रघुराम राजन ने चेताया, कहा- कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता, अतिरिक्त नोटों की छपाई की भी लागत है
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा, ‘‘आरबीआई अपनी देनदारी बढ़ा रहा है और सरकारी बांड की खरीद कर रहा है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में वह बैंकों से रिवर्स रेपो दर पर कर्ज ले रहा है और सरकार को उधार दे रहा है।’’
मुंबई। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बृहस्पतिवार को कहा कि आर्थिक नरमी के बीच केंद्रीय बैंक अतिरिक्त नकदी के एवज में सरकारी बांड की खरीद कर रहा है और अपनी देनदारी बढ़ा रहा है लेकिन यह समझना चाहिए कि इसकी लागत है तथा यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि कई उभरते बाजारों में केंद्रीय बैंक इस प्रकार की रणनीतिक अपना रहे हैं लेकिन यह समझना होगा कि मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। सिंगापुर के डीबीएस बैंक द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में राजन ने कहा, ‘‘आरबीआई अपनी देनदारी बढ़ा रहा है और सरकारी बांड की खरीद कर रहा है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में वह बैंकों से रिवर्स रेपो दर पर कर्ज ले रहा है और सरकार को उधार दे रहा है।’’
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उल्लेखनीय है कि इस समय अर्थव्यवथा में अतिरिक्त नकदी है, क्योंकि लोग जोखिम से बच रहे हैं और बचत पर जोर दे रहे हैं। कर्ज की मांग कम है। बैंक रिवर्स रेपो दर पर पैसा आरबीआई के पास रख रहे हैं। पर इससे उनकी कमाई बहुत कम है। कुछ अर्थशास्त्री और विश्लेषक राजकोषीय घाटे की भरपाई और मौजूदा स्थिति से निपटने को लेकर अतिरिक्त नोटों की छपाई का सुझाव दे रहे हैं। राजन ने कहा कि अतिरिक्त नोटों की आपूर्ति की एक सीमा है और यह प्रक्रिया सीमित अवधि के लिये ही काम कर सकती है। उन्होंने स्पष्ट किया, ‘‘आखिर यह प्रक्रिया कब समाप्त होती है? जब लोग अतिरिक्त नोटों की छपाई को लेकर आशंकित होने लगते हैं, जब वे इस बात की चिंता करने लगते हैं कि जो कर्ज एकत्रित हुआ है, उसे वापस करना होगा या फिर वृद्धि में तेजी आनी शुरू होती है और बैंक केंद्रीय बैंक के पास पैसा रखने के बजाए उसका दूसरी जगह उपयोग का बेहतर विकल्प देखते हैं।’’
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राजन ने कहा कि ऐसे समय जब कर्ज बहुत ज्यादा नहीं लिया जा रहा, केंद्रीय बैंक अतिरक्त मुद्रा की आपूर्ति कर सकता है और ‘‘इससे केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच गठजोड़ बढ़ता है।’’ उन्होंने साफ किया कि इसकी सीमा है।राजन ने यह भी कहा किभारत जैसी अर्थव्यवस्थाएं एक बार पूरी तरह खुल जाती हैं, ‘लॉकडाउन’ का कॉरपोरेटे क्षेत्र पर प्रतिकूल असर दिखना शुरू होगा और बहुत सा कर्ज वापस नहीं हो सकेगा। उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे इन लागतों (नुकसान) का वित्तीय क्षेत्र पर स्थानांतरित होता है। ऐसे में सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंक के पास स्थिति से निपटने के लिये पर्याप्त पूंजी हो। इसे वित्तीय क्षेत्र की समस्या बनने के लिये नहीं छोड़ा जा सकता।
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