आईआईटी खड़गपुर ने बनाया गन्ने की रोपाई के लिए स्वचालित उपकरण
ट्रैक्टर-चालित यह कली रोपण मशीन तैयार गन्ने की कलियों के रोपण और कवकनाशी के छिड़काव के लिए विकसित की गई है। इसमें दो पंक्तियों में गन्ने की कली के रोपण का तंत्र और सेंसर-आधारित कवकनाशी अनुप्रयोग प्रणाली शामिल है।
गन्ना एक वैश्विक औद्योगिक फसल है, जो चीनी, जैव ऊर्जा, पेपर, इथेनॉल, बिजली आदि के उत्पादन से जुड़ा एक प्रमुख संसाधन है। वैश्विक स्तर पर गन्ने के उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत है। लेकिन, खेती के पारंपरिक तरीकों के कारण किसानों को बीज सामग्री के रूप में उपयोग किए जाने वाली गन्ने की डंठल का नुकसान उठाना पड़ता है। उत्पादन की इस पद्धति में श्रम व समय अधिक लगने के साथ-साथ उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने गन्ने की खेती से संबंधित कार्यों के स्वचालित रूप से निपटारे के लिए एक विशिष्ट उपकरण विकसित किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह उपकरण गन्ने की रोपाई और कवकनाशी दवाओं के छिड़काव में उपयोगी हो सकता है।
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गन्ने की रोपाई से संबंधित यह उपकरण एक दृष्टि-आधारित गन्ने की कलियां काटने की मशीन है, जिसमें ट्रैक्टर से संचालित एक रोपाई मशीन भी शामिल है। इस मशीन में गन्ने का फीडिंग सिस्टम, गन्ने की कलियों की पहचान के लिए मशीन विज़न सिस्टम और गन्ने की कलियों की कटाई के लिए मेकाट्रॉनिक्स (Mechatronics) सिस्टम शामिल है। मेकाट्रॉनिक्स, इंजीनियरी की एक ऐसी शाखा है, जिसमें यांत्रिक इंजीनियरी, रोबोटिक्स, इलेक्ट्रॉनिकी, संगणक इंजीनियरी, संचार इंजीनियरी, सिस्टम इंजीनियरी, और नियंत्रण इंजिनीयरी आदि आधारित मिश्रित प्रणाली का अध्ययन और डिजाइन किया जाता है।
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ट्रैक्टर-चालित यह कली रोपण मशीन तैयार गन्ने की कलियों के रोपण और कवकनाशी के छिड़काव के लिए विकसित की गई है। इसमें दो पंक्तियों में गन्ने की कली के रोपण का तंत्र और सेंसर-आधारित कवकनाशी अनुप्रयोग प्रणाली शामिल है। आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रोफेसर वीरेंद्र के. तिवारी ने कहा है कि “यह तकनीक भारत जैसे गन्ना उत्पादक देशों में औद्योगिक और स्थानीय स्तर पर उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ स्वचालित तकनीकों का प्रचलन कम है। यह प्रणाली गन्ने के रोपण के लिए अपनाए गए पारंपरिक तरीकों के मुकाबले रोपण सामग्री के उपयोग को कम करने में मदद कर सकती है। इससे गन्ने की कलियों की अधिक मात्रा को बचा सकते हैं और कच्चे माल की क्षति कम कर सकते हैं।”
(इंडिया साइंस वायर)
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