पाठ्यक्रमों में बदलाव भी बन गया सत्ता पाने का हथियार

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कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता में आने पर आरोप लगाए थे कि पूर्ववर्ती सिद्दारमैया सरकार ने महज अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टिकरण और कम्युनिस्ट विचारधारा थोंपने के लिए किताबों में विभिन्न बदलाव किए थे।

देश के नेताओं ने सत्ता पाने के लिए शिक्षा को भी राजनीतिक हथियार बनाया है। सत्ता बदलते ही नेता अपनी विचाराधारा के हिसाब से स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में बदलाव करके वोट बैंक को पक्का करने की जुगत में लगे रहते हैं। विद्यार्थी इन सब के बीच फुटबाल बने रहते हैं। उन्हें वही पढऩा होता है जोकि सरकारें उन्हें पाठ्यक्रमों के जरिए पढ़ाती हैं। बेशत तथ्य तोड़मरोड़ कर ही क्यों न पेश किए जाएं। हालात यह है कि सत्ता में बदलाव के साथ पाठ्यक्रम भी बदलते रहते हैं। देश में शिक्षा में इस तरह के बदलाव पर लंबे अर्से से बहस छिड़ी हुई है। राजनीतिक दल बदलाव को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं।   

इसी कड़ी में नया विवाद कर्नाटक में हुआ है। कर्नाटक यूनिवर्सिटी की किताब के सेलेबस को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि इसमें गलत शब्दों का इस्तेमाल किया गया। कर्नाटक विश्वविद्यालय के अंडरग्रेजुएट विद्यार्थियों के पहले सेमेस्टर की किताब में ऐसा कंटेंट लिखा गया है, जिससे भारत की एकता बाधित होती है। कथित तौर पर सेलेबस में संघ परिवार, राम मंदिर के निर्माण और भारत माता आदि की आलोचना की गई थी और कुछ गलत शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। सेलेबस में आरएसएस की आलोचना करने के लिए बार-बार "संघ परिवार" जैसे शब्दों का उपयोग करने का आरोप लगाया गया है। इससे पहले जब कर्नाटक में भाजपा की सरकार थी तब पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर इसी तरह के आरोप लगाए गए थे। 

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कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता में आने पर आरोप लगाए थे कि पूर्ववर्ती सिद्दारमैया सरकार ने महज अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टिकरण और कम्युनिस्ट विचारधारा थोंपने के लिए किताबों में विभिन्न बदलाव किए थे। इस दावे की पुष्टि करते हुए सरकार ने कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए संशोधनों को दिखाने के लिए 200 पृष्ठों की किताब भी जारी की थी, जिसमें पाठ्यपुस्तकों में हिंदू देवताओं और ऐतिहासिक आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया गया। भाजपा का आरोप था कि विजयनगर के शासकों, मैसूर राजाओं वडियारों, राष्ट्र कवियों कुवेम्पु, बेंगलुरु के संस्थापक केम्पेगौड़ा और सर एम विश्वेश्वरैया पर अध्यायों को या तो हटा दिया गया या उन पर सामग्री कम कर दी गयी। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने टीपू सुल्तान, मोहम्मद गजनी, हैदर अली और मुगलों का बखान किया। सत्ता में आने पर भाजपा ने टीपू, हैदर अली, गजनी और मुगलों पर अध्यायों को अब हटा दिया और स्वतंत्रता सेनानियों तथा मराठा शासक शिवाजी और केम्पेगौड़ा जैसी ऐतिहासिक शख्सियतों को पाठ्यपुस्तकों में प्रमुखता दी गई।   

राजनीतिक नजरिए से पाठ्यक्रमों में राज्य ही नहीं केंद्र में जो भी सरकार सत्ता में रही उसने अपनी दलीलों के साथ बदलाव किए हैं। यह सब किया जाता है देशहित और संस्कृति-सभ्यता के इतिहास को बचाने के नाम पर। वर्ष 2019 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने कक्षा 12वीं के राजनीति विज्ञान पाठ्यपुस्तक में गुजरात दंगों के बारे में अध्याय जोड़ दिया गया। इस अनुच्छेद में दो परिवर्तन किये गये। अनुच्छेद में शामिल शीर्षक मुस्लिम विरोधी गुजरात दंगे को बदलकर गुजरात दंगे कर दिया गया। इसी अनुच्छेद के पहले वाक्य से मुस्लिम शब्द भी हटा दिया गया। अनुच्छेद के शीर्षक के अलावा अनुच्छेद के अन्दर के पाठ को नहीं छुआ गया। गुजरात में भाजपा शासन के दौरान 2002 में हुए मुस्लिम विरोधी गुजरात दंगों का संदर्भ पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया है, जबकि कांग्रेस शासन के दौरान हुए सिख विरोधी दंगों को बरकरार रखा गया। 

वर्ष 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से यह तीसरी बार है जब सरकार ने पाठ्यपुस्तक संशोधन की कवायद की। इससे पहले 2017 और 2019 में पाठ्यपुस्तकों में संशोधन किया गया था। हटाए गए खंडों में मुगलों पर एक पूरा अध्याय शामिल है, जो एक मुस्लिम राजवंश था, जिसने भारत पर 200 वर्षों तक शासन किया और भारत के संस्थापक पिता मोहनदास करमचंद गांधी द्वारा हिंदू-मुस्लिम एकता की खोज की चर्चा से संबंधित पाठ को हटाया गया। गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की ब्राह्मण उत्पत्ति और भाजपा के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर लगाए गए संक्षिप्त प्रतिबंधों को सुविधाजनक रूप से हटा दिया गया, जैसा कि 2002 के गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों को भी हटाया गया। वर्ष 2022 में एनसीईआरटी ने स्कूलों की किताबों में बदलाव किये। इनमें प्राचीन और मध्ययुगीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के बारे में अभी तक पढ़ाए जाने वाले कई तथ्यों को हटा दिया गया। मम्लूक, तुगलक, खिलजी, लोधी और मुगल साम्राज्य समेत सभी मुस्लिम साम्राज्यों के बारे में जानकारी देने वाले कई पन्नों को हटाया गया। जाति व्यवस्था से भी जुड़ी काफी जानकारी को हटा दिया गया, जैसे वर्ण प्रथा वंशानुगत होती है, एक श्रेणी के लोगों को अछूत बताना, वर्ण प्रथा के खिलाफ विरोध, 2002 के गुजरात दंगे, आपातकाल, नर्मदा बचाओ आंदोलन जैसे जन आंदोलनों आदि जैसी आधुनिक भारत की कई महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी को भी हटा दिया गया। पाठ्यपुस्तकों से विवादास्पद हटाए गए तथ्यों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा था कि भाजपा-आरएसएस पाठ्यपुस्तक की सामग्री बदल सकते हैं, लेकिन "वे इतिहास को नहीं मिटा सकते। 

भाजपा सरकार द्वारा "पाठ्यपुस्तकों के भगवाकरण" की व्याख्या करते हुए, केरल के कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा था कि संघ परिवार इतिहास के निरंतर भय में रहता है क्योंकि यह उनके असली चेहरे को उजागर करता है। वे इतिहास को फिर से लिखने और उसे झूठ से ढकने का सहारा लेते हैं। संघ परिवार में आरएसएस और भाजपा सहित उसके संबद्ध संगठन शामिल हैं। रोमिला थापर और जयति घोष जैसे प्रख्यात शिक्षाविदों, जिन्होंने एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों के पिछले संस्करण लिखे हैं, ने एक सार्वजनिक बयान जारी कर हटाए गए शब्दों को वापस लेने की मांग की थी।   

इन बदलावों को विभाजनकारी उद्देश्यों से प्रेरित बताते हुए बयान में कहा गया कि किताबें लिखने वालों से सलाह लेने का कोई प्रयास नहीं किया गया। यह एक ऐसा निर्णय है जो भारतीय उपमहाद्वीप के संवैधानिक लोकाचार और समग्र संस्कृति के खिलाफ है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए इतिहास के पाठ्यक्रम में अहम बदलाव किए। ये बदलाव सिंधु घाटी सभ्यता के उदय और पतन को लेकर हैं। ये बदलाव हरियाणा के राखीगढ़ी में स्थित सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल से प्राप्त प्राचीन डीएनए के अध्ययन के आधार पर किए गए। इस अध्ययन से माना जाता रहा कि आर्यों के आगमन का सिद्धांत गलत साबित होता है। सरकारों का जोर ज्यादातर राजनीतिक विज्ञान, समाज विज्ञान और हिन्दी की पुस्तकों पर सुविधा के हिसाब से बदलाव पर जो रहा है। यह सिलसिला थमने वाला नहीं है। जो भी दल भविष्य में सत्ता में आएगा, पाठ्यक्रमों में फिर वही बदलाव का सिलसिला जारी रहेगा। इससे और कुछ हो न हो पर विद्यार्थी दिग्भ्रमित जरूर होते हैं। इसलिए बेहतर है कि पाठ्यक्रमों में बदलाव के लिए देश के पुराविदें, शिक्षाविदें के साथ न्यायविदें को भी शामिल किया जाना चाहिए, ताकि चुनावी गणित के हिसाब से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का सिलसिला बंद हो सके। 

- योगेन्द्र योगी

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