करोड़ों वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाओं के माध्यम से ताजा हो गये अयोध्या और जानकीपुर के बीच त्रेतायुग के संबंध
नेपाल से शिलाएं क्यों मंगायी जा रही हैं, यदि इस बारे में बात करें तो आपको बता दें कि जिस तरह भारतवासियों ने राम मंदिर के निर्माण में बढ़-चढ़कर सहयोग किया उसी तरह नेपाल के लोग भी राम मंदिर के निर्माण में सहयोग करना चाहते थे।
अयोध्या और नेपाल के बीच एक बार फिर त्रेतायुग के संबंध ताजा होने जा रहे हैं। हम आपको बता दें कि अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर में रामलला की मूर्ति के लिए नेपाल से करोड़ों वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाएं आ रही हैं। इन शिलाओं को नेपाल के पोखरा से 50 किमी दूर गंडकी नदी से लाया जा रहा है। हालांकि जो पत्थर नेपाल से आ रहे हैं उन्हें अयोध्या पहुंचने के बाद मूर्तिकारों को दिखाया जाएगा और अगर कोई समस्या आती है तो विकल्प के रूप में ओडिशा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश से भी इसी तरह के पत्थर मंगाए जा रहे हैं।
नेपाल से शिलाएं क्यों मंगायी जा रही हैं, यदि इस बारे में बात करें तो आपको बता दें कि जिस तरह भारतवासियों ने राम मंदिर के निर्माण में बढ़-चढ़कर सहयोग किया उसी तरह नेपाल के लोग भी राम मंदिर के निर्माण में सहयोग करना चाहते थे। इसके लिए करीब सात महीने पहले नेपाल के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बिमलेन्द्र निधि ने राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि राम मंदिर निर्माण में जनकपुर की तरफ से कुछ योगदान लेना चाहिए। हम आपको बता दें कि बिमलेन्द्र निधि जानकी यानी सीता माता की नगरी जनकपुरधाम के सांसद भी हैं। भारत सरकार और राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से हरी झंडी मिलते ही नेपाल सरकार ने देखा कि जब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण इस तरह से किया जा रहा है कि दो हजार वर्षों तक भी उसे कुछ नहीं हो पाये तो फिर मंदिर में लगने वाली मूर्ति भी उस तरह की होनी चाहिए जो उतने समय तक चल सके। इसके लिए नेपाल सरकार ने मंथन शुरू किया और बाद में कैबिनेट की बैठक में पवित्र काली गंडकी नदी के किनारे निकलने वाले शालीग्राम के पत्थरों को अयोध्या भेजने के लिए अपनी सहमति दे दी। सहमति के बाद इस तरह के पत्थर को ढूंढ़ने के लिए नेपाल सरकार ने विशेषज्ञों की एक टीम बनाई और गंडकी नदी क्षेत्र में भेजी। इस टीम ने अयोध्या भेजने के लिए जिन दो पत्थर का चयन किया वह छह करोड़ साल पुराने हैं। बताया जा रहा है इसकी आयु अभी भी एक लाख वर्ष तक रहने की बात बताई गई है।
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रिपोर्टों के मुताबिक, नेपाल के मुस्तांग जिले में शालीग्राम या मुक्तिनाथ के करीब एक स्थान पर गंडकी नदी में पाए गए छह करोड़ वर्ष पुराने विशेष चट्टानों से पत्थरों के दो बड़े टुकड़े बुधवार को नेपाल से रवाना कर दिये गये हैं जो इस सप्ताह बृहस्पतिवार को अयोध्या पहुंचेंगे। जिस काली गंडकी नदी के किनारे से ये पत्थर लिये गए हैं, वो नेपाल की पवित्र नदी है। ये नदी दामोदर कुंड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है। बताया जाता है कि दुनिया की ये अकेली ऐसी नदी है, जिसमें शालीग्राम के पत्थर पाए जाते हैं। इन शालिग्राम की आयु करोड़ों साल की होती है। इन पत्थरों को यहां उठाने से पहले विधि−विधान के हिसाब से क्षमा प्रार्थना की गई। फिर क्रेन के सहारे पत्थरों को ट्रक पर लादा गया। एक पत्थर का वजन 26 टन जबकि दूसरे पत्थर का वजन 14 टन बताया गया है। यह शिलाएं जहां−जहां से गुजर रही हैं, वहां पूरे रास्ते भर में भक्तजन और श्रद्धालु इसके दर्शन और पूजन कर रहे हैं। शिलाओं को देखकर लगता है कि वह शिला नहीं अपितु भगवान राम और माता सीता की मूर्ति हों। बताया जा रहा है कि इन शिलाओं से भगवान राम की बाल स्वरूप और माता सीता की मूर्तियों का निर्माण किया जाएगा। इन शिलाओं से मूर्ति बनने में नौ माह का समय लगेगा। रामलला की मूर्ति किस तरह की होगी यह सब मुंबई के चर्चित और विख्यात फाइन आर्ट के प्रोफेसर वासुदेव कामत की डिजाइन से तय होगा।
इस संबंध में राम मंदिर भवन निर्माण समिति की अयोध्या में संपन्न दो दिवसीय बैठक में निर्माण कार्यों की प्रगति की समीक्षा की गयी। बैठक की अध्यक्षता निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने की और ट्रस्ट के सचिव चंपत राय तथा ट्रस्टी अनिल मिश्रा ने भी इसमें हिस्सा लिया। ट्रस्ट सूत्रों के अनुसार बैठक में मंदिर निर्माण की प्रगति की समीक्षा की गई और गर्भगृह में स्थापित होने वाली रामलला की नई मूर्ति की नक्काशी तथा प्रतिमा स्थापित किए जाने पर भी चर्चा हुई। हम आपको बता दें कि निर्माण समिति की पिछली बैठक पांच जनवरी को हुई थी और एक महीने में यह दूसरी बैठक थी। ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने कहा, "मंदिर निर्माण से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई।''
इस बीच, राम जन्मभूमि पर रामलला की मूर्ति को तराशने में इस्तेमाल होने वाली नेपाल की गंडकी नदी की विशेष चट्टानें बृहस्पतिवार को अयोध्या पहुंचेंगी। इस पत्थर पर उकेरी गयी भगवान राम की बाल रूप की मूर्ति को राम मंदिर के गर्भगृह में रखा जाएगा, जो अगले साल जनवरी में मकर संक्रांति तक बनकर तैयार हो जाएगा।
-गौतम मोरारका
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