शत्रुओं पर विजय के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है गुड़ी पड़वा

Gudi Padwa

गुड़ी पड़वा त्यौहार से जुड़ी दो पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। पहली पौराणिक कथा भगवान श्रीराम से सम्बन्धित है। इस कथा के अनुसार जब श्रीराम चंद्र जी सीता माता को खोजने के लिए निकले और उनकी सुग्रीव से मुलाकात हुई थी।

गुड़ी पड़वा हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है, इसे महाराष्ट्र के साथ पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार शत्रुओं पर विजय के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है, तो आइए हम आपको गुड़ी पड़वा के बारे में कुछ रोचक बातें बताते हैं। 

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जानें गुड़ी पड़वा के बारे में

 गुड़ी पड़वा में गुड़ी का शाब्दिक अर्थ है विजय पताका और पड़वा का अर्थ है प्रतिपदा। इस त्यौहार के दिन लोग अपने घरों को पताका, ध्वज  और बंधनवार से सजाते हैं। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन पूरन पोली या मीठी रोटी बनायी जाती है। साथ ही इस दिन महाराष्ट्र में सभी लोग अपने आंगन में गुड़ी भी खेलते हैं।

 

गुड़ी पड़वा के हैं नाम अनेक

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हिंदू नववर्ष मनाया जाता है। इसे पूरे देश में अलग-अलग नामों तथा रूपों में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस त्यौहार को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। वहीं देश के दूसरे राज्यों में इसे आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक को उगादि के रूप में भी मनाया जाता हैं। 

गुड़ी पड़वा से जुड़ा इतिहास 

गुड़ी पड़वा त्यौहार से जुड़ी दो पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। पहली पौराणिक कथा भगवान श्रीराम से सम्बन्धित है। इस कथा के अनुसार जब श्रीराम चंद्र जी सीता माता को खोजने के लिए निकले और उनकी सुग्रीव से मुलाकात हुई थी। उस समय सुग्रीव की अपने बड़े भाई से लड़ाई हो रही थी और वह बाली की प्रताड़ना के शिकार थे। तब भगवान श्रीराम ने सुग्रीव की सहायता कर बाली का वध किया और सुग्रीव को बाली से मुक्ति दिलायी। इस जीत की खुशी में गुड़ी पड़वा  पर्व मनाया जाता है।

दूसरी पौराणिक कथा शालिवाहन से सम्बन्धित है। शालिवाहन ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन शक को पराजित किया था। इसके अलावा गुड़ी पड़वा के दिन ही शालिवाहन कालगणना शरू हुई जो शालिवाहन शक के नाम से जाना जाता है। साथ ही एक यह भी कथा प्रचलित है कि शालिवाहन नाम के कुम्हार ने मिट्टी की सेना बनाकर शत्रुओं को हराया, तो उसके उपलक्ष्य में ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा मनाया जाने लगा। गुड़ी पड़वा के दिन से ही शालिवाहन संवत की शुरूआत मानी जाती है।

गुड़ी पड़वा का मुहूर्त 

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा के दिन गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। इस साल चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 24 मार्च, मंगलवार को 02:57 बजे शुरू हो रही है। 25 मार्च दिन बुधवार को शाम 05:26 मिनट बजे खत्म होगी। इस लिए गुड़ी पड़वा का पर्व इस साल 25 मार्च को मनाया जाएगा। 

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ऐसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा

गुड़ी पड़वा नवरात्र से शुरू होता है और रामनवमी के तक समाप्त हो जाता है। इस त्यौहार को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन विभिन्न राज्यों में इसको मनाने का तरीका अलग है। गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने-अपने घरों की सफाई करते हैं। सफाई के बाद घरों को सजाते हैं। सजावट करने में घर के आंगन और द्वार पर रंगोली तथा बंदनवार बनाएं। घर के आगे एक झंडा रखा जाता है जिसे गुड़ी कहा जाता है। इस में एक बर्तन पर स्वास्तिक चिन्ह बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर उसे रखा जाता है। साथ ही गुड़ी पड़वा के दिन लोग पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं और सूर्य देवता की पूजा-अर्चना करते हैं। इसके अलावा गुड़ी पड़वा के दिन रामरक्षास्त्रोत, सुंदरकांड और देवी भगवती के मंत्रों का जाप करना अच्छा माना जाता है।

गुड़ी पड़वा के दिन इन कामों से होगा फायदा 

गुड़ी पड़वा त्यौहार बसंत के मौसम में आता है। इस दिन नीम के फलों और नीम के पत्तों का चूर्ण बनाएं। उसके बाद नीम के चूर्ण में काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिस्री और अजवाइन को जरूर मिलाएं। अब इस मिश्रण का सेवन करें इससे आप कई तरह की बीमारियां से दूर रहेंगे।

प्रज्ञा पाण्डेय

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