कोलकाता रेप-मर्डर केस ने एक बार फिर हमारी प्रशासनिक कमजोरियों को उजागर कर दिया, आखिर ऐसा कबतक?

Kolkata rape murder case
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कमलेश पांडे । Aug 31 2024 12:35PM

आपने देखा होगा कि एक ओर तृणमूल कांग्रेस नेत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि पश्चिम बंगाल में आग लगाने की साज़िश हो रही है। अगर पश्चिम बंगाल जलेगा तो असम, पूर्वोत्तर राज्य, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और दिल्ली भी जलेंगे।

दिल्ली निर्भया बलात्कार हत्याकांड के लगभग 12 वर्ष बाद कोलकाता रेप-मर्डर केस की पुनरावृत्ति भारतीय जनतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था पर गम्भीर सवाल खड़ा करती है। वहीं, इन दोनों मामलों को जरूरत से ज्यादा तूल देने और अन्य समकक्ष घटनाओं की उपेक्षा करने में हमारे राजनेताओं और मीडिया की भूमिका भी संदेह के कठघरे में है! कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर की रेप और हत्या के मामले में पश्चिम बंगाल में जिस तरह की राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ी हुई हैं, उससे हर कोई भयभीत नहीं तो चिंतित अवश्य लग रहा है, क्योंकि यह सबकुछ भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले कोलकाता में घट रहा है, जिससे देर-सबेर हमारी संस्कृति भी अछूती नहीं बचेगी।

लिहाजा, सुलगता हुआ सवाल यह है कि आखिर में ऐसी बदसूरत घटनाएं कब तक थमेंगी? और यदि नहीं रुकेंगी तो फिर समकालीन संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की जरूरत ही क्या है? क्योंकि यह व्यवस्था सबके वेतन-भत्ते की गारंटी तो देता है, लेकिन किसी भी बड़ी या छोटी लापरवाही के बाद जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय नहीं करता है! यही वजह है कि सत्ताधारी वर्ग मजे में रहता है और जनता बिल्कुल अनाथ की मानिंद। इसलिए अकसर यह सवाल जेहन में उठता है कि आखिर में क्यों नहीं उस वैकल्पिक प्रशासनिक व्यवस्था पर विचार किया जाए, जहां इस तरह के जघन्य अपराध करने की हिमाकत ही कोई कर नहीं पाए। क्या यह संभव है? नई विश्व व्यवस्था के नजरिए से कतई असंभव नहीं है।

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आपने देखा होगा कि एक ओर तृणमूल कांग्रेस नेत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि  पश्चिम बंगाल में आग लगाने की साज़िश हो रही है। अगर पश्चिम बंगाल जलेगा तो असम, पूर्वोत्तर राज्य, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और दिल्ली भी जलेंगे। वहीं, दूसरी ओर राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का बयान आया है कि चिंतित हूँ और डरी हुई हूँ। इससे इस मामले की गम्भीरता और ज्यादा बढ़ चुकी है। सबको अंदेशा है कि पश्चिम बंगाल की नाजुक परिस्थितियों के मद्देनजर वहां पर कभी भी राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है, जो जरूरी भी है, वहां के निरन्तर घट रहे घटनाओं के मद्देनजर। विरोध-प्रदर्शन, बंद और हिंसा की घटनाओं के बीच प्रदेश के राज्यपाल सीवी आनंद बोस जब दिल्ली के लिए रवाना हो गए, तो इससे इन अटकलों को और अधिक बल मिला है। 

बता दें कि गत गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांता मजूमदार और वरिष्ठ नेताओं ने राज्यपाल से मुलाक़ात कर एक ज्ञापन सौंपा था और उनसे 'अनुरोध' किया था कि वह पश्चिम बंगाल में 'संवैधानिक मूल्यों की रक्षा' करें। इससे पहले गत 27 अगस्त को राज्यपाल ने भी एक बयान जारी कर 'पश्चिम बंग छात्र समाज' के बुलाए गए 'नबन्ना मार्च' (सचिवालय पर प्रदर्शन) के दौरान हुई हिंसा को लेकर राज्य सरकार की आलोचना की थी।

लिहाजा, यहां पर एक और सुलगता हुआ सवाल उठता है कि क्या दिल्ली की जमी-जमाई मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को निर्भया कांड की आड़ में 'निपटाने' योग्य माहौल बनाने के बाद अब बंगाल की जमी-जमाई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी कोलकाता दुष्कर्म हत्याकांड के बहाने 'निपटाने' योग्य माहौल बनाने की जिम्मेदारी कतिपय लोगों ने ले ली है, जैसा कि मीडिया के माहौल को देखकर प्रतीत हो रहा है। या फिर यह सब एक लोकतांत्रिक दस्तूर बन चुका है, जो किसी भी घटना के बाद नजर आता है।

आखिर यह कौन नहीं जानता कि देश में चल रहे तमाम तरह के संगठित अपराधों को सत्ताधारी दल और प्रशासनिक महकमे के असरदार लॉबी का परोक्ष शह प्राप्त होता है, जिसकी कड़ी से जुड़े लोग यदा-कदा जघन्य से जघन्य अपराध करने तक से भी कोई गुरेज नहीं करते। इस पूरे प्रकरण में डॉ घोष की चर्चित भूमिका के दृष्टिगत यहां भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। इसलिए पुनः यही बात उठी है कि लोकतंत्र और बहुमत जुगाड़ के नाम पर हमारे सत्ताधारी नेता ऐसे तत्वों के खिलाफ आखिर कबतक अपने मुंह बन्द रखेंगे? क्योंकि जब वो विपक्ष में होते हैं तो ऐसे तत्वों के खिलाफ खूब बोलते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्हें सांप सूंघ जाता है और ऐसे तत्वों के खिलाफ खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं। इसलिए अब एक ऐसी पारदर्शी व्यवस्था की जरूरत है जहां लोकतंत्र और बहुमत के जुगाड़ के खातिर कोई भी सियासी या सामाजिक व्यक्ति गलत को नजरअंदाज करने की हिमाकत ही नहीं कर पाए और यदि करे भी तो उसकी भारी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहे। ऐसी व्यवस्था अभी तो सम्भव प्रतीत नहीं होती! 

वहीं, पश्चिम बंगाल की राजनीति पर नज़र रखने वाले बताते हैं कि मुख्यमंत्री के हालिया अटपटे बयानों से यह प्रतीत हो रहा है कि आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में बलात्कार और हत्या की घटना के बाद आम लोगों में पनपे आक्रोश से ममता बनर्जी दबाव में हैं। उन्हें इतने दबाव में पहली बार देखा जा रहा है। वहीं कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें लगता है कि वह इससे जल्द ही उबर जाएंगी। ये सही है कि ये पहली बार नहीं है, जब ममता बनर्जी को आंदोलन का सामना करना पड़ रहा हो, लेकिन वो मानते हैं कि इस बार वो दबाव में इसलिए दिख रही हैं क्योंकि आम लोगों के बीच उनके शासन चलाने के तरीक़े की आलोचना हो रही है। 

खासकर महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार का ये रिकॉर्ड नहीं रहा है कि उसने किसी पीड़िता को इंसाफ़ दिलवाया हो या फिर इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वालों को कभी क़ानूनी शिकंजे में जकड़ा हो। इसलिए आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज की घटना के बाद आम लोगों और ख़ास तौर पर आम महिलाओं का ग़ुस्सा फूट पड़ा, जिसका तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेताओं, राज्य सरकार या ख़ुद ममता बनर्जी को अंदाज़ा नहीं था।

बताया गया है कि जिस तरह से कोलकाता पुलिस की भूमिका इस मामले को लेकर रही, जैसे एफ़आईआर दर्ज करने में देरी, पीड़िता के माता-पिता को ग़लत जानकारी दिया जाना या फिर घटना में 'सिविल वॉलंटियर' का शामिल होना-ये सब लोगों के ग़ुस्से को बढ़ाता रहा। कई चीज़ें एक साथ हुईं। जैसे मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और अन्य वरिष्ठ प्रशासकों की भूमिका। फिर अभियुक्त संजय राय पुलिस का ही हिस्सा है, बतौर एक सिविल वॉलंटियर। फिर 14 और 15 अगस्त की दरमियानी रात में आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में विरोध कर रहे जूनियर डॉक्टरों पर जो भीड़ का हमला हुआ, उससे कोलकाता पुलिस की छवि तो ख़राब हुई ही साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार भी आम लोगों के सवालों के घेरे में आ गई।

एक ओर कोलकाता रेप-मर्डर केस के बाद भाजपा सड़कों पर है तो इस मामले पर ममता की पार्टी में बाग़ी रुख़ के बीच अभिषेक बनर्जी की चुप्पी पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। कोलकाता में ममता सरकार के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन लगातार जारी है। पीड़िता के परिवार और जूनियर डॉक्टरों के आक्रोश के बावजूद आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष पर प्रशासनिक कार्रवाई ना करते हुए, उनको कोलकाता नेशनल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल का प्रिंसिपल बना दिया गया। वो भी तब जब उनके ख़िलाफ़ 'प्रशासनिक अनियमितताओं' के आरोपों की लिखित शिकायत राज्य सरकार के पास मौजूद थी।

यही वजह है कि पश्चिम बंगाल सरकार के रुख़ को लेकर कोलकाता हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी तल्ख टिप्पणियां कीं। इससे लोगों के बीच राज्य सरकार और ममता बनर्जी को लेकर आक्रोश भड़क गया। ऐसा पहली बार भी हुआ है कि आम लोगों के साथ-साथ, अलग-अलग ही सही, सभी विपक्षी दल, जैसे कांग्रेस और वाम दलों ने भी ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ इस घटना के बाद मोर्चा संभाला। दरअसल प्रशासन के ख़िलाफ़ लोगों का जो ग़ुस्सा फूट पड़ा, वह सिर्फ़ एक घटना की वजह से नहीं है बल्कि कई मुद्दे हैं, जिनको लेकर लोगों में आक्रोश पहले से ही पनप रहा था।

जानकार बताते हैं कि पार्टी के अंदर ही अभिषेक बनर्जी ने कई बार यह मुद्दा उठाया कि राज्य प्रशासन ठीक से काम नहीं कर रहा है। प्रशासन जिस तरह से चल रहा है, उसको लेकर भी लोगों में पहले से ही ग़ुस्सा था। जैसे जन प्रतिनिधियों की थाना प्रभारियों और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के सामने कुछ चलती ही नहीं थी।वैसे देखा जाए तो पश्चिम बंगाल में लोगों का राजनीतिक दलों पर से ही भरोसा कम होता जा रहा है। क्योंकि किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं की भाषा अगर आप सुनें तो एक तरह से उकसाने वाली भाषा बोलते हैं। पहले ये आरोप वाम दलों पर लगते थे मगर अब तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं पर भी इसी तरह के आरोप लग रहे हैं। इसलिए वो ग़ुस्सा आम लोगों में पनप तो रहा था, लेकिन आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज की घटना के बाद लोगों के सब्र का बांध टूट गया।

वहीं, जानकार कहते हैं कि जिस तरह का दबाव ममता बनर्जी पर पिछले एक-दो दिनों में बन गया है, उससे बाहर निकलने के लिए वह आक्रामक तेवर भी दिखा रही हैं। जिस तरह राज्य सरकार ने भारत बंद के दौरान गिरफ्तारियां की हैं या फिर 'पश्चिम बंग छात्र समाज' के 'नबन्ना मार्च' (सचिवालय मार्च) करने वालों पर क़ानूनी कार्रवाई की है, उससे वह फिर से चीज़ों को अपने हाथों में लेने की कोशिश कर रही हैं। 

तृणमूल कांग्रेस के नेता तो यहां तक कहते हैं कि हाल ही में लोकसभा के चुनावों में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी थी। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए हर हथकंडा अपनाया था, परन्तु जनता ने उन्हें नकार दिया इसलिए अब आर.जी. कर की घटना को लेकर बीजेपी अपनी राजनीति फिर से चमकाने की कोशिश कर रही है। वह राज्य में हिंसा और अराजकता फैलाने की कोशिश कर रही है। इस मामले में राज्य सरकार ने घटना के फौरन बाद कार्रवाई की और एक अभियुक्त को कुछ ही घंटों में पकड़ लिया। इसके बाद मामला सीबीआई के पास चला गया है, तो सवाल उन पर उठता है कि उन्होंने इतने दिनों में जांच में क्या प्रगति की है? भाजपा के लोग इस घटना को लेकर राज्य को अशांत करने की साज़िश कर रहे हैं, जिसका ममता बनर्जी ने भांडा फोड़ा है। तृणमूल नेताओं का आरोप है कि केंद्र सरकार और ख़ास तौर पर बीजेपी पश्चिम बंगाल को 'राज्यपाल के ज़रिए अस्थिर करने की कोशिश' कर रही है। इससे पहले भी संदेशखाली को लेकर बीजेपी ने पश्चिम बंगाल सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की कोशिश की थी।

वहीं, दूसरी ओर विपक्ष का ममता सरकार पर आरोप है कि पश्चिम बंगाल में अराजकता का माहौल तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने ही पैदा किया है। जैसे सामंतवादी व्यवस्था हुआ करती थी, ठीक उसी तरह से सरकार चलाई जा रही है। सभी क़ानून ताक पर रख दिए गए हैं। उदाहरण स्वरूप, अब सिविल वॉलंटियर की भूमिका को ही ले लीजिए। ये कौन हैं? ये कैसे नियुक्त हुए? ये पुलिस के साथ बिना किसी प्रशिक्षण के कैसे काम कर रहे हैं? जबकि इन्हीं में से एक सिविल वॉलंटियर आर. जी, कर मेडिकल कॉलेज की घटना का अभियुक्त है। इससे प्रतीत हो रहा है कि ये सब तृणमूल कांग्रेस के कैडर के हैं जो आम लोगों का दोहन करते हैं। जबकि भाजपा के लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं, तो हमलोग अराजक कैसे हुए? यह सरकार अपनी नाकामियों की वजह से घिर गई है। कोलकाता पुलिस ने जिस तरह से मामले को लेकर रुख़ अपनाया था, उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से उसे फटकार मिल चुकी है। वहीं, अब सीबीआई सही काम कर रही है? पीड़िता को इंसाफ़ हमारा  उद्देश्य है। 

खैर, इस वाकया से इतना तो स्पष्ट हो गया है कि दिल्ली महानगर के निर्भया कांड की दर्दनाक और लोमहर्षक त्रासदी से भी हमारे अन्य महानगरों ने कोई सीख नहीं ली, अन्यथा उसी तरह के एक और कांड की पुनरावृत्ति कदापि नहीं हुई होती। ऐसा नहीं है कि मुम्बई या चेन्नई जैसे महानगरों और अन्य शहरों में ऐसी छिटपुट वारदातें नहीं हुई होंगी या नहीं होती होंगी, लेकिन उन्हें मीडिया में कितनी तवज्जो मिलती है, जगजाहिर सा है। सवाल है कि डॉक्टर कोलकाता रेप केस जैसे महिला सुरक्षा के मामले में कहां चूक होती है और उसका क्या है सार्थक समाधान? 

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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