Interview: हर मोर्चे पर हमारा सुरक्षा नेतृत्व मजबूत: कर्नल राजेश राघव

Colonel Rajesh Raghav
Prabhasakshi

घटनाएं निश्चित रूप से दुखदाई हैं। हालांकि, ऐसे झटकों को सहने के हम आदि हो चुके हैं, कनाडा से लेकर नेपाल, अफगानिस्तान तक स्थितियां बदहाल रही हैं। लेकिन ये बदला हुआ भारत है। चुप तो हम नहीं बैठने वाले? बस इजाजत और ऊपरी इशारे की जरूरत है?

बांग्लादेश हिंदु आबादी के खिलाफ व्यवस्थित हिंसक प्रतिरोध में बेशक उलक्ष गया हो, पर भविष्य में इसका खामियाजा उसे ही भुगतना पड़ेगा? संभावति बढ़ते खतरों और वहां तेजी से बदलते सियासी समीकरणों से भारत वाकिफ है। केंद्र सरकार ‘वेट एंड वॉच’ की स्थित में है। क्योंकि, बांग्लादेश अब चाइना और पाकिस्तान की चुंगल में फंस चुका है, दोनों मुल्कों के इशारे पर ही वहां के कट्टरपंथी हिंदुओं पर हिंसक घटनाओं को अंजाम देने में लगे हैं। बांग्लादेश में निर्वाचित सरकार आने में अभी एकाध वर्ष शेष हैं। इस दरम्यान भविष्य बांग्लादेश को लोकतंत्र की ओर ले जाएगा या इस्लामाबाद की ओर? ये एक बड़ा सवाल खड़ा हो चुका है। उनकी सत्ता परिवर्तन ने भारत के संग घनिष्ठ संबंधों पर आधारित यथास्थिति को बिगाड़ा है इस तल्ख हकीकत को वो भी जानते हैं। ऐसी स्थिति में भारत की क्या होगी रणनीति, के संबंध में सेना के शैक्षिक कोर और उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल के प्रधानाचार्य कर्नल राजेश राघव से विस्तृत बातचीत डॉ. रमेश ठाकुर द्वारा की गई। पेश बातचीत के मुख्य हिस्से।

प्रश्नः बांग्लादेश के मौजूदा हालातों से हमें कितना सतर्क रहना होगा?

उत्तरः डिफेंसिव मोड में हम पहले से हैं। हरकतें बांग्लादेश खुद से नहीं कर रहा, पीछे से चीन-पाकिस्तान करवा रहे हैं। इनका इतिहास ही है दूसरों के कंधों पर रखकर बंदूक चलाना। बहरहाल, वहां उपजे संकट को हमारा सुरक्षा तंत्र और केंद्रीय हुकूमत गंभीरता से संयुक्त रूप से ‘वेट एंड वॉच’ पर हैं। बाकी हमारे नीति निर्माता इस चुनौती को उसी तरह निपटेंगे, जैसा पहले कर चुके हैं। बांग्लादेश ने पाकिस्तान नीति में जो बदलाव किया है। उन पर लगे पूर्व के तमाम प्रतिबंधों को हटाया है। मेरा मत है, यही कदम उनके लिए घातक होने वाले हैं। ऐसा करने से बांग्लादेश सोचता है कि दक्षेस व्यवस्थाएं पुनर्जीवित हो जाएंगी और पाकिस्तान से संबंध भी सुधर जाएंगे, शायद यही उनकी सबसे बड़ी भूल आगे चलकर साबित होगी।

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प्रश्नः हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार की घटनाओं ने प्रत्येक भारत वासियों के खून को खौलाया हुआ है?

उत्तरः घटनाएं निश्चित रूप से दुखदाई हैं। हालांकि, ऐसे झटकों को सहने के हम आदि हो चुके हैं, कनाडा से लेकर नेपाल, अफगानिस्तान तक स्थितियां बदहाल रही हैं। लेकिन ये बदला हुआ भारत है। चुप तो हम नहीं बैठने वाले? बस इजाजत और ऊपरी इशारे की जरूरत है? देखिए, ऐ सब सोची समझी प्लानिंग का हिस्सा है और कुछ नहीं? निश्चित रूप से इन घटनाओं के घटने से दोनों मुल्कों के बीच सधे दशकों पुराने मधुर संबंध खराब हुए हैं। अनिश्चित राजनीतिक भविष्य के क्षेत्रीय स्थिरता और भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध भी धराशाही हुए हैं। मुझे ऐसा लगता है कि महीनों पहले जब वहां छात्र आंदोलन हुआ था, तो उसकी आड़ में ही शेख हसीना की सत्ता से बेदखली की पटकथा चीन, अमरीका व पाकिस्तान ने मिलकर लिखी थी, जिसे शायद शेख हसीना वक्त रहते भांप नहीं पाईं?

प्रश्नः भारत के प्रति बांग्लादेशी सेना का नजरिया भी बदला-बदला सा दिखने लगा है?

उत्तरः नजरिए का बदलना स्वाभाविक है, सरकार की कठपुतली जो बन गई है। बांग्लादेश की चीन, पाकिस्तान और गुप्त तरीके से एकाध अन्य देशों से जगसे नजदीकियां बढ़ी हैं, सेनाई व्यवस्थाएं भी चरमरा गईं हैं। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान उनकी सेना को हथियार मुहैया कराने लगे हैं। इन सभी हरकतों को देखते हुए हम भी सतर्क हैं। कुछ हिडन सेना गतिविधियां अपने यहां जारी हैं जिसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। हमें अमेरिका पर ज्यादा नजर रखनी होगी, क्योंकि अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल बांग्लादेश सरकार का हौसला अफजाई करने को लगातार ढाका पहुंच रहा है। इन तस्वीरों के बाद तनाव का ब़ढ़ना थोड़ा स्वभाविक है। नए निजाम को जरा भी अंदाजा नहीं है कि बांग्लादेश का बना बनाया एक समृद्ध लोकतंत्र को उन्होंने खतरे में डाल दिया है। यही सब बताने और समझाने को पिछले दिनों हमारे विदेश मंत्री वहां गए थे। देखते उससे क्या सकारात्मक परिणाम निकलते हैं।

प्रश्नः स्थिति पाकिस्तान में विलय की बनती दिखने लगी है?

उत्तरः ऐसा कोई आम बांग्ला वासी कभी नहीं चाहेगा? पाकिस्तान आज भुखमरी के कगार पर खड़ा है। कर्ज से लदा है, नया कर्ज कोई देने को राजी नहीं? स्थिति कटोरा पकड़कर भीख मांगने की हो गई है। क्या उस कतार में कोई बांग्लादेशी खड़ा होना चाहेगा। खुदा न खास्ता अगर ऐसी कोई स्थिति बनती भी है तो अंतरिम सरकार की संवैधानिक वैधता पर वहां की जनता खुद सवाल खड़े करने लगेगी। उनकी अंतरिम सरकार भारत के बजाय अमरीका, चीन व पाकिस्तान से दोस्ती ज्यादा बढ़ा रही है। नेपाल भी चार-पांच वर्ष पहले इसी राह पर चला था, चीन का पहरा था। लेकिन जब उसने चीन की चालाकी पकड़ी, तो फिर से ‘लौट के बुद्धू घर को आए' ।

प्रश्नः सेना के नजरिए से देखें, तो वहां ऐसा माहौल बना क्यों?

उत्तरः देखिए, स्थितियां राजनीतिक हैं। और रही बात सेना के नजरिए की, तो भारतीय सेना चौबीस घंटे एक्शन को तैयार रहती है। आर्मी स्कूलों में भी पहले दिन से यही शिक्षा हम बच्चों को देते हैं कि किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए सदैव चौकन्ना रहना चाहिए। जहां तक मुझे लगता है उनकी सरकार में शामिल विभिन्न विचारधारा के लोगों के अलग-अलग एजेंडों के कारण ही नीतियों में सामंजस्य की कमी उत्पन्न हुई है। उनकी ये हरकतें उनके लोकतांत्रिक मानदंडों की विश्वसनीयता को कमजोर करेंगी। सेना और पुलिस की संयुक्त ताकतें भी असमर्थ हो चुकी हैं। कट्टरपंथी लोग वहां जजिया लागू करने की वकालत में हैं। ऐसे लोगों को यूनुस भी रोकने में असमर्थ या अनिच्छुक प्रतीत हो रहे हैं।

-बातचीत में जैसा कर्नल राजेश राघव ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा

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