बाल श्रम रोकने के लिए मनाया जाता है ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस’
बाल श्रम की वैश्विक स्थिति पर ध्यान केंद्रित करने तथा बाल श्रम को पूरी तरह से समाप्त करने हेतु आवश्यक प्रयासों के क्रियांवित किए जाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 12 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस’ मनाया जाता है।
बच्चे देश का भविष्य होते हैं, बच्चों के प्रति हर किसी को जागरूक होना चाहिए ताकि एक सुन्दर सुदृढ देश का निर्माण हो सके, यह कहना था हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का जिन्होंने न सिर्फ एक नए उज्ज्वल भारत का सपना देखा बल्कि देश के नोनिहालों के प्रति लोगों को जागरूक भी किया। यह बात एकदम सही है कि बच्चे ही हमारी वह भावी पीढ़ी हैं जो देश को आगे ले जाएंगे। बच्चों का बचपन यदि सही राह पर लग गया तो न सिर्फ परिवार बल्कि समाज और देश को भी सही दिशा दी जा सकती है।
भारत सहित विभिन्न देशों में गरीबी, अशिक्षा, बढ़ती जनसंख्या, बेरोजगारी, सस्ता श्रम और कुप्रबंधन के चलते यह बात देखने में आ रही है कि लोग अपने बच्चों पर ध्यान न देकर उन्हें शिक्षा से वंचित रखते हैं या बचपन से ही थोड़े-थोड़े पैसे के लिए उनका व्यवसायिक रूप में इस्तेमाल कर उनसे बाल श्रम कराने से भी नहीं चूकते। ऐसे लोग यह नहीं समझते कि ऐसा करके वह अपना स्वयं का ही अस्तित्व मिटाने की राह पर चल रहे है।
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जैसा कि कहा जाता है कि गरीबी एक बड़ी मजबूरी है बच्चे को बाल श्रम में डालने की किन्तु सत्य यह भी है कि गरीबी हटाने के लिए तो कई और भी उपाय हैं किन्तु एक बार बच्चे को यदि सही राह नहीं दी गई, उसे सही शिक्षा से वंचित रखा गया तो यह गरीबी हमेशा-हमेशा के लिए साये की तरह उसके साथ रह सकती है।
गरीब बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिलाने, उन्हें शिक्षा, पोषण इत्यादि मुफ्त मुहैया कराने के लिए विभिन्न देशों की सरकारें अपने-अपने स्तर पर लगातार कार्य कर रही हैं साथ ही कई प्राइवेट संस्थान भी कई कार्यक्रम से ऐसे बच्चों की मदद के लिए हाथ बढ़ा रहे हैं, बावजूद इसके यह अफसोस की बात है कि बच्चों को बाल श्रम की ओर धकेला जाना खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। आवश्यक है बाल श्रम उन्मूलन के लिए कुछ और कड़े कदम उठाए जाएं।
बाल श्रम की वैश्विक स्थिति पर ध्यान केंद्रित करने तथा बाल श्रम को पूरी तरह से समाप्त करने हेतु आवश्यक प्रयासों के क्रियांवित किए जाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 12 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन बच्चों को एक अच्छा भविष्य निर्माण करने के लिए प्रेरित करता है। अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ) द्वारा वर्ष 2002 में की गई थी। यह दिवस’ प्रत्येक वर्ष एक खास थीम के साथ मनाया जाता है, इस वर्ष 12 जून 2021 को इस दिवस की थीम ‘प्रोटेक्ट चिल्ड्रन इन कोविड-19’ यानी बच्चों को कोविड-19 महामारी के दौरान बचाना है, रखी गई है। गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के कारण कई देशों में लॉकडाउन से बहुत लोगों की जिंदगी प्रभावित हुई है जिसका असर बच्चों पर भी पड़ा है।
आईएलओ और यूनिसेफ की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्वभर में बाल श्रमिकों की संख्या बढ़कर 16 करोड़ हो गई है, इस रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि कोविड-19 महामारी के परिणाम स्वरूप 2022 के अंत तक वैश्विक स्तर पर 90 लाख और बच्चों को बाल श्रम में धकेल दिए जाने का खतरा है।
आज बाल श्रम निषेध दिवस पर हमारा यह जानना जरूरी है कि बाल श्रमिक किन्हें कहा जाता है और बाल श्रमिकों पर बाल श्रम के क्या कुप्रभाव होते हैं।
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- कानून के अनुसार बाल श्रमिक वह बच्चे हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, राष्ट्रीय कानून द्वारा परिभाषित न्यूनतम कानूनी उम्र से पहले किसी व्यावसायिक कार्य में लगाया जाता है इसके अलावा गुलामी या गुलामी के समान प्रथा अथवा किसी अवैद्य गतिविधियों में बच्चों का शामिल होना भी बाल श्रम के अंतर्गत आता है, वहीं ऐसे कार्य जो बच्चों या किशोरों के स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत विकास को प्रभावित नहीं करते हैं या जिन कार्यों का उनकी स्कूली शिक्षा पर कोई कुप्रभाव नही पड़ता हो बाल श्रम नहीं कहलाते। शिक्षा के समय के अलावा या छुट्टियों के दौरान किसी पारिवारिक नैतिक व्यवसाय में बच्चे का साथ देना उसकी हाॅबी या एक सामाजिक सोच को प्रेरित करता है, अतः यह भी बाल श्रम नहीं है। बाल श्रमिक में वे बच्चे चाहे लड़के हों या लड़कियां भी शामिल हैं जो आपदाग्रस्त, दिव्यांग, एचआईवी पीड़ित, अनाथ, अनुसूचित जाति व जनजाति, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक, विस्थापित, हिंसा एवं युद्धग्रस्त इलाकों से हैं और बाल श्रम करते हैं।
- बाल श्रम एक सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय समस्या है जिससे बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। बाल श्रम का असर बच्चों पर इस तरह पड़ता है कि वे शिक्षा से दूर होते जाते हैं, उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है, उनके साथ दुर्व्यवहार की संभावना रहती है, उन्हें भिक्षावृत्ति की ओर प्रवृत्त किया जा सकता है, उनका शारीरिक शोषण किया जा सकता है साथ ही उन्हें असुरक्षित प्रवास और विस्थापन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। बाल श्रम से जुड़े बच्चे अपने बचपन की मौलिकता, खेलकूंद और मनोरंजन से वंचित रह जाते हैं।
ज्ञात हो कि 20 नवंबर, 1989 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (UNCRC) को अपनाया गया था, जिसमें 18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को किसी भी प्रकार के व्यवसाय में लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। UNCRC को भारत द्वारा वर्ष 1992 में अनुमोदित किया गया था। भारत में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सभी प्रकार के व्यावसायिक कार्यों में लगाने से प्रतिबंधित किया गया है। जबकि 14 से 18 वर्ष से किशोरों पर केवल खतरनाक व्यवसायों में कार्यों में लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
भारत में बाल श्रम की बात करें तो राष्ट्रीय जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 5-14 वर्ष की आयु वर्ग की कुल जनसंख्या लगभग 260 मिलियन है। इनमें से 10 मिलियन बाल श्रमिक हैं जो मुख्य या सीमांत श्रमिकों के रूप में कार्य करते हैं वहीं 15-18 वर्ष की आयु के लगभग 23 मिलियन बच्चे विभिन्न कार्यों में बाल श्रमिक लगे हुए हैं।
आज 12 जून ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रमिक निषेध दिवस’ है वर्ष 2002 से इस दिवस के उद्देश्यों के साथ दुनिया भर में कई कार्यक्रम किए जा रहे है और ऐसा नहीं है कि बाल श्रम कानूनों का, जागरुकता का लोगों पर बिल्कुल असर नहीं हुआ है ऐसे कई उदाहरण हैं, जब बाल मजदूरी से मुक्त हुए बच्चे पुनर्वास योजना का लाभ उठा कर बेहतर भविष्य का निर्माण कर रहे हैं।
गौरतलब है भारत में बाल मजदूरी से मुक्ति के पश्चात विभिन्न कानूनों के तहत केंद्र सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा बाल मजदूरी से छुड़ाए गए बच्चों को पुनर्वास के लिए साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। आपको ज्ञात होगा कि भारत सरकार द्वारा संविधान के 86वें संशोधन में बच्चों की शिक्षा के अधिकारों में और भी वृद्धि की गई है जिसके तहत सरकारी स्कूल सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करायेंगे और स्कूलों का प्रबंधन स्कूल प्रबंध समितियों द्वारा किया जायेगा वहीं निजी स्कूलों को भी न्यूनतम 25 प्रतिशत बच्चों को बिना किसी शुल्क के अपनी स्कूल में एडमीशन देना होंगे।
दोस्तों, कहा जाता है बच्चे मिट्टी का घड़ा होते हैं जैसा बनाओ वैसे बनते हैं तो यह माता-पिता का और समाज का भी फर्ज बनता है कि बाल श्रम उन्मूलन जैसे कार्यक्रम में कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलें, बाल श्रम में लगे बच्चों को मुक्त कराकर उसके लिए एक अच्छे भविष्य के रचियता बनें।
- अमृता गोस्वामी
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