Karawal Nagar विधानसभा सीट पर निर्णायक भूमिका में रहे हैं उत्तराखंड और पूर्वांचल के वोटर्स, दिलचस्प होगा मुकाबला
अगले साल होने जा रहे चुनाव में करावल नगर विधानसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प होने जा रहा है। इस विधानसभा क्षेत्र में उत्तराखंड और पूर्वांचल से बड़ी संख्या में आये प्रवासी मतदाता अपना प्रभाव रखते हैं। करावल एक तरफ यूपी बॉर्डर से सटी हुई है। तो वहीं, दूसरी तरफ इसका एक बड़ा हिस्सा यमुना खादर से लगा हुआ है।
राजधानी दिल्ली में अगले साल होने जा रहे चुनाव में करावल नगर विधानसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प होने जा रहा है। इस विधानसभा क्षेत्र में उत्तराखंड और पूर्वांचल से बड़ी संख्या में आये प्रवासी मतदाता अपना प्रभाव रखते हैं। करावल एक तरफ यूपी बॉर्डर से सटी हुई है। तो वहीं, दूसरी तरफ इसका एक बड़ा हिस्सा यमुना खादर से लगा हुआ है। इस विधानसभा के तहत सभापुर, चौहान बांगर, सादतपुर और बदरपुर खादर सहित कई अन्य गाँवों के अलावा एक दर्जन से अधिक अवैध कॉलोनियां आती हैं। इस विधानसभा के 80 प्रतिशत क्षेत्र के तहत आने वाली अवैध कॉलोनियों में रहते हैं। इसलिए इनकी चुनावी जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
कई बड़े क्षेत्र हैं शामिल
इस विधानसभा के तहत आने वाले कई बड़े गांवों के अलावा सोनिया विहार, भगत सिंह कॉलोनी, खजूरी, सादतपुर एक्सटेंशन, अणुव्रत विहार, मुकुंद विहार, तुकमीरपुर एक्सटेंशन, दयालपुर एक्सटेंशन और श्रीराम कॉलोनी सहित एक दर्जन से अधिक कॉलोनियां आती हैं। क्षेत्र में 2.98 लाख वोटर्स में से लगभग 1.80 लाख पूर्वांचल वोटर हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहे हैं। इसके अलावा 20,000 उत्तराखंड के वोटर्स भी हैं।
जानिए करवाल की जीत और हार में किसकी भूमिका
करावल के तहत आने वाली अवैध कॉलोनियों में 80 प्रतिशत आबादी रहती है। यहां टोटल वोटर्स में से पूर्वांचल के मतदाताओं की संख्या 60 फीसदी के करीब बताई जाती है। इसलिए इसे पूर्वाचल वोटर्स बाहुल्य वाली सीट माना जाता है। किसी भी उम्मीदवार ही जीत हार में पूर्वांचल वोटर्स हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहे हैं। इसके अलावा यहां उत्तराखंडी और वेस्टर्न यूपी के वोटर्स की संख्या भी अच्छी खासी है। इसलिए 1993 से लेकर अब तक पूर्वाचल वोटर्स फैक्टर ही हावी रहा है।
पानी और ट्रैफिक जाम क्षेत्र के बड़े मुद्दे
यहाँ आबादी के हिसाब से विकास नहीं हो पाया है। ज्यादातर कॉलोनियों के अलावा ग्रामीण इलाकों में भी गंदे पानी की निकासी को बड़े मुद्दे के रूप में देखा जा रहा है। इस वजह से निचले इलाकों में गंदा पानी जमा रहता है। इसके अलावा की इलाकों में पीने का पानी आज तक भी लोगों के घरों तक नहीं पहुंच पाया। लोग टैंकर के भरोसे रहते हैं। क्षेत्र में मेडिकल सुविधाओं का अभाव है। सोनिया विहार साइड में क्षेत्र के एक बड़े हिस्से को सिंगल रोड वजीराबाद रोड से जोड़ती है। इस रोड को लंबे समय से डबल किए जाने की मांग की जा रही है।
समझिए विधानसभा का राजनीतिक मिजाज
साल 1993 से अब तक हुए सात विधानसभा चुनाव में यहां छह बार बीजेपी और एक बार आम आदमी पार्टी चुनाव जीती है। सबसे पहले यहां रामपाल करहाना ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीता था। इसके बाद 1998 से 2013 तक लगातार बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट चुनाव जीतते आ रहे हैं। 2015 में 'आप' के कपिल मिश्रा ने उन्हें हारा दिया। 2020 में फिर बीजेपी मोहन सिंह बिष्ट पर दांव खेला और उन्होंने अपनी हार का बदला 'आप' के दुर्गेश पाठक को करारी शिकस्त देकर लिया था। चुनावी इतिहास और आंकड़ों के हिसाब से इस सीट को बीजेपी की सीट माना जाता है।
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