मोदी-शाह ने राजस्थान में वो कर दिखाया जो पहले का भाजपा नेतृत्व नहीं कर पाया था
वैसे मोदी-शाह की जोड़ी ने सिर्फ अपनी पार्टी में परिवर्तन नहीं किया है बल्कि परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए कांग्रेस को भी प्रेरित कर दिया है। कांग्रेस तमाम प्रयासों के बावजूद अशोक गहलोत से मुख्यमंत्री का पद नहीं छीन पाई थी।
भजन लाल शर्मा राजस्थान के नये मुख्यमंत्री होंगे। यह वाकई अपने आप में बड़ी खबर है लेकिन इससे भी बड़ी खबर यह है कि भाजपा नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के किसी दबाव में नहीं आया और प्रदेश की कमान पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को सौंप दी। यही नहीं, जिन दीया कुमारी का वसुंधरा राजे विरोध करती थीं उन्हें राज्य का नया उपमुख्यमंत्री बनाया जायेगा। खास बात यह रही कि विधायक दल की बैठक में भजन लाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव उन वसुंधरा राजे से करवाया गया जोकि चुनाव परिणाम आने के बाद से लगातार जयपुर के सिविल लाइन्स स्थित अपने घर पर विधायकों के साथ बैठक कर पार्टी नेतृत्व के समक्ष शक्ति प्रदर्शन कर रही थीं। यही नहीं, जब भजन लाल शर्मा राजभवन जाकर राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश कर रहे थे तब भी वसुंधरा राजे वहां उपस्थित थीं।
वसुंधरा राजे से कहां गलतियां हुईं?
देखा जाये तो राजस्थान में भाजपा के विपक्ष में रहने के दौरान पांच साल वसुंधरा राजे घर बैठी रहीं और विपक्ष के नेता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निवर्हन सही से नहीं किया। यही नहीं, निवर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जब यह खुलासा किया था कि सचिन पायलट की बगावत के दौरान वसुंधरा राजे ने भाजपा को उनकी सरकार गिराने से रोका था तो यह भी साफ हो गया था कि वसुंधरा राजे गहलोत के साथ तो राजनीतिक मित्रता निभा रही हैं लेकिन उस पार्टी का वह साथ नहीं दे रही हैं जिसने उन्हें दो बार मुख्यमंत्री बनाया। हम आपको याद दिला दें कि स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत और जसवंत सिंह जैसे भाजपा के कद्दावर नेता वसुंधरा राजे के विरोध में थे लेकिन अटल-आडवाणी की जोड़ी ने फिर भी उन्हें 2003 में मुख्यमंत्री बना दिया था। मुख्यमंत्री बनते ही वसुंधरा राजे ने सरकार और संगठन पर ऐसी पकड़ बनाई थी कि राजस्थान में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की कुछ चलती ही नहीं थी। वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी के अध्यक्षीय कार्यकाल में तो वसुंधरा राजे ने पार्टी नेतृत्व की सुनी ही नहीं लेकिन अब मोदी-शाह के युग में भाजपा नेतृत्व ने वह काम कर दिखाया है जोकि कभी सोचा भी नहीं जा सकता था। भाजपा ने इस बार विधानसभा चुनावों के दौरान शुरू से ही वसुंधरा राजे को किनारे कर रखा था। पहले उन्हें परिवर्तन यात्राओं की कमान नहीं सौंपी गयी, फिर उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी नहीं बनाया गया और चुनाव परिणाम आने के काफी दिनों बाद नेतृत्व के मुद्दे पर चर्चा के लिए उन्हें दिल्ली बुलाया गया। देखा जाये तो संकेत पहले से स्पष्ट थे कि वसुंधरा राजे को कमान नहीं सौंपी जायेगी।
क्या कांग्रेस भी कर पायेगी नेतृत्व में परिवर्तन?
वैसे मोदी-शाह की जोड़ी ने सिर्फ अपनी पार्टी में परिवर्तन नहीं किया है बल्कि परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए कांग्रेस को भी प्रेरित कर दिया है। कांग्रेस तमाम प्रयासों के बावजूद अशोक गहलोत से मुख्यमंत्री का पद नहीं छीन पाई थी और अब भी गहलोत जिस तरह से पार्टी में प्रभावी हैं उसके चलते कांग्रेस में सचिन पायलट का भविष्य अधर में ही है। संभव है भाजपा से सीख लेते हुए कांग्रेस भी अशोक गहलोत की बजाय पायलट या किसी अन्य को कमान सौंपे। कांग्रेस यदि अशोक गहलोत को किनारे लगाती है तो राजस्थान की राजनीति से गहलोत-वसुंधरा युग खत्म हो जायेगा।
बहरहाल, जहां तक राजस्थान में भाजपा की ओर से गठित नई टीम की बात है तो यह स्पष्ट है कि जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सारे फैसले किये गये हैं। तीन राज्यों में सरकार बनाने वाली भाजपा ने एक प्रदेश में आदिवासी, दूसरे में ओबीसी और तीसरे में सवर्ण को सत्ता की कमान सौंपी है। साथ ही यदि सिर्फ राजस्थान की ही बात करें तो मुख्यमंत्री पद सवर्ण को, उपमुख्यमंत्री पद पर एक राजपूत महिला और एक दलित तथा विधानसभा अध्यक्ष पद सिंधी समुदाय को देकर भाजपा ने राजस्थान में सर्व समाज को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया है।
-नीरज कुमार दुबे
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