इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध से मानवता पर बढ़ गया है खतरा
सत्तर साल से फलस्तीन के नाम पर जो खून-खराबा हो रहा है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या इन इलाकों में दुश्मनियों को इंसानी रगों में पाला जाता है, ताकि मौका आने पर खून बहाया जा सके? क्या ऐसे इलाकों में युवा जवान ही इसलिए होते हैं कि इंसानियत को शर्मसार कर सकें?
रूस और यूक्रेन के बाद अब इजरायल और हमास के बीच धमासान युद्ध के काले बादल विश्व युद्ध की संभावनाओं को बल देते हुए लाखों लोगों के रोने-सिसकने एवं बर्बाद होने का सबब बन रहे हैं। युद्ध की बढ़ती मानसिकता विकसित मानव समाज पर कलंक का टीका है। हमास ने नासमझी दिखाते हुए आतंकी हमला करके सोये शेर को जगा दिया है। आतंकी हमले का पहला राउंड इस मायने में पूरा हुआ माना जा सकता है कि उसे अंजाम देने वाले संगठन हमास ने कहा है कि उसका जो मकसद था वह पूरा हो चुका है और अब वह युद्धविराम पर बातचीत के लिए तैयार है। लेकिन प्रश्न है कि इजरायल इस हमले पर कैसे शांत रहेगा? उसके यहां हुए महाविनाश एवं व्यापक जनहानि के बाद उसके लिये कथित युद्धविराम प्रस्ताव का कोई अर्थ नहीं है? इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कड़े शब्दों में कहा कि युद्ध शुरू तो हमास ने किया है, लेकिन खत्म हम करेंगे। दुश्मनों ने अंदाजा भी नहीं लगाया होगा कि उन्हें इसकी कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी।’’ आज दुनिया से आतंकवाद को खत्म करना प्रमुख प्राथमिकता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में इजरायल के साथ है। भारत युद्ध का अंधेरा नहीं, शांति का उजाला चाहता है, लेकिन कोई जबरन हिंसा एवं आतंक को पनपाता है तो उसे नियंत्रित करने के लिये उचित कदम उठाने की होंगे।
हमास के सरगना मोहम्मद डेफ ने इस हमले को महान क्रांति का दिन बताते हुए कहा कि ‘हमने इसरायल के विरुद्ध नया सैन्य मिशन शुरू किया है। बस अब बहुत हो गया। अब हम और बर्दाश्त नहीं करेंगे।’ इस पर गुस्साए इजरायल ने भी आधिकारिक तौर पर ‘हमास’ के विरुद्ध युद्ध का ऐलान करके इसे ‘आप्रेशन आयरन स्वोर्ड्स’ नाम दिया है तथा गाजा पट्टी के इलाके में 17 ठिकानों पर इजरायल वायु सेना के लड़ाकू जैट विमानों द्वारा ताबड़तोड़ हमले किए जा रहे हैं। जहां तक इजरायल की जवाबी कार्रवाई का सवाल है तो इतना तो तय है कि बात यहीं नहीं रुकेगी, जंग का दूसरा राउंड शायद पहले से ज्यादा भीषण एवं महाविनाशक होगा, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि नेतन्याहू सरकार इसे किस तरह से अंजाम देगी। फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि गाजापट्टी उसके हमलों का निशाना बनेगी। गाजा पट्टी में हमास का प्रभाव जरूर है, लेकिन वहां 23 लाख लोग रह रहे हैं जिनका एक बड़ा हिस्सा हमास की गतिविधियों और योजनाओं से अनजान होगा। ऐसे बेकसूर लोग जितनी बड़ी संख्या में इजरायली कार्रवाई के शिकार होंगे, मानवाधिकार का सवाल उतने बड़े रूप में उभरेगा और फलस्तीनियों के लिए तथाकथित सहानुभूति भी जुट सकती है।
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विश्व शांति, अमन एवं अहिंसक समाज रचना दुनिया की जरूरत है, लेकिन हमास जैसी आतंकी सोच इसकी सबसे बड़ी बाधा है, इसलिये हमास की जितनी निंदा की जाए कम है। जिस संगठन को बंदूक छोड़कर गाजा पट्टी के विकास में लगना चाहिए, वह संगठन धर्म-अधर्म के रास्ते ताकत सिर्फ इसलिए जुटाता है, ताकि इजरायल के शरीर पर पहले से कहीं गहरा छुरा धंसा सके, मर्माहत आघात कर सके? मोसाद बनाम हमास की लड़ाई मानो एक व्यवसाय बन गई है, विकृत एवं हिंसक मानसिकता का स्थायी घर बन चुकी है। दोनों देशों की सत्ताएं आखिर शांति एवं अमन का सबक क्यों नहीं लेती? स्वयं अपने देश में स्थायी शांति के प्रति गंभीर क्यों नहीं होती है? आज उन्हें स्थायी शांति के उपायों पर जोर देना चाहिए, दुनिया को ऐसे देशों की जरूरत है, जो आतंकमुक्ति को सही दिशा में प्रेरित करें, ताकि पश्चिम एशिया के खूनी दलदल को हमेशा के लिए पाटा जा सके।
अभी लेबनान की तरफ से हिजबुल्ला के कुछ हमले हुए हैं लेकिन लेबनान सरकार उस इलाके में शांति और स्थिरता बने रहने की इच्छा जताने तक सीमित है। ईरान और सऊदी अरब ने भी फलस्तीनियों के हक में शांति कायम करने की कोशिश की बात कही है। अगर बात बढ़ी और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमास के लिए समर्थन बढ़ा तो हालात बदतर ही होंगे। दुनिया को लगातार युद्ध, आतंक, अशांति, हिंसा की ओर धकेलने वालों से सवाल पूछना ही होगा कि युद्ध एवं आतंक से हासिल क्या होगा? सबसे पहले धर्मगुरुओं से और उसके बाद राजनीतिक आकाओं से यह समझना होगा कि ऐसी युद्ध एवं आतंक की मानसिकता से किसका भला हो रहा है? निर्दोषों की हत्याएं भला कैसे जायज हैं? अगर ऐसी हत्याएं जायज हैं, तो फिर मजहबों के मानवीय एवं शांतिप्रिय होने का बखान बंद होना चाहिए। बुरा आदमी और बुरा हो जाता है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है। दुनिया में छोटी-छोटी बातों पर लोगों के दिल आहत हो जाते हैं, पर हजारों निर्दोष एवं मासूक बच्चों एवं महिलाओं की मौत से कौन आहत हुआ है? कहां है मानवता? कहां है विश्वशांति का स्वप्न? निश्चित ही हिंसा की धरती पर शांति की पौध नहीं उगायी जा सकती।
लगभग सत्तर साल से फलस्तीन के नाम पर जो खून-खराबा हो रहा है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या इन इलाकों में दुश्मनियों को इंसानी रगों में पाला जाता है, ताकि मौका आने पर खून बहाया जा सके? क्या ऐसे इलाकों में युवा जवान ही इसलिए होते हैं कि इंसानियत को शर्मसार कर सकें? कोई ऐसे दाग-धब्बों के साथ अपने देश का इतिहास लिखता है क्या? बड़ा प्रश्न है कि इस व्यापक हिंसा एवं आतंक को रोकने वाला कौन होगा? कोई आतंकी हमास के साथ दिख रहा है, तो कोई इजरायल के लिए लुट-मिट जाने को बेताब है? बात हर तरफ विनाश की है। युद्ध एवं आतंक करने वाले और उनको प्रोत्साहन देने किसी को भी आज तक ऐसा कोई महत्वपूर्ण प्रोत्साहन नहीं मिला, जो उसे गौरवान्वित कर सका हो। जब तक आतंक एवं युद्ध की मानसिकता वाले राष्ट्रों के अहंकार का विसर्जन नहीं होता तब तक युद्ध की संभावनाएं मैदानों में, समुद्रों में, आकाश में भले ही बन्द हो जाये, दिमागों में बन्द नहीं होती। इसलिये आवश्यकता इस बात की भी है कि कि जंग अब विश्व में नहीं, हथियारों में लगे, आतंक एवं हिंसक मानसिकता पर लगे। मंगल कामना है कि अब मनुष्य यंत्र के बल पर नहीं, भावना, विकास और प्रेम के बल पर जीए और जीते।
इस हिंसक, आतंकी एवं युद्ध के दौर का दुखद पहलू है कि पुतिन का नया रूस भी यूक्रेन को निशाना बनाते हुए बच्चों एवं महिलाओं को नहीं बख्शता है। जहां अपने और पड़ोसी के कल्याण की चिंता होनी चाहिए थी, वहां केवल बदले की भावना हावी है। बर्बरता, क्रूरता, उन्माद एवं जघन्यता बढ़ती जा रही है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने उग्रवादी समूह को मलबे में फेंक देने की कसम खाई है। निर्ममता एवं बर्बरता की पराकाष्ठा कर रहे आतंकियों की जगह मलबे में ही है, पर उन मासूम बच्चों, औरतों और आदमियों का क्या दोष, जो कहीं से भी आतंकी नहीं हैं, मगर निशाना बन रहे हैं? क्या मानव सभ्यता में आंतकवाद के खिलाफ कोई भी लड़ाई दोषी और निर्दोष के बीच भेद किये बिना सफल हो सकती है। यह दुनिया की एक बड़ी आबादी को हर समय विनाश की संभावनाओं पर कायम रखने जैसा है। ऐसे युद्ध का होना विजेता एवं विजित दोनों ही राष्ट्रों को सदियों तक पीछे धकेल देगा, इससे भौतिक हानि के अतिरिक्त मानवता के अपाहिज और विकलांग होने का भी बड़ा कारण बनता है। युद्ध एवं विनाश की सघन होती स्थितियों के बीच उल्लेखनीय है कि इजराइल ने 1970 में ईराक द्वारा फ्रांस से खरीदे परमाणु प्लांट पर 1 मिनट 20 सैकेंड में 16 बम गिरा कर परमाणु प्लांट नष्ट करने में सफलता पाई थी। कहना मुश्किल है कि इस घटनाक्रम का अंजाम क्या होगा, फिलहाल यही कहा जा सकता है कि जितनी जल्दी यह विवाद सुलझ सके उतना ही दुनिया के लिए अच्छा होगा। पहले ही विश्व शांति खतरे में पड़ी हुई है, अब ‘हमास’ व इसरायल युद्ध ने यह खतरा और बढ़ा दिया है तथा अतीत में हो चुके दो विश्व युद्धों के बाद तीसरे विश्व युद्ध की आहट तेजी से सुनाई दे रही है। युद्ध विराम के साथ अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव जरूरी है। मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध की विभीषिका से मुक्ति देनी होगी, स्वयं अभय बनकर विश्व को निर्भय बनाना होगा। इसी से किसी एक देश या दूसरे देश की जीत नहीं बल्कि समूची मानव-जाति की जीत होगी।
-ललित गर्ग
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)
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