पति की लम्बी आयु की कामना के लिए किया जाता है वट सावित्री व्रत
वट सावित्री व्रत उत्तर भारत के बिहार तथा उत्तर प्रदेश राज्य में अखंड सौभाग्य के लिए स्त्रियां करती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती भी मनाई जाती है।
हिन्दू धर्म में महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए कई प्रकार के व्रत करती हैं। उनमें वट सावित्री व्रत का खास महत्व है तो आइए हम आपको वट सावित्री व्रत की पूजा-विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं।
जानें वट सावित्री व्रत के बारे में
वट सावित्री व्रत उत्तर भारत के बिहार तथा उत्तर प्रदेश राज्य में अखंड सौभाग्य के लिए स्त्रियां करती हैं। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती भी मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि वट सावित्री व्रत को करने से पति दीर्घायु होता है। इस बार वट सावित्री का व्रत 22 मई है। इस व्रत में नियम निष्ठा का विशेष ख्याल रखना पड़ता है। वट सावित्री के दिन सभी सुहागन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण घर से बाहर निकलना मुश्किल है इसलिए स्त्रियां घर में बरगद के पेड़ की प्रतीक स्वरूप पूजा कर भगवान से अखंड सौभाग्य का आर्शीवाद मांगे।
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वट सावित्री व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
वट सावित्री व्रत से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार सावित्री राजा अश्वपति की बेटी थी। राजा ने बहुत पूजा-पाठ करने के बाद सावित्री देवी की अनुकम्पा से पाया था। इसलिए राजा ने अपनी बेटी का नाम 'सावित्री' रखा था। सावित्री बहुत सुंदर और गुणी थीं, लेकिन पिता की बहुत कोशिशों के बाद सावित्री को उनकी तरह गुणवान वर न मिल सका। अंत में हारकर राजा ने सावित्री को खुद वर की तलाश में भेज दिया। उसी समय सावित्री को सत्यवान मिलें और उन्होंने ने सत्यवान को वर के रूप में स्वीकार कर लिया। सत्यवान वैसे तो राजघराने के थे लेकिन परिस्थितियों ने उनका राज छीन लिया था और उनके माता-पिता अंधे हो गए थे।
सत्यवान व सावित्री की शादी से पहले ही नारद मुनि ने सावित्री को बता दिया था कि सत्यवान दीर्घायु नहीं बल्कि अल्पायु हैं, इसलिए सावित्री उनसे शादी न करें। लेकिन सावित्री ने देवर्षि नारद की बात न मानकर उनसे विवाह कर लिया और कहा नारी जीवन में एक बार ही पति का वरण करती है, बार-बार नहीं। इसलिए मैंने एक बार सत्यवान को वर मान लिया है तो मुझे उसके लिए मौत से भी लड़ना पड़े तो मैं हूं। जब सत्यवान की मौत का समय पास आया तो तीन दिन पहले ही सावित्री ने अन्न-जल छोड़ दिया। मौत वाले दिन सत्यवान जब जंगल में लकड़ी काटने गए तो सावित्री भी उनके साथ गयीं और जब यमराज उन्हें लेने आए तो सावित्री भी उनके साथ जाने लगीं। यह देखकर यमराज उन्हें समझाने लगें फिर भी वह वापस नहीं लौटीं। तब यमराज ने सावित्री से कहा कि तुम सत्यवान का जीवन छोड़कर कोई भी वर मांग सकती हो।
ऐसे में सावित्री ने अपने अंधे सास-ससुर की आंखे और ससुर का खोया हुआ राजपाट मांग लिया, लेकिन वापस नहीं लौटीं। सावित्री का पति के प्रेम देखकर यमराज द्रवित हो उठे और उन्होंने सावित्री से वर मांगने को कहा तो सावित्री ने सत्यवान के पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। इसके बाद यमराज जैसे ही तथास्तु कहा वटवृक्ष के नीचे पड़ा हुआ सत्यवान का शरीर जीवित हो उठा। तब से अखंड सुहाग पाने के लिए इस व्रत की परंपरा शुरू हो गयी और इस व्रत में वटवृक्ष व यमदेव की पूजा की जाती है।
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वट सावित्री व्रत के दिन स्त्रियां ऐसे करें पूजा
वट सावित्री व्रत चतुर्दशी से प्रारम्भ हो जाता है। व्रती को चतुर्दशी के दिन से ही तामसी भोजन छोड़ देना चाहिए। यही नहीं खाने में लहसुन और प्याज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उसके बाद व्रत के दिन जल्दी उठे तथा गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। स्नान के बाद पवित्र वस्त्र पहनें, और श्रृंगार करें। अब श्रृंगार के बाद सबसे पहले सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। वट सावित्री और वट पूर्णिमा की पूजा वट वृक्ष के नीचे होती है। पूजा के दौरान एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज तैयार रखें जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। सब सामान लेकर स्त्रियां वट वृक्ष के पास जाकर कुमकुम तथा अक्षत चढ़ाती हैं। फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाये जो हैं। उसके बाद वट सावित्री व्रत की कथा पढ़े और प्रसाद चढ़ाएं।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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