International Day of Peace 2024: दुनिया में अमनचैन, अयुद्ध एवं शांति का उजाला हो

International Day of Peace 2024
Creative Commons licenses/Flickr
ललित गर्ग । Sep 21 2024 11:19AM

आज दुनियाभर में जो युद्ध चल रहे हैं, उनकी वजह से शांति खतरे में हैं। रूस-यूक्रेन और इस्राइल-गाजा का लम्बे दौर से चल रहा युद्ध शांति की बड़ी बाधा है। युद्धों का मानव जीवन, पर्यावरण एवं विकास पर सबसे घातक असर पड़ रहा है और यही जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण भी बन रहा हैं जो शांतिपूर्ण जीवन को संभव नहीं होने देता।

अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस प्रत्येक वर्ष 21 सितम्बर को मनाया जाता है। यह दिवस सभी देशों और लोगों के बीच स्वतंत्रता, अहिंसा, सह-जीवन, शांति और खुशी का एक आदर्श संकल्प माना जाता है। यह दिवस मुख्य रूप से पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए मनाया जाता है। किंतु यह काफ़ी निराशाजनक है कि आज इंसान दिन-प्रतिदिन इस शांति से दूर होता जा रहा है। आज चारों तरफ़ फैली राष्ट्रों की महत्वाकांक्षाएं एवं बाज़ारवाद ने शांति को व्यक्ति से और भी दूर कर दिया है। पृथ्वी, आकाश व सागर सभी अशांत हैं। स्वार्थ और घृणा ने मानव समाज को विखंडित कर दिया है। यूँ तो विश्व शांति का संदेश हर युग और हर दौर में दिया गया है, लेकिन इसको अमल में लाने वालों की संख्या बेहद कम होती जा रही है। इसलिए विश्व के सभी देशों एवं विशेषतः विकसित एवं शक्तिसम्पन्न देशों को उदार एवं दूरगामी नजरिया अपनाना होगा। अपने-अपने स्वार्थों को नजरअंदाज करते हुए विश्व मानवता को केन्द्र में रखना होगा है। अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस-2024 की थीम है शांति की संस्कृति का विकास। इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा शांति की संस्कृति पर घोषणा और कार्यक्रम को अपनाए जाने की 25वीं वर्षगांठ है ।

आज दुनियाभर में जो युद्ध चल रहे हैं, उनकी वजह से शांति खतरे में हैं। रूस-यूक्रेन और इस्राइल-गाजा का लम्बे दौर से चल रहा युद्ध शांति की बड़ी बाधा है। युद्धों का मानव जीवन, पर्यावरण एवं विकास पर सबसे घातक असर पड़ रहा है और यही जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण भी बन रहा हैं जो शांतिपूर्ण जीवन को संभव नहीं होने देता। दुनिया में अनेक ऐसे विध्वंसक देश हैं, जोे आतंकवाद, युद्ध एवं पडोसी देशों में अशांति फैलाने की राहों को चुनते हुए अपनी बर्बादी के साथ अन्य देशों में अशांति की कहानी लिख रहे हैं। पाकिस्तानी नेतृत्व ने भारत में आतंकवाद फैला कर लिखी अपनी बर्बादी की दास्तां, जिसे अब उसकी खुद की जनता झेल रही है। भारत शांतिप्रिय देश है, वह खुद शांति चाहता है और दुनिया में शांति की स्थापना के लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहा है। शांति, अहिंसा , अयुद्ध एवं अमनचैन की भारत की नीतियों को देर से ही सही दुनिया ने स्वीकारा है। भारत की ऐसी ही मानवतावादी एवं सहजीवन की भावना को बल देने के कारण ही दुनिया एक गुरु के रूप में भारत को सम्मान देने लगी है। भारत आतंकवाद, हिंसा-युद्धयुक्त संसार और विस्तारवाद की भूख के खिलाफ जो सवाल उठाता रहा है, उसे अनेक देशों में न सिर्फ विचार के लिए जरूरी समझा जाने लगा है, बल्कि अब उन पर स्पष्ट रुख भी अख्तियार किया जा रहा है। शांति का उजाला फैलाने के उद्देश्य से विश्व शांति दिवस की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। इस दिवस को कोरा आयोजनात्मक न मनाया जाकर प्रयोजनात्मक रूप से मनाने की आवश्यकता है। 

इसे भी पढ़ें: World Alzheimer Day 2024: हर साल 21 सितंबर को मनाया जाता है वर्ल्ड अल्जाइमर डे, बचाव के लिए करें उपाय

सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही यूएन का जन्म हुआ है। संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद ज़रूरी और प्रासंगिक हो गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ, उसकी तमाम संस्थाएँ, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष शांति दिवस का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों और उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था।

पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति और अमन स्थापित करने के लिए पाँच मूल मंत्र दिए थे, इन्हें पंचशील के सिद्धांत भी कहा जाता है। ये पंचसूत्र मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पाँच आधारभूत सिद्धांत हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित पाँच सिद्धांत निहित हैं-एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना। एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्रवाई न करना। एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना। समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना। भारत पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विश्व शांति, अहिंसा एवं युद्धमुक्त विश्व संरचना के लिये प्रयासरत है। यूक्रेन-रूस एवं इस्राइल-गाजा में शांति का उजाला करने, अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव करने के लिये प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत शांति प्रयास करने में जुटा है। एकमात्र भारत ही ऐसा देश है जो अपने आध्यात्मिक तेज एवं अहिंसा की शक्ति से मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध की विभीषिका से मुक्ति दे सकता।

विश्व शांति दिवस के उपलक्ष्य में हर देश में जगह-जगह सफ़ेद रंग के कबूतरों को उड़ाया जाता है, जो कहीं ना कहीं भारत के शांति के ही सिद्धांतों को दुनिया तक फैलाते हैं। इन कबूतरों को उड़ाने के पीछे एक शायर का निम्न शेर बहुत ही विचारणीय है-लेकर चलें हम पैगाम भाईचारे का, ताकि व्यर्थ ख़ून न बहे किसी वतन के रखवाले का। आज कई लोगों का मानना है कि विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी आर्थिक और राजनीतिक चालों से है। विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं, ताकि उनके सैन्य साजो-समान बिक सकें। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। आज सैन्य साजो-सामान एवं हथियार उद्योग विश्व में बड़े उद्योग के तौर पर उभरा है। आतंकवाद को अलग-अलग स्तर पर फैलाकर विकसित देश इससे निपटने के हथियार बेचते हैं और इसके जरिये अकूत संपत्ति जमा करते हैं। हाल ही में यूक्रेन-रूस, इस्राइल-गाजा अफ़ग़ानिस्तान, ईरान और इराक जैसे देशों में हुए युद्धों एवं पाकिस्तान में पनप रहे आतंकवाद को विशेषज्ञ हथियार माफियाओं के लिए एक फायदे का मेला मानते रहे हैं। उनके अनुसार दुनिया में भय और आतंक का माहौल खड़ा करके ही सैन्य सामान बेचने वाले देश अपनी चांदी कर रहे हैं।

बात केवल रूस-यूक्रेन युद्ध की ही नहीं है बल्कि देश के भीतर घटित हिंसा के ताण्डव की भी है। जबकि अहिंसा सबसे ताकतवर हथियार है, बशर्ते कि इसमें पूरी ईमानदारी बरती जाए। लेकिन विभिन्न देशों में तरह-तरह के धार्मिक-साम्प्रदायिक आन्दोलन हो या ऐसे ही अन्य राजनैतिक आन्दोलन, उनमें हिंसा का होना गहन चिन्ता का कारण बना है। हिंसा, नक्सलवाद और आतंकवाद की स्थितियों ने जीवन में अस्थिरता एवं भय व्याप्त कर रखा है। अहिंसा की इस पवित्र भारत भूमि में हिंसा का तांडव सोचनीय है। महावीर, बुद्ध, गांधी एवं आचार्य तुलसी के देश में हिंसा को अपने स्वार्थपूर्ति का हथियार बनाना गंभीर चिंता का विषय है। इस जटिल माहौल में विशेष उपक्रमों के माध्यम से अहिंसक जीवनशैली और उसके प्रशिक्षण का उपक्रम और विभिन्न धर्म, जाति, वर्ग, संप्रदाय के लोगों के बीच संपर्क अभियान चलाकर उन्हें अहिंसक एवं शांतिवादी बनने को प्रेरित किया जाना न केवल प्रासंगिक है, बल्कि राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय जीवन की बड़ी आवश्यकता है। इन प्रयत्नों से ही विश्व की महाशक्तियों एवं उनकी हिंसक मानसिकता पर व्यापक प्रभाव स्थापित किया जा सकता है।

आज प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। शांति ही उन्नत एवं आदर्श जीवन का आधार है। मानव कल्याण की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। भाषा, संस्कृति, पहनावे भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन विश्व के कल्याण का मार्ग एक ही है और शांतिपूर्ण सह-जीवन। बशीर बद्र का शेर है कि सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें, आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत।’ मनुष्य को नफरत का मार्ग छोड़कर प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए। इस सदी में विश्व में फैली अशांति और हिंसा को देखते हुए हाल के सालों में शांति कायम करना मुश्किल ही लगता है, किंतु उम्मीद पर ही दुनिया कायम है और यही उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही वह दिन आएगा, जब हर तरफ शांति ही शांति होगी। मंगल कामना है कि अब मनुष्य यंत्र के बल पर नहीं, भावना, विकास और प्रेम के बल पर जीए और जीते।

- ललित गर्ग

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़