उड़ने का सपना साकार करना है तो एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बनाएं कॅरियर
एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग मुख्य रूप से आईआईटी कानपुर, मुंबई, चेन्नई, खड़कपुर में कराया जाता है। साथ ही मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी चेन्नई, पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज चंडीगढ़ जैसे महत्वपूर्ण कॉलेजों में भी यह कोर्स कराया जाता है।
इंजीनियरिंग का पेशा अब भले ही आम हो चुका है, लेकिन इसकी कुछ स्ट्रीम्स ऐसी जरूर हैं, जो आज भी आकर्षक बनी हुई हैं। इनमें एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की ब्रांच आज भी काफी हॉट मानी जाती है। इस देश के कई युवा आज भी एरोनॉटिकल फिल्ड को पसंद करते हैं। आखिर हवाई जहाज से सम्बंधित तकनीक भला किसे आकर्षित नहीं करेगी?
तमाम युवा इसी आधार पर अपना कॅरियर भी बनाने की राह पर अग्रसर हैं। पर क्या वाकई यह इतना आसान है? आइए जानते हैं, इस फिल्ड से जुड़ी तमाम जानकारियों को...
वास्तव में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बीटेक, एमटेक और पीएचडी जैसे कोर्स किए जाते हैं।
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एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग मुख्य रूप से आईआईटी कानपुर, मुंबई, चेन्नई, खड़कपुर में कराया जाता है। साथ ही मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी चेन्नई, पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज चंडीगढ़ जैसे महत्वपूर्ण कॉलेजों में भी यह कोर्स कराया जाता है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस बेंगलुरु में भी एमटेक और पीएचडी कोर्स इस विषय में कराए जाते हैं। आईआईटी एवं दूसरे कॉलेजों के अलावा भी एआईईईई (AIEEE) से सम्बद्ध कई कॉलेज इसको अपने यहाँ पढ़ाते हैं।
4 वर्षों के इस कोर्स में आपको फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आईआईटी जी (JEE) और जी एडवांस में बैठना होता है। स्टूडेंट्स को कॅरियर एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि वे अपनी मैट्रिक की पढ़ाई के समय से ही विज्ञान व गणित पर पूरा फोकस रखें।
फिजिक्स, केमिस्ट्री एवं मैथ (PCM) के साथ बीटेक कोर्स के लिए कोई भी स्टूडेंट एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के लिए एंट्रेंस एग्जाम दे सकता है। सामान्य तौर पर इन प्रवेश परीक्षाओं के लिए किसी भी विद्यार्थी को 12वीं में कम से कम 60% नम्बर आना चाहिए। जो स्टूडेंट 12वीं की परीक्षा दे रहे हैं, वे भी एंट्रेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं।
एयरोनॉटिकल इंजीनियर्स के मुख्य कार्यों की बात करें तो वह एयरक्राफ्ट की देखभाल के साथ, एयरोस्पेस इक्विपमेंट, स्पेसक्राफ्ट, सैटेलाइट्स एवं मिसाइल्स के बारे में रिसर्च, डिजाईन व प्रोडक्शन से सम्बंधित कार्य करते हैं। इन इंजीनियर्स के मुख्य वर्क्स में रिसर्च व डेवलपमेंट कार्य भी शामिल होते हैं।
साथ में टेस्टिंग, पार्ट्स एवं असेंबली से सम्बंधित कार्य व मेंटेनेंस के कार्य भी इसी में शामिल हैं।
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इतना ही नहीं, एयरोनॉटिकल इंजीनियर्स का काम एनवायरनमेंट पर एयरक्राफ्ट के प्रभाव से लेकर तमाम रिस्क हैंडलिंग से भी जुड़ा होता है। साथ में फ्यूल एफिशिएंसी से रिलेटेड सब्जेक्ट्स में स्पेशलाइजेशन भी इन इंजीनियर्स का मुख्य शगल होता है।
बता दें कि एयरक्राफ्ट सिस्टम्स की डिज़ाइन भी इनका महत्वपूर्ण कार्य होता है, जिसे एवियोनिक्स कहा जाता है।
एयरोनॉटिकल इंजीनियर्स मुख्य रूप से सुपरसोनिक जेट्स के साथ चापर्स, स्पेस शटल्स व सैटेलाइट्स एवं रॉकेट सर्च, सिलेक्शन का कार्य करते हैं।
यह सिर्फ एक ब्रांच ही नहीं है, बल्कि एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के अलावा एरोस्पेस इंजीनियरिंग, एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियरिंग, एयरोनॉटिकल साइंस, स्पेस इंजीनियरिंग एंड राकेट्री, एयरक्राफ्ट डिजाइन जैसी सब डिविजन भी इसी से मिलती जुलती होती हैं और इन अलग-अलग कार्यों में पढाई करने वाले इंजीनियर स्पेशलाइज्ड होते हैं।
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किसी भी कॅरियर को चूज करते समय यह आवश्यक है कि आप अपनी रुचि और योग्यता के साथ भविष्य में उससे जुड़ाव भी पैदा करें। बात जब हवा में रक्षा-सुरक्षा की हो तब और भी गंभीरता से विचार करना आवश्यक हो जाता है।
- मिथिलेश कुमार सिंह
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