मोदी ब्रांड की छवि पर जो आघात हुआ है, उससे देश ही नहीं दुनिया भी हैरान है

narendra modi
ANI

भाजपा की सीट घटने से सिर्फ पार्टी के ही नेता हैरान और परेशान नहीं हैं बल्कि कई विदेशी नेता भी इस बात से हैरान हैं कि दिन-रात अपने देश के लिए काम करते रहने वाले प्रधानमंत्री को चुनावों में जनता ने क्यों सजा दे दी है।

भारत की राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला दशक काफी बड़े और कड़े फैसलों वाला रहा और उनके निर्णयों और नेतृत्व की धमक देश में ही नहीं पूरी दुनिया में रही जिसके चलते वह समूचे विश्व में सबसे लोकप्रिय राजनेता के रूप में उभरे। लेकिन साल 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम उनके लिए आश्चर्य लेकर आये जब उनकी पार्टी भाजपा ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया और सरकार बनाने के लिए दूसरे दलों पर निर्भर हो गयी। इन चुनाव परिणामों ने मोदी की अजेय रहने वाले नेता की छवि पर बहुत बड़ा असर डाला है जिसकी गूंज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनाई दे रही है। देखा जाये तो भारत में तो विपक्ष मोदी को राजनीतिक रूप से नुकसान पहुँचाना चाहता ही था साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई ऐसी शक्तियां थीं जोकि मोदी की ग्लोबल लीडर के रूप में पुख्ता होती छवि को नुकसान पहुँचाना चाहती थीं। कह सकते हैं कि भारत में विपक्ष को और विदेशों में भारत विरोधी शक्तियों को कहीं ना कहीं अपने मिशन में थोड़ी-बहुत कामयाबी मिल गयी है। लेकिन यह भी सत्य और एक तथ्य है कि मोदी की कार्यशैली मक्खन पर नहीं अपितु पत्थर पर लकीर खींचने की है इसलिए वह तीसरे कार्यकाल में अपने कामकाज से विरोधियों को तगड़ा जवाब अवश्य ही देंगे।

चुनाव परिणाम यह भी दर्शाते हैं कि 'अबकी बार 400 पार' के नारे की ही नहीं बल्कि 'मोदी है तो मुमकिन है' और 'जो राम को लाये हैं हम उनको लाएंगे' जैसे नारों की भी हवा पूरी तरह निकल गयी है। चुनाव प्रचार की बात हो या भाजपा के संकल्प पत्र में किये गये वादों की, सब कुछ 'मोदी की गारंटी' के ही इर्दगिर्द केंद्रित था इसलिए कहा जा सकता है कि मोदी ब्रांड की छवि पर सीधा असर पड़ा है। इसलिए अब समय आ गया है जब भाजपा को सिर्फ मोदी नाम के सहारे रहने की बजाय और भी पहलुओं पर काम करना पड़ेगा। जबसे मोदी केंद्र की राजनीति में आये हैं तबसे यही देखने को मिलता है कि पंचायत से लेकर संसद तक के चुनाव पर भाजपा सिर्फ मोदी नाम के सहारे ही रहती है। भाजपा ने चुनाव में 'मोदी की गारंटी' के अलावा 'विकास भी और विरासत भी' का नारा दिया था और करोड़ों लोगों के गरीबी रेखा से बाहर निकलने तथा भारत के सांस्कृतिक गौरव की बहाली की दिशा में उठाये गये कदमों का हवाला दिया था फिर भी वह स्पष्ट बहुमत से बहुत दूर रह गयी।

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दूसरी ओर, भाजपा की सीट घटने से सिर्फ पार्टी के ही नेता हैरान और परेशान नहीं हैं बल्कि कई विदेशी नेता भी इस बात से हैरान हैं कि दिन-रात अपने देश के लिए काम करते रहने वाले प्रधानमंत्री को चुनावों में जनता ने क्यों सजा दे दी है। आप दुनिया भर की समाचार वेबसाइटों को देखेंगे तो सभी ने मोदी की सीटें घटने पर हैरानी जताई है। इन चुनाव परिणामों ने मोदी के विदेशों में रुतबे को निश्चित रूप से प्रभावित किया है। दरअसल, जिस तरह का माहौल बनाया गया था उसमें ना तो देश में और ना ही दुनिया में किसी को इस तरह के चुनाव परिणामों की अपेक्षा थी। यही कारण है कि भाजपा तो अपने चुनावी प्रदर्शन पर मंथन कर ही रही है दुनिया के भी कई बड़े नेता भारत के चुनाव परिणामों को लेकर चर्चा कर रहे हैं और इसके कारणों की समीक्षा कर रहे हैं।

हम आपको यह भी बता दें कि साल 2024 में दुनिया के अधिकांश देशों में चुनाव होने हैं। कई छोटे-बड़े देशों में जून महीने की शुरुआत तक चुनाव हो चुके हैं और अमेरिका सहित कई अन्य देशों में चुनाव इस साल के अंत से पहले होने हैं। एक खास बात यह है कि अब तक जितने देशों में चुनाव हुए हैं उनमें से ज्यादातर में सरकारें वापस सत्ता में नहीं लौटी हैं लेकिन मोदी दस साल राज करने के बाद भी तीसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में लौट आये हैं। भले उनकी सीटों की संख्या कम हो गयी है लेकिन काम करने के लिए उनके पास स्पष्ट जनादेश है। मोदी ने जब 2014 में भारत सरकार की कमान संभाली थी तबसे दुनिया के तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष बदल चुके हैं लेकिन मोदी सत्ता में कायम हैं जिसका सीधा मतलब यही है कि जनता को उनके नेतृत्व और उनकी नीतियों में विश्वास है। यह विश्वास ही तो है कि विपक्ष के घोषणापत्र में की गयी फ्री की तमाम सौगातों की बजाय जनता ने मोदी के वादों को तवज्जो दी है।

इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल की आखिरी कैबिनेट बैठक की बात करें तो उसमें उन्होंने साफ कहा है कि हार-जीत राजनीति का हिस्सा है और नंबरगेम चलता रहता है। उन्होंने कहा है कि लेकिन इस सबका असर देश के विकास पर नहीं पड़ना चाहिए। वैसे देखा जाये तो लोकतंत्र में नंबरगेम ही मायने रखता है लेकिन मोदी के लिए इसका खास महत्व नहीं है। इस बात को हम गुजरात के उदाहरण से भी समझ सकते हैं। मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए भाजपा ने 2002 में 127 सीटों पर जीत हासिल की थी उसके बाद पार्टी अगले चुनाव में 117 सीटों पर और उसके बाद 116 सीटों पर पहुँच गयी थी। यही नहीं, मोदी के दिल्ली आने के बाद गुजरात में जो पहला विधानसभा चुनाव हुआ था उसमें भाजपा 99 सीटों पर आ गयी थी लेकिन 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने गुजरात में अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये थे। नंबरगेम ऊपर नीचे होता रहा लेकिन मोदी ने गुजरात के विकास को जरा भी प्रभावित नहीं होने दिया।

बहरहाल, देखा जाये तो लोकसभा चुनाव परिणाम से पहले तक माना जाता था कि देश में मोदी के बराबर का कोई नेता नहीं है लेकिन विपक्ष के तमाम नेताओं को जनता ने जो ताकत दी है उससे मोदी के आसपास अब कई नेता खड़े हो गये हैं। नई संसद में जो दलीय स्थिति बनी है और स्पष्ट बहुमत की बजाय गठबंधन सरकार की जो नौबत आई है उसको देखते हुए मोदी की चुनौतियां तो बढ़ गयी हैं लेकिन मोदी चुनौतियों को चुनौती देकर मंजिल पर समय से पहले पहुँचने वाले नेता हैं यह बात सबको याद रखनी चाहिए।

-नीरज कुमार दुबे

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