Interview: संभल की मस्जिद में मंदिर होने का सबूत है, ‘बाबरनामा’ और ‘आईने-ए-अकबरी’: विष्णु शंकर जैन

Vishnu Shankar Jain
ANI

सभी जानते भगवान विष्णु अपना अगला अवतार कल्कि भगवान के रूप में लेंगे। संभल का पुराना नाम ‘संभलापुर’ होता था। रही बात विवाद की, तो ये सब सोची समझी साजिश का हिस्सा थी और कुछ नहीं? कानून-व्यवस्था दुरूस्त न होती, तो हालात और बिगड़ सकते थे।

मंदिरों के पुरातत्व अंशों व अवशेषों पर खोजी अभियानों ने सामाजिक सौहार्द पूरी तरह बिगाड़ दिया है। संभल में जो हुआ, वो सभी के सामने है। कईयों की जाने चली गईं। वहां की मस्जिद में ‘हरिहर मंदिर’ होने के दावे पर कोर्ट की अनुमति से सर्वे करने पहुंची टीम पर हमला और जमकर पथराव हुआ। हालात अभी भी नाजुक बनें हुए हैं। दरअसल, ये सर्वे 8 हिंदू पक्षकारों की याचिका पर कोर्ट के आदेश से हुआ है जिसकी पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन कर रहे हैं। सर्वे से क्या कुछ होगा हासिल? क्या सच में मस्जिद के भीतर से निकलेंगे मंदिर के अवशेष और वजूद? जैसे तमाम प्रश्नों के जवाब डॉ रमेश ठाकुर ने अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन से जानने की करी कोशिश।

  

प्रश्नः मस्जिदों-दरगाहों की जगह प्राचीन काल में मंदिर थे, ऐसा दावा हिंदू पक्षकार किन साक्ष्यों के आधार पर करते हैं?

सभी साक्ष्य लॉजिकल और हकीकत से लबरेज हैं। ‘बाबरनामा’ के पेज संख्या-687 में लिखा है कि संभल में मंदिर को मस्जिद में कैसे तब्दील किया गया था। मस्जिद का निर्माण बाबर के सेवक मीर बेग ने 1529 में करवाया था। इसके अलावा ‘आईने-ए-अकबरी’ के पेज संख्या-281 में भी साफ ज्रिक है कि कैसे ‘हरि मंडल मंदिर’ को मस्जिद बनाया गया। वहीं, एक और साक्ष्य जो सन 1879 की एएसआई की रिपोर्ट से उभरा है जिसमें मंदिर होने के तमाम सारे सबूत मिलते हैं। उनकी रिपोर्ट बताती है कि मस्जिद के खंबे मंदिर आकृति के बने हुए थे। संभल छोटे-छोटे टापुओं में बिखरा था। पूरा इलाका आज भी डॉ. रमेश ठाकुर  की गवाही देता है।

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प्रश्नः मस्जिदों में मंदिर खोजने वाली मुहिम से आखिर हासिल क्या होगा?

पहले से इसे मुहिम तो कतई न कहें, काले अध्याय से झूठ का पर्दा उठाने वाला अभियान कहें, तो बेहतर होगा। भारत सनातनी धरती की परंपरा है। विदेशियों ने आकर यहां आक्रमण किया, हमारी संस्कृति को तहस-नहस किया, मंदिरों को तोड़ा और जबरन मस्जिदों का निर्माण करवाया। इस हकीकत को सभी जानते हुए भी, अनजान बने हुए हैं। मैं तो कोर्ट की प्रत्येक जिरह में खुलकर कहता हूं कि डर नहीं है तो होने दीजिए बिना विरोध के सर्वे। अगर मंदिरों के पुरातत्व किस्से मस्जिदों से नहीं निकलते, तो हम खुद पीछे हट जाएंगे। सर्वे टीमों का विरोध बताता है कि ‘दाल में कुछ काला’ है। सर्वे से एक बात और निकलकर सामने आ रही है कि आखिर भारत में आने वाले समय में होने क्या वाला है? विदेशी ताकतें भारत को हर हाल में इस्लामिक देश बनाने पर तुली हैं। उनके नक्शेकदम पर कुछ लोग चल भी पड़े हैं।

प्रश्नः आपकी लड़ाई अदालती कम, धर्म युद्व वाली ज्यादा दिखती है?

देखिए, मैं वकील की हैसियत से अपना कार्य कर रहा हूं। कोई कुछ भी समझे, मुझे फर्क नहीं पड़ता? जहां तक आपने बात धर्मयुद्व की कही, तो इसके लिए किसी को निमंत्रण नहीं दिया जाता, जिसका जमीर जागेगा और खुद को जिंदा महसूस होगा, वह स्वंय इस लड़ाई में कूद पड़ेगा। हम आप जैसे पत्रकारों से भी ऐसी ही उम्मीद करते हैं, आएं साथ और सहेजे अपनी धरोहरें। यही वक्त है, जब सभी सनातनियों को तिरंगा ध्वज लेकर घरों से निकलना चाहिए। हमें अपने वजूद को फिर से जिंदा करना है, जिन्होंने कभी हमसे हमारा कुछ छीना था, उसे ब्याज सहित हासिल करने का समय आया हुआ है। ऐसा सुनहरा अवसर फिर कभी नहीं आएगा।

प्रश्नः ऐसी मस्जिद जहां दशकों से नमाज पढ़ी जा रही हो, वहां सनातनी अध्याय भला कैसे हो सकता है?

नमाज पढ़ने से कोई जगह मस्जिद नहीं हो जाती? देश की बड़ी-बड़ी जामा मस्जिदें कभी मंदिर हुआ करती थीं। बाबर, शाहजहां, मुगलों ने और उनके पूर्व के लोगों ने इन्हीं जगहों को चुन चुन कर कभी निशाना बना था। वो मुक्त कराने का अब वक्त आ गया है। मैंने कोर्ट में तथ्यात्मक एविडेंस और साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं कि संभल की मस्जिद कैसे मंदिर हुआ करती थी। ज्ञानवापी पर जिरह के वक्त भी मैंने कहा था कि वहां हमारे आराध्य भगवान महादेव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है, जो सर्वे में सच साबित हुए। संभल में भी ऐसा ही तस्वीर उभरेगी।

प्रश्नः संभल मस्जिद को लेकर आखिर विवाद उपजा क्यां?

सभी जानते भगवान विष्णु अपना अगला अवतार कल्कि भगवान के रूप में लेंगे। संभल का पुराना नाम ‘संभलापुर’ होता था। रही बात विवाद की, तो ये सब सोची समझी साजिश का हिस्सा थी और कुछ नहीं? कानून-व्यवस्था दुरूस्त न होती, तो हालात और बिगड़ सकते थे। देखिए, संभल मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम आदेश जारी करते हुए पहले ही कह दिया था कि सर्वे रिपोर्ट फिलहाल सार्वजनिक नहीं होगी और उसे सील बंद लिफाफे में ही सुरक्षित रखा जाएगा। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को भी अवसर दिया था कि वो निचली अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। बावजूद उन्होंने लीगल रेमेडी नहीं अपनाई। दरअसल, उनको सच्चाई पता है, वो नहीं चाहते सर्वे हो? ज्ञानवापी को लेकर भी उपद्रव हुआ था, बाद में सभी शांत हुए, संभ्ज्ञल में भी वैसा ही होगा। सर्वे रिपोर्ट जब सार्वजनिक होगी, वो भी तल्ख हकीकत से वाकिफ हो जाएंगे। मस्जिद कमेटी और मुस्लिम पक्ष के पास याचिका दायर करने की पूरी स्वतंत्रता है। कोर्ट जा सकते थे, उनका मामला भी लिस्टेड होता। पर, उन्होंने रुचि ही नहीं दिखाई?

-बातचीत में जैसा अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा

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