अंधेरे में डूबे पाकिस्तान का पानी बंद कर सकता है भारत? समझिये क्या है सिंधु जल संधि जिस पर मँडरा रहे हैं खतरे के बादल
भारत ने सितंबर 1960 में की गयी सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को सख्त नोटिस जारी किया है। पाकिस्तान सिंधु जल संधि को लागू करने को लेकर अपने रुख पर अड़ा हुआ है, इसलिए उसे सिंधु जल संबंधी आयुक्तों के माध्यम से 25 जनवरी को यह नोटिस भेजा गया है।
कंगाली के करीब पहुँच चुके पाकिस्तान का रुपया भी औंधे मुंह गिर गया है और 225 पाकिस्तानी रुपये और एक डॉलर की कीमत बराबर हो गयी है जिससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के समक्ष काफी बड़ा संकट आ गया है। पहले ही खाद्यान्न संकट और बिजली की कमी से जूझ रहे पाकिस्तान का रुपया यदि इसी तरह एक दिन में 25 से 30 रुपए गिरता रहा तो पाकिस्तान का पूरी तरह बर्बाद होना तय है। इस बीच भारत ने पाकिस्तान को एक नोटिस भेज दिया है जिससे संकेत मिल रहे हैं कि बिजली बंद पाकिस्तान का पानी भी भारत बंद कर सकता है।
हम आपको बता दें कि भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को सख्त नोटिस जारी किया है। पाकिस्तान सिंधु जल संधि को लागू करने को लेकर अपने रुख पर अड़ा हुआ है, इसलिए उसे सिंधु जल संबंधी आयुक्तों के माध्यम से 25 जनवरी को यह नोटिस भेजा गया है। सिंधु जल संधि को लेकर भारत का हमेशा दृढ़ रुख रहा है कि उसकी भावना इस संधि को अक्षरशः लागू करने की है लेकिन पाकिस्तान का रवैया टालमटोल वाला रहा है। पाकिस्तान को जो नोटिस भेजा गया है उसके बारे में बताया जा रहा है कि पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों और इसे लागू करने पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, इसी के चलते संधि में संशोधन के लिए भारत नोटिस जारी करने के लिए मजबूर हुआ।
सिंधु जल संधि क्या है? यह कब हुई थी? इसमें क्या लिखा है?
हम आपको बता दें कि भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किये थे। विश्व बैंक भी इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल था। इस संधि के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार भारत को दिया गया।
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भारत ने पाक के समक्ष क्या आपत्तियां जताई हैं?
बताया जा रहा है कि वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिये तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था। वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान का यह एकतरफा कदम संधि के अनुच्छेद 9 में विवादों के निपटारे के लिये बनाए गए तंत्र का उल्लंघन है। इसी के अनुरूप, भारत ने इस मामले को तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने का अलग से आग्रह किया। एक सूत्र ने बताया, ‘‘एक ही प्रश्न पर दो प्रक्रियाएं साथ शुरू करने और इसके असंगत या विरोधाभासी परिणाम आने की संभावना एक अभूतपूर्व और कानूनी रूप से अस्थिर स्थिति पैदा करेगी जिससे सिंधु जल संधि खतरे में पड़ सकती है।’’
विश्व बैंक भी भारत की बात से सहमत
विश्व बैंक ने 2016 में भारत की बात से सहमति जताते हुए दो समानांतर प्रक्रियाएं शुरू करने को रोकने का निर्णय किया था, साथ ही भारत और पाकिस्तान से परस्पर सुसंगत रास्ता तलाशने का आग्रह किया था।
भारत की ओर से भेजे गये नोटिस के कारणों के बारे में सूत्रों ने यह भी कहा है कि भारत द्वारा लगातार परस्पर सहमति से स्वीकार्य रास्ता तलाशने के प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान ने वर्ष 2017 से 2022 के दौरान स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में इस पर चर्चा करने से इंकार कर दिया था। सूत्रों का यह भी कहना है कि पाकिस्तान के लगातर जोर देने पर विश्व बैंक ने हाल ही में तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत की प्रक्रियाएं शुरू कीं। वैसे भी एक ही मुद्दे पर समानांतर विचार किया जाना सिंधु जल संधि के प्रावधानों के दायरे में नहीं आता है। इसलिए सिंधु जल संधि के प्रावधानों के उल्लंघन के मद्देनजर भारत संशोधन का नोटिस देने के लिए बाध्य हो गया।
-गौतम मोरारका
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