चिकित्सा विज्ञान ने काफी तरक्की की है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना शेष
ऑपरेशन कब हो गया पता ही नहीं चला। स्टाफ ने इतना जरूर कहा कि आपके ऑपरेशन में छह घंटे लगे हैं। ऑपरेशन तो दर्द रहित हो गया किंतु परेशानी की कहानी अब शुरू होती है। लगता है कि होंठ सूख रहें हैं। जीभ अकड़ रही है।
आजादी के बाद भारत में चिकित्सा विज्ञान ने बहुत तरक्की की। इंसान का जीवन काफी सरल कर दिया। गंभीर बीमारी का इलाज खोज लिया। दर्द रहित आपरेशन होने लगे। दिल−दिमाग समेत सभी क्षेत्र में तरक्की होने से आदमी बहुत आराम और सुख महसूस कर रहा है, किंतु इतना सब होने के बाद भी अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। मरीज की छोटी−छोटी परेशानी के इलाज के भी उपाए करने होंगे।
चिकित्सा विज्ञान इंसान के जीवन को सरल करने की हर बेहतर कोशिश में लगा है, इस सबके बावजूद अभी बहुत कुछ होना है। हाल में गुजरात में राजकोट के स्टर्लिंग हास्पिटल में मेरे हृदय की बाई−पास सर्जरी हुई। छोटे बेटे के पास यहां आए थे। यहीं तबियत खराब होने का पता चला। इसलिए मुझे यहीं आपरेशन कराना पड़ा। मुझे सवेरे सात बजे आपरेशन थियेटर में ले लिया गया। आपरेशन थियेटर की टेबिल पर मुझे लिटाकर स्टाफ मेरे हाथ टेबिल में बांधता है। यहां तक मुझे याद है। अब तक सिर्फ दो आपरेशन थियेटर सहायक ही मेरे आसपास थे। इसके बाद कब चिकित्सक आ गए। कब आपरेशन हो गया। मुझे कुछ पता नही। दोपहर बाद दो बजे के आसपास मुझे लगा कि रोशनी जली है। मुंह में भी कोई पाइप का चुभा। मैनें आंख खोलीं। एक बड़े हाल में कुछ बैड पर मेरे जैसे मरीज लेटे थे। सामने लगी घड़ी दो बजा रही थी। मेरे मुंह में दिया हुआ पाइप हल्का चुभ रहा था। बोलना चाहा तो लगा कि किसी चीज से मुंह बंद किया हुआ। थकान महसूस हुई। मैंने आंखे बंद कर लीं। ये भी लगा कि सात घंटे बाद होश आया है। कुछ समय बाद लोगों के बोलने की आवाज आई। आंखे खोली तो डाक्टर के साथ मास्क लगाए मेरे बिस्तर के पास मेरी पत्नी खड़ी है। उसके पूछने पर मैने इशारों से कहा कि ठीक हूं। डाक्टर ने मुझे बताया कि आपरेशन बढिया हुआ है। सब ठीक है। चिंता की कोई बात नहीं। डॉक्टर का आभार जताने के लिए मैं हाथ जोड़ना चाहता हूं कि लगता है कि हाथ अभी टेबिल में बंधे हैं। पत्नी मुझे देखकर चली जाती हैं। कुछ देर में स्टाफ मुंह से टेप हटाकर मुंह में दी टयूब निकाल देता है। हाथ भी खोल दिए जाते हैं। अब मैं आराम महसूस कर रहा हूं।
ऑपरेशन कब हो गया पता ही नहीं चला। स्टाफ ने इतना जरूर कहा कि आपके ऑपरेशन में छह घंटे लगे हैं। ऑपरेशन तो दर्द रहित हो गया किंतु परेशानी की कहानी अब शुरू होती है। लगता है कि होंठ सूख रहें हैं। जीभ अकड़ रही है। देखरेख के लिए तैनात स्टाफ नर्स से मैं पीने के लिए पानी मांगता हूं। वह मनाकर देती है। कहती है कि शाम छह बजे चाय दी जाएगी। उसके पच जाने पर थोड़ा−थोड़ा पानी मिलेगा। राउंड पर आए डॉक्टर से मैं होंठ सूखने और जीभ के अकड़ने की बात कहतां हूं। वह कहते हैं कि इसे तो बर्दाश्त करना होगा। किंतु होंठ भिगोने के लिए एक−दो बूंद पी देने के कह जाते हैं। एक महीना इसी में निकल जाता है। मुंह में छाले हो जाने से कुछ खाना संभव नही होता। न खाने से सूखी उलटी होती हैं। दर्द रहित आपरेशन के बाद चिकित्सा विज्ञान को इस एक माह की परेशानी का इलाज भी खोजना होगा।
इसे भी पढ़ें: BJD Vs BJP की लड़ाई में कौन मारेगा बाजी? अबकी बार Odisha में किस पार्टी की बनेगी सरकार?
एक बात और उत्तर प्रदेश और दिल्ली एनसीआर में ऑपरेशन को जाने वाले को ऑपरेशन की जरूरत के लिए खून का प्रबंध खुद करना प़ड़ता है। मैं इसी को लेकर परेशान था कि हम तो घर से बहुत दूर यहां गुजरात में हैं, हमें खून कौन देगा कौन तीमारदारी करेगा, किंतु अस्पताल में पता भी नहीं चला। आपरेशन के स्टीमेंट में दो बोतल ब्लड का मूल्य जुड़ा देखकर मैं संतुष्ठ हो गया कि अब रक्त का प्रबंध हमें नहीं करना होगा। अस्पताल करेगा।
आपरेशन के बाद और बाद में आईसीयू और अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान स्टाफ का व्यवहार और सेवा कार्य लाजवाब था।
रविवार 12 मई को अंतराष्ट्रीय नर्सेज डे मनाया गया। राष्ट्रीय नर्स सप्ताह प्रत्येक वर्ष छह मई को शुरू होता है और 12 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन पर समाप्त होता है। फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल को आधुनिक नर्सिग आन्दोलन का जन्मदाता माना जाता है। दया व सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल "द लेडी विद द लैंप" (दीपक वाली महिला) के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका जन्म एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था। लेकिन उच्च कुल में जन्मी फ्लोरेंस ने सेवा का मार्ग चुना।
आज अस्पताल के स्टाफ और उसके कार्य को देखता हूं तो सभी नर्स में मुझे फ्लोरेंस नाइटिंगेल नजर आती हैं। सेवा करते वह कभी बहिन नजर आती है तो कभी बेटी और कभी मां। ये अलग बात है कि ये पैसे के लिए अस्पताल में कार्य कर रही है किंतु इनका समर्पण कहीं भी फ्लोरेंस नाइटिंगेल से कम मुझे नजर नहीं आया। चिकित्सक भी अपने में लाजवाब हैं। मेरे हृदय का आपरेशन करने वाले डॉ. सर्वेशवर प्रसाद हृदय के प्रतिदिन तीन−चार आपरेशन करते हैं किंतु न उनके चेहरे पर कभी तनाव नजर आता है, थकान। ये ही हालत डॉ. सर्वेशवर प्रसाद के जूनियर्स की भी है। फोन पर डाक्टर और उनके सहायक दिन राज− उपलब्ध हैं। उनके कार्य सेवाभाव और समर्पण को देखकर लगता है कि यह सब ऐसे ही नही है। इसके लिए उनका त्याग और मरीज के लिए सेवाभाव उन्हें प्रसिद्धि दे रहा है।
ऑपरेशन के दूसरे दिन स्टाफ मुझे ही नहीं, हृदय के आपरेशन के सभी मरीज को सहारा देकर बैठाकर देता है। बाद में उसे खड़ाकर धीरे−धीरे हाल में घुमाया जाता है। एक से दो घंटे के लिए कुर्सी पर बैठाया जाता है। कहा जाता है कि आपका आपरेशन हो गया। अब नियमित जीवन शुरू की जीइए। घूमिए।
इतना सब होने के बाद महसूस होता है कि अन्य अस्पतालों की तरह इस अस्पताल में भी लोकल कंपनी की अधिकतर दवाएं मल्टीनेशनल कंपनी से काफी मंहगी है। मेरे आपरेशन के टांकों में पानी आने के कारण मुझे इंट्रावेनस एंटीबाइटिक इंजेक्शन लिखा जाता है। ये इंजेक्शन अस्पताल में मेडिकल स्टोर पर 1100 रूपये के आसपास है, जबकि राजकोट के दवाई के होलसेल मार्केट में यह तीन सौ रूपये का मिल रहा है। होलसेल मार्केट में बस दवाई का बिल नहीं मिलता। सरकार को अस्पताल के मेडिकल स्टोर पर बिकने वाली दवा पर नियंत्रण करना पडेगा। एक चीज और देखने में आई कि प्रधानमंत्री आयुष्मान कार्ड योजना के कार्डधारक अब अस्पताल में निशुल्क चिकित्सा सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। लगभग सभी अस्पताल में आपरेशन के लिए आने वालों से रिसेप्शन पर ही पूछा जाता है कि आयुष्मान कार्ड है। कार्ड देने पर मरीज के प्राय− लगभग सभी आपरेशन पूरी तरह निशुल्क हैं। इसमें कोई भेदभाव नही। मरीज हिंदू हो या मुस्लिम बस कार्डधारक होना चाहिए। प्रधानमंत्री आयुष्मान कार्डधारक की चिकित्सा सरकार ने निशुल्क करके आम आदमी का उपचार बहुत सरल कर दिया। उसका जीवन सरल बना दिया। इस योजना में अभी सुधार की जरूरत है। किसी भी प्राइवेट मेडिक्लेम में आपरेशन के बाद दो महीने का दवा का व्यय भी कंपनी की ओर से देय है, जबकि आयुष्मान योजना में अस्पताल की ओर से मात्र दस दिन की दवा देने का प्रबंध है, जबकि काफी मरीजों का उपचार लंबा चलता है। देखने में आया है कि कुछ अस्पताल आपरेशन के बाद की दस दिन की दवा भी मरीज को नही देते। इसलिए इस योजना में अभी बहुत सुधार की जरूरत है।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
अन्य न्यूज़