भारत की अमर संस्कृति का ‘वट वृक्ष’ बताया वहीं उन्होंने दीक्षाभूमि की सामाजिक न्याय और दलितों को सशक्त बनाने के प्रतीक के रूप में सराहना करते हुए डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के सपनों के भारत को साकार करने के लिए और भी अधिक मेहनत करने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहरा कर सबका दिल जीत लिया। इस तरह मोदी ने नागपुर यात्रा से जो संदेश दिया है वह यह है कि भारतीय संविधान के दायरे में रह कर काम करते हुए अपने वैचारिक संगठन की विचारधारा को आगे बढ़ाते रहेंगे।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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