“आकाशीय पिंडों की पहचान में प्रभावी है मशीन लर्निंग तकनीक”
भारतीय शोधकर्ताओं को मशीन लर्निंग के उपयोग से एक्स-रे तरंग दैर्ध्य में बड़ी संख्या में आकाशीय पिंडों की पहचान करने में सफलता मिली है। खगोलीय सर्वेक्षणों और अन्य प्रेक्षणों के माध्यम से बड़ी संख्या में अज्ञात स्रोतों का पता चलता रहता है।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के अहम घटक के रूप में मशीन लर्निंग का उपयोग विभिन्न अनुप्रयोगों में बढ़ रहा है। वर्तमान युग में प्रचलित स्मार्ट उपकरणों का एक प्रमुख आधार मशीन लर्निंग तकनीक ही है। मशीनों के संचित डेटा एवं पूर्व कंप्यूटिंग अनुभवों के आधार पर उनकी निर्णय लेने की क्षमता मशीन लर्निंग का एक प्रमुख उदाहरण है।
एक नये अध्ययन में, भारतीय शोधकर्ताओं को मशीन लर्निंग के उपयोग से एक्स-रे तरंग दैर्ध्य में बड़ी संख्या में आकाशीय पिंडों की पहचान करने में सफलता मिली है। खगोलीय सर्वेक्षणों और अन्य प्रेक्षणों के माध्यम से बड़ी संख्या में अज्ञात स्रोतों का पता चलता रहता है। इसके लिए एक प्रभावी स्वचालित वर्गीकरण तकनीक की आवश्यकता होती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि उपयुक्त स्वचालित क्लासिफायरियर की खोज के उद्देश्य से यह अध्ययन किया गया है।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर), मुंबई और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएसटी), तिरुवनंतपुरम के वैज्ञानिकों द्वारा यह अध्ययन संयुक्त रूप से किया गया है।
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टीआईएफआर और आईआईएसटी के इस अध्ययन में अमेरिकी चंद्रा अंतरिक्ष वेधशाला के साथ एक्स-रे में देखी गई ब्रह्मांडीय ऑब्जेक्ट्स पर मशीन लर्निंग तकनीक का उपयोग किया गया है। लगभग 2.77 लाख एक्स-रे ऑब्जेक्ट्स पर इन तकनीकों को लागू किया गया है, जिनमें से अधिकांश की प्रकृति अज्ञात थी। शोधकर्ताओं का कहना है, अज्ञात ऑब्जेक्ट्स की प्रकृति का वर्गीकरण विशिष्ट वर्गों की वस्तुओं की खोज के बराबर है।
शोधकर्ता कहते हैं कि इस दौरान ब्लैक होल, न्यूट्रॉन तारे, सफेद बौने, और अन्य तारों जैसे आकाशीय पिंडों की खोज हुई, जिसने खगोल विज्ञान समुदाय के लिए विस्तृत अध्ययन के लिए एक विशाल अवसर के द्वार खोले हैं। यह अध्ययन दर्शाता है कि कैसे एक नई और सामयिक तकनीकी प्रगति बुनियादी और मौलिक वैज्ञानिक अनुसंधान में क्रांति ला सकती है।
इस अध्ययन को खगोल विज्ञान में मौलिक अनुसंधान के लिए मशीन लर्निंग तकनीक की अत्याधुनिक क्षमता के उपयोग के लिए महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्तमान और भविष्य की वेधशालाओं से डेटा का वैज्ञानिक रूप से उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकता है।
इस अध्ययन में, टीआईएफआर के प्रोफेसर सुदीप भट्टाचार्य और आईआईएसटी, तिरुवनंतपुरम के शोधकर्ता प्रोफेसर समीर मंडल, प्रोफेसर दीपक मिश्रा एवं शिवम कुमारन शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका मंथली नोटिसेज ऑफ रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)
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