दिल्ली के पालम गांव के बुजुर्गों ने रखी थी लाल किले की नींव
पालम गांव की चौधराहट से जुड़े किशनचंद सोलंकी का कहना है कि जब सन् 1639 में मुगल बादशाह शाहजहां ने लाल किले की नींव रखी थी तो उन्होंने पालम गांव के ही 5 बुजुर्गों को सम्मान के रूप में बुलाया था।
ये आर्टिकल मूलतः Travel Junoon पर प्रकाशित किया गया है।
अक्सर जब भी बात होती है लाल किले की तो सभी के मन में तिरंगा, 15 अगस्त, शाहजहां का ख्याल आता है। लेकिन कोई भी ये नहीं जानता है कि लाल किले की पहली नींव मुगल बादशाह शाहजहां ने नहीं रखी थी। देश की शान का प्रतीक, जहां से हर साल 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं और देश की स्वतंत्रता पर संबोधित करते हैं। इस लाल किले की पहली ईंट दिल्ली के ही एक गांव के बुजुर्गों ने रखी थी। ये गांव दिल्ली के सबसे पुराने गांवों में शामिल है और इसका नाम है पालम।
पालम गांव से कई ऐतिहासिक कहानियां जुड़ी हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। पालम गांव की चौधराहट से जुड़े किशनचंद सोलंकी का कहना है कि जब सन् 1639 में मुगल बादशाह शाहजहां ने लाल किले की नींव रखी थी तो उन्होंने पालम गांव के ही 5 बुजुर्गों को सम्मान के रूप में बुलाया था। इन बुजुर्गों ने ही लाल किले की नींव में पहली ईंट रखी थी, क्योंकि इस गांव को 360 गांव की चौधराहट मिली हुई थी। गांव के ही कुछ और लोगों का ये भी कहना है कि पालम गांव की मिट्टी में काफी शक्ति है, इसलिए भी बुजुर्गों को बुलाया गया था, ताकि किले की नींव मजबूत रहे।
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वहीं भारत में मुगल साम्रज्य की नींव बाबर के द्वारा रखी गई थी, वो भी पहले पालम में आकर रुका था। किशनचंद का कहना है कि जब बाबर दिल्ली में आया तो वो पालम में ही आकर रुका था। साथ ही ऐसा भी सुनने को मिलता है कि उसने पालम को ही अपनी राजधानी बनाया था। लेकिन बाद में अपनी राजधानी यहां से बदल दी थी। आज भी पालम में बाबर के वक्त की एक मस्जिद मौजूद है। इसके अलावा उस दौर में बनी बावड़ी भी यहां पर आज है। इसी वजह से इस गांव का काफी ज्यादा ऐतिहासिक महत्व माना जाता है।
इस गांव के अंदर से ही 12 छोटे और गांव भी निकले हैं। ये गांव हैं पालम, बागडौला, शाहबाद मौहम्मदपुर, मटियाला, बिंदापुर, असालतपुर, डाबड़ी, नसीरपुर, गोयला खुर्द, नांगल राया, पूठकलां। ये सभी गांव दादा देव महाराज को ही मानते हैं। हर साल दादा देव के मंदिर में दशहरा मेला भी आयोजित कराया जाता है। इस मेले में लाखों की तादाद में लोग आते हैं। वहीं हर साल तीज के मौके पर भी यहां पर एक दंगल का आयोजन करवाया जाता है। जो पहलवान इसमें जीत हासिल करता है उसे एक लाख रुपये का इनाम दिया जाता है। पालम में होने वाले इस दंगल में दिल्ली, हरियाणा, यूपी, राजस्थान समेत कई और राज्यों से भी पहलवान यहां पर आते हैं।
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आपको बता दें कि इस गांव को बावनी के नाम से भी संबोधित किया जाता है, इसके पीछे की वजह है कि पालम गांव की जमीन 52 गांवों से लगती है इस वजह से इसे बावनी कहते हैं। वहीं बलजीत सिंह सोलंकी बताते हैं कि दिल्ली हवाई अड्डे के लिए इस गांव की 1200 बीघा जमीन गई है। इसलिए इस गांव के नाम पर ही हवाई अड्डे का नाम पड़ा है।
क्या है पालम गांव का इतिहास
पालम गांव का इतिहास 1200 साल पुराना है। ये इतिहास टोडा रॉय गांव से शुरु हुआ था। इस गांव में बने दादा देव मंदिर प्रबंधन समिति के ही अध्यक्ष बलजीत सिंह सोलंकी के मुताबिक ये गांव सिर्फ ऐतिहासिक नहीं है बल्कि आस्था से भी काफी ज्यादा जुड़ा हुआ है। इस गांव के बड़े-बुजुर्ग टोंक जिले के टोडा रॉय सिंह गांव से यहां पर बसने के लिए आए थे। टोडा रॉय सिंह में दादा देव महाराज भी रहते थे। वो सारा दिन ध्यान में ही विलीन रहते थे।
इस गांव से जुड़ी हुई लोक कहानी भी है कि उनके तप से खुश होकर भगवान ने उन्हें दिव्य शक्तियां दी थीं। जिसके जरिये वो गांव वालों का भला किया करते थे। कुछ समय बाद वो शिला पर बैठे हुए ही ब्रह्मलीन हो गए थे। जिसके कुछ वक्त बाद इस गांव में अकाल पड़ा था और गांव वालों ने मजबूरी में आकर इस गांव को छोड़कर यहां से जाने का फैसला किया, वो उस भारी शिला को बैलगाड़ी में रखकर वहां से निकल पड़े।
रास्ते में उन्हें भविष्यवाणी हुई थी, कि जहां पर भी ये शिला गिर जाए आप सभी वहां पर ही बस जाना। ये लोग चलते चलते पालम गांव में आ गए और यहां पर ये शिला गिर गई। जिसके बाद इन लोगों ने यहीं पर रहना शुरू कर दिया था। आज जहां पर ये शिला गिरी थी, वहां पर दादा देव का एक भव्य मंदिर है। यहां पर लोग दूर-दूर से मन्नतें मांगने के लिए आते हैं।
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