इंडिया गठबंधन से कांग्रेस को निकालना संभव नहीं लेकिन हार के डर ने केजरीवाल को कर दिया है परेशान
ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि देश की वास्तविक राजनीतिक परिस्थिति को समझने के बावजूद आम आदमी पार्टी इस तरह की बेतुकी मांग क्यों कर रही है ? इसके पीछे सबसे बड़ी वजह, दिल्ली में होने वाला विधानसभा चुनाव है।
दिल्ली में लगातार विधानसभा का चुनाव जीत रही आम आदमी पार्टी ने अब विपक्षी इंडिया गठबंधन से कांग्रेस को ही बाहर निकालने की मांग कर दी है। हालांकि केजरीवाल की पार्टी की इस बेतुकी मांग पर अभी इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य विपक्षी दलों की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन वास्तविकता तो सभी नेता जानते हैं। यहां तक कि विपक्षी गठबंधन से कांग्रेस को बाहर निकालने की मांग करने वाली आम आदमी पार्टी के नेता भी इस बात को बखूबी जानते हैं कि कांग्रेस को विपक्षी गठबंधन से बाहर भगाना संभव नहीं है। विडंबना देखिए कि, जिस विपक्षी इंडिया गठबंधन का गठन ही केंद्र से नरेंद्र मोदी सरकार को हटाने के लिए किया गया है। उस गठबंधन में लोकसभा में 3 सीट की हैसियत रखने वाली आम आदमी पार्टी 99 लोकसभा सांसदों वाली कांग्रेस पार्टी को गठबंधन से बाहर निकालने की बेतुकी मांग कर रही है।
ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि देश की वास्तविक राजनीतिक परिस्थिति को समझने के बावजूद आम आदमी पार्टी इस तरह की बेतुकी मांग क्यों कर रही है ? इसके पीछे सबसे बड़ी वजह, दिल्ली में होने वाला विधानसभा चुनाव है। कहने को तो आप की सरकार दिल्ली और पंजाब यानी देश के दो राज्यों में है। ताकत और कामकाज के मामले में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त होने के कारण पंजाब में सरकार होने का अपना फायदा है लेकिन दिल्ली में उपराज्यपाल के ज्यादा मजबूत होने के बावजूद, यह राज्य केजरीवाल के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। दिल्ली की हार केजरीवाल की पार्टी के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा देगी। अगर आप दिल्ली की सत्ता से बाहर हुई तो पार्टी में एक बड़ी टूट होने का भी खतरा पैदा हो सकता है और इसी डर ने आप के नेताओं को बुरी तरह से डरा दिया है।
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ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि दिल्ली में लगातार तीन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर, सरकार बनाने वाली आप को हार का डर क्यों सताने लगा है ? वर्ष 2020 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में 70 में से 62 सीटें और वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतने वाली आप को इस बार हार का डर क्यों सताने लगा है ?
दरअसल, वर्ष 2013 में दिल्ली में अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी ने एक रणनीति के तहत पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह झाड़ू का चयन किया था। उस समय यूपीए सरकार के अंदर से लगातार आ रहे घोटालों और भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाते हुए केजरीवाल ने कांग्रेस के वोट बैंक में भी सेंध लगा दिया था। अपने पहले ही चुनाव में आप ने दिल्ली की 70 में से 28 सीटों पर जीत हासिल करके सबको चौंका दिया था। 2013 के उस चुनाव में अंदरखाने आप की मदद कर, शीला दीक्षित को हराने में बड़ी भूमिका निभाने वाले कुछ कांग्रेसी नेताओं ने दिल्ली कांग्रेस नेताओं के मना करने के बावजूद आप को समर्थन देकर , केजरीवाल को मुख्यमंत्री बना दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस लगातार कमजोर होती चली गई। कांग्रेस के वोट बैंक पर पूरी तरह से आम आदमी पार्टी ने कब्जा कर लिया। शीला दीक्षित ने अपने 15 वर्षों के कार्यकाल में दिल्ली में कांग्रेस के पक्ष में एक मजबूत वोट बैंक तैयार कर दिया था। उन्होंने दिल्ली में रहने वाले बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को मजबूती से कांग्रेस के साथ जोड़ दिया था। झुग्गी-झोपडी में रहने वाले लोगों के साथ-साथ मुसलमान भी मजबूती से कांग्रेस के साथ जुड़ गए थे। लेकिन धीरे-धीरे इन सभी मतदाताओं को आप ने अपने पाले में कर लिया। केजरीवाल ने मुफ्त बिजली और पानी देकर दिल्ली के झुग्गीवासियों और मिडिल क्लास को साध लिया। फ्री डीटीसी सफर की सुविधा देकर महिला मतदाताओं को लुभा लिया। इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली में रहने वाले बिहार और यूपी के लोगों को भी तवज्जों देकर एक मजबूत वोट बैंक तैयार कर लिया। भाजपा को हराने के नाम पर मुस्लिम मतदाता भी केजरीवाल के साथ जुड़ गए।
कांग्रेस उलझन और ऊहापोह की स्थिति के कारण अपने इसी वोट बैंक को पूरी तरह से आम आदमी पार्टी से छीन नहीं पा रही थी क्योंकि कांग्रेस के नेताओं को समझ ही नहीं आ रहा था कि वे आप को दोस्त माने या दुश्मन। दिल्ली में लड़ रहे कांग्रेसी नेताओं का भी अपने ऊपर से भरोसा ही उठ गया था कि वे केजरीवाल से लड़ भी सकते हैं और यही बात आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ा वरदान था।
लेकिन इस बार जिस अंदाज में अजय माकन ने सीधे-सीधे अरविंद केजरीवाल पर हमला बोला,युवा कांग्रेस ने संसद मार्ग थाने जाकर उनके खिलाफ शिकायत दी और कांग्रेस ने नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ संदीप दीक्षित को चुनावी मैदान में उतार दिया, उससे आप के मुखिया बुरी तरह से डर गए हैं। आप को यह लगने लगा है कि अगर कांग्रेस दिल्ली में पूरी ताकत से विधानसभा का चुनाव लड़ती है तो आप के लिए चुनाव जीतना मुश्किल ही नहीं नामुकिन हो जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि नई दिल्ली के मतदाताओं को यह लगने लगा है कि उन्होंने शीला दीक्षित को 2013 में विधानसभा चुनाव में हराकर गलती की थी और अब वह उनके बेटे संदीप दीक्षित को जीताकर अपनी 2013 की गलती का प्रायश्चित 2025 में करना चाहती है। अरविंद केजरीवाल अगर खुद की विधानसभा सीट हार जाते हैं तो उनके लिए इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ और नहीं हो सकता है। इसलिए उन्होंने राहुल गांधी, अजय माकन, कांग्रेस नेताओं और कांग्रेस उम्मीदवारों के दिलों-दिमाग पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने के लिए यह बेतुकी मांग करनी शुरू कर दी है। यहीं पर राहुल गांधी की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। यह देखना होगा कि दिल्ली में कांग्रेस को मजबूत बनाने के मिशन में जुटे नेताओं का राहुल गांधी खुल कर और पूरी मजबूती के साथ, साथ दे पाते हैं या नहीं ?
-संतोष पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)
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