दंगाइयों पर कार्रवाई संबंधी योगी के अध्यादेश पर इसलिए तिलमिला रहे हैं विपक्षी दल
सीएए के नाम पर देशभर के साथ-साथ लखनऊ सहित पूरे प्रदेश में दंगे और आगजनी के पीछे कौन-सी शक्तियां खड़ी हैं और इसके पीछे की साजिश क्या है, इस बात का पता मोदी-योगी सरकार और भारतीय जनता पार्टी सहित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी अच्छी तरह से है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लखनऊ में हिंसा के दौरान तोड़फोड़ तथा अन्य नुकसान की भरपाई के लिए उपद्रवियों के पोस्टर सड़क-चौराहों पर क्या लगवाए न्यायपालिका से लेकर सियासतदार तक योगी की घेराबंदी में लग गये हैं। अदालत पूछ रही है कि किस कानून के तहत पोस्टर लगे हैं तो भाजपा विरोधी राजनैतिक ताकतों को लग रहा है कि योगी सरकार का सड़क-चौराहों पर पोस्टर लगाने का सिर्फ इतना मकसद है कि मुसलमानों को डरा-धमका कर रखा जाए, इसको लेकर सपा-बसपा और कांग्रेस योगी सरकार पर हमलावर भी हैं। लेकिन लगता है कि योगी सरकार दबाव में आने वाली नहीं है। उसे पता है कि पहले दंगा और उसके बाद दंगाइयों द्वारा अपने आप को पुलिस एवं सरकार के उत्पीड़न का शिकार बताकर हो-हल्ला मचाना दबाव की रणनीति का हिस्सा है। इसीलिए तो योगी बार-बार कह रहे हैं कि सड़क पर चाकू और तमंचे लहरा कर दहशत फैलाने वालों की आरती नहीं उतारी जाएगी। मगर यह बात न तो कोर्ट के गले उतरी, न ही मुस्लिम वोट बैंक की सियासत करने वालों को हजम हो रही है।
खैर, पहले बात हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की कि जाए जिसने योगी सरकार से पूछा था कि किस कानून के तहत उपद्रवियों के फोटो और पते युक्त पोस्टर सड़क पर लगाए गए हैं तो इसकी काट निकालने के लिए योगी सरकार अध्यादेश ले आई है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने विरोध प्रदर्शनों, आंदोलनों, जुलूसों और धरने के दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को क्षति पहुंचाने वाले लोगों से नुकसान की भरपाई के लिए उत्तर प्रदेश रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश, 2020 के ड्रॉफ्ट को मंजूरी दी है। अब योगी सरकार न्यायपालिका को बात देगी कि किस कानून के तहत लखनऊ की सड़क पर दंगाइयों से वसूली के लिए पोस्टर लगाए गए हैं।
इसे भी पढ़ें: दंगाइयों पर कार्रवाई हुई तो सवाल पर सवाल, खुश होंगे वो जिन्होंने मचाया था बवाल !
गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान हुई हिंसा में दंगाइयों से वसूली को लेकर कानूनी पहलू पर योगी आदित्यनाथ सरकार पर तमाम तरह के सवाल उठ रहे थे जिसका प्रदेश सरकार ने कानून लाकर हल निकाल लिया है। सरकार ने स्पष्ट किया कि वह दंगाइयों के आगे किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं है और इस मामले पर फ्रंटफुट पर ही बैटिंग करेगी। राजधानी लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शनों के दौरान संपत्तियों को क्षति पहुंचाने वाले लोगों से नुकसान की भरपाई के लिए लगाये गए उनके फोटो और पतायुक्त होर्डिंग व पोस्टर को हटाने के हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई योगी आदित्यनाथ सरकार ने यह अहम फैसला किया है। अब देखना यह होगा कि हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में लखनऊ प्रशासन को 16 मार्च तक दंगाइयों के सड़क से पोस्टर हटाने की जो समय सीमा दी थी, उसके बाद भी पोस्टर नहीं हटने पर हाईकोर्ट का क्या रवैया रहता है।
बहरहाल, कहा यह जा रहा है कि योगी सरकार दंगाइयों से वसूली के खिलाफ सख्त अध्यादेश के माध्यम से हाईकोर्ट नहीं सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूत करना चाहती है। यह बात वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना की बातों से भी लगती है। वह कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका (क्रिमिनल) संख्या-77/2007 और इसके साथ संलग्न याचिका (क्रिमिनल) संख्या-73/2007 की सुनवाई करते हुए विशेष रूप से राजनीतिक जुलूसों, विरोध प्रदर्शनों, हड़तालों और आंदोलनों के दौरान संपत्तियों को क्षति पहुंचाने की गतिविधियों की वीडियोग्राफी कराकर दोषियों से नुकसान की भरपाई कराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए राज्य सरकार ने यह अध्यादेश लाने का फैसला किया है।
इसे भी पढ़ें: साहसिक फैसले लेने में माहिर योगी अब लाएंगे जनसंख्या नियंत्रण नीति
दरअसल, सीएए के नाम पर देशभर के साथ-साथ लखनऊ सहित पूरे प्रदेश में दंगे और आगजनी के पीछे कौन-सी शक्तियां खड़ी हैं और इसके पीछे की साजिश क्या है, इस बात का पता मोदी-योगी सरकार और भारतीय जनता पार्टी सहित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी अच्छी तरह से है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा का दंगाइयों के घर जाकर थोथी साहनुभूति जताना हो या फिर समाजवादी पार्टी और बसपा द्वारा मोदी-योगी सरकार और सीएए का काल्पनिक भय दिखाकर मुसलमानों को डराने की साजिश सब वोट बैंक की सियासत है। इसके विपरीत दंगे में जान-माल का नुकसान उठाने वाले लोगों का दर्द किसी को नहीं दिख रहा है। वैसे तो सपा-बसपा और कांग्रेस सहित अन्य तमाम दलों के छोटे-बड़े नेता सीएए के खिलाफ और दंगाइयों के पक्ष में दबी जुबान से सधे लहजे में बोल रहे थे, ताकि मुसलमानों को लुभाने के चक्कर में कहीं हिन्दू वोटर उससे नाराज नहीं हो जाए, लेकिन जब हाईकोर्ट ने दंगाइयों के पोस्टर सड़क पर लगाए जाने को लेकर योगी सरकार पर तख्त टिप्पणी की तो इन दलों को योगी सरकार के खिलाफ आग उगलने का नया मौका मिल गया।
हद तो तब हो गई जब समाजवादी पार्टी ने सभी मर्यादाओं को तिलांजलि देकर लखनऊ के मुख्य मार्गों पर भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे नेताओं के फोटो होर्डिंग्स पर लगाकर सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया। सबसे दुखद यह था कि होर्डिंग्स उन नेताओं (सेंगर और चिन्मयानंद) के लगाए गए थे जिनका अब भाजपा से वास्ता भी नहीं है और जिनके मामले कोर्ट में चल रहे हैं। यह और बात है कि प्रशासन ने ऐसे सभी होर्डिंग्स को हटवा दिया था। सपा ही नहीं कांग्रेस भी इस दौड़ में शामिल हो गई और उसने भी लखनऊ के मुख्य मार्गों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के साथ भाजपा के अन्य नेताओं की फोटो वाले पोस्टर्स और होर्डिंग्स शहर के मुख्य मार्गों पर लगवा दिए। यह पोस्टर्स तथा होर्डिंग्स कांग्रेस के युवा नेता सुधांशु बाजपेयी व लल्लू कनौजिया ने लगवाए। इसमें भी इन लोगों बड़ी भूल कर दी। इन सभी ने भाजपा विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल के स्थान पर केंद्रीय मंत्री कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह की फोटो को लगा दिया। यहां यह भूल गये कि नकल में भी अकल की जरूरत होती है।
-अजय कुमार
अन्य न्यूज़