इंडिया गठबंधन बचाने के लिए कांग्रेस को सहयोगी दलों की भावनाओं को समझना होगा
नीतीश कुमार चाहते थे कि उन्हें इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाया जाए। मगर कांग्रेस ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को इंडिया गठबंधन का अध्यक्ष नियुक्त करवा दिया था। जिससे नीतीश कुमार मन ही मन खुन्नस खाए हुए थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा नीत एनडीए गठबंधन की सरकार को सत्ता से हटाने के लिए देश के 28 प्रमुख विपक्षी दलों ने इंडिया गठबंधन बनाकर एक साथ चुनाव लड़ने का संकल्प जाहिर किया था। कांग्रेस गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है। मगर गठबंधन में शामिल क्षेत्रीय दलों की ताकत भी कम नहीं है। क्षेत्रीय दल भी अपने-अपने प्रदेशों में मजबूत स्थिति में है। इंडिया गठबंधन भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प मिला था। लगने लगा था कि आने वाले समय में यह गठबंधन भाजपा को टक्कर दे सकता है।
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जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का समय नजदीक आने लगा वैसे-वैसे ही क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने कांग्रेस से सीटों का बंटवारा करने की बात करने लगे। मगर कांग्रेस पार्टी पहले कर्नाटक व हिमाचल विधानसभा चुनाव में व्यस्तता की बात कहती रही। फिर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व तेलंगाना विधानसभा चुनाव के बहाने बात को टाल दिया। कांग्रेस के चलते इंडिया गठबंधन में शामिल दलों में आपसी सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया। हालांकि कांग्रेस पार्टी तेलंगाना को छोड़कर बाकी तीनों प्रदेशों में चुनाव हार गई। उसके बाद भी कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे को लेकर बात आगे नहीं बढ़ायी।
इसी के चलते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रदेश में अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। ममता बनर्जी वहां कांग्रेस को मौजूदा दो सीट बहरामपुर व दक्षिण मालदा ही देना चाहती है। जबकि कांग्रेस वहां 10 सीटों पर दावा कर रही है। ममता बनर्जी का कहना है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस बहुत कमजोर है। ऐसे में उनकी पार्टी ही भाजपा को हरा सकती। इसलिए वह कांग्रेस को दो से अधिक सीट नहीं देगी। इसके अलावा ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन में शामिल वामपंथी दलों के साथ किसी तरह का सीट बंटवारा या समझौता भी नहीं करना चाहती है। ममता बनर्जी की एक तरफा घोषणा से इंडिया गठबंधन कमजोर पड़ा है। वहां कांग्रेस व वामपंथी दल बिना ममता बनर्जी के प्रभाव नहीं दिखा पाएंगे।
सीटों पर तालमेल नहीं होने के चलते ही इंडिया गठबंधन के शिल्पकार व प्रमुख स्तंभ रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पुनः भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली है। नीतीश कुमार का इंडिया गठबंधन को छोड़कर एनडीए में शामिल होना इंडिया गठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं है। नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन छोड़ने के बाद राष्ट्रीय जनता दल के बजाय कांग्रेस पर अधिक निशाना साधा है। नीतीश कुमार का कहना है कि कांग्रेस के नेता मनमाने ढंग से गठबंधन को चलाना चाहते हैं। जिसके चलते उन्होने गठबंधन छोड़कर भाजपा के साथ जाने में ही जदयू की भलाई समझी।
बिहार भाजपा के लिए सबसे कमजोर कड़ी साबित हो रहा था। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा ने वहां 17 सीटे जीती थी। मगर वर्तमान में भाजपा सबसे कमजोर स्थिति भी बिहार में ही नजर आ रही थी। मगर नीतीश कुमार के पुनः भाजपा से जुड़ने के चलते बिहार में एक बार फिर भाजपा के मजबूत होने की संभावना लगने लगी है। इंडिया गठबंधन का संयोजक नहीं बनाना भी नीतीश कुमार के जाने का एक बड़ा कारण रहा है।
नीतीश कुमार चाहते थे कि उन्हें इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाया जाए। मगर कांग्रेस ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को इंडिया गठबंधन का अध्यक्ष नियुक्त करवा दिया था। जिससे नीतीश कुमार मन ही मन खुन्नस खाए हुए थे। नीतीश कुमार चाहते थे कि इंडिया गठबंधन का संयोजक बनने से वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो जाएंगे। मगर कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। जिसके चलते उन्हें लगने लगा कि कांग्रेस अपने ही नेताओं को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाने जा रही है। इसलिए उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाना ही बेहतर समझा।
उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस के लिए ग्यारह सीट व राष्ट्रीय लोकदल के लिये सात सीट छोड़कर बाकी 62 सीटों पर अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को चुनाव लड़वाने की घोषणा कर दी है। जबकि कांग्रेस वहां 20 सीटों पर दावेदारी जता रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास अभी एक मात्र रायबरेली की सीट है। जहां से सोनिया गांधी सांसद हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वहां मात्र 6.31 प्रतिशत ही वोट मिले थे। उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने के चलते कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा था। वहां पिछले विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस को 2.33 पतिशत ही वोट मिल पाये थे। कांग्रेस वहां अकेले ही चुनाव लड़ेगी तो स्थिति बहुत कमजोर रहेगी।
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, असम, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गोवा में कांग्रेस अकेले ही चुनाव लड़ना चाहती है। जबकि इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य दलों के नेता चाहते हैं कि कांग्रेस अपने प्रभाव वाले प्रदेशों में भी साथी दलों के लिए कुछ सीटें छोड़े। जिससे उनके प्रत्याशी वहां चुनाव लड़ सकें। दिल्ली, पंजाब, गुजरात, गोवा में आम आदमी पार्टी का प्रभाव है। जिसके चलते आम आदमी पार्टी चाहती है कि गोवा व गुजरात में कांग्रेस उनके लिए कुछ सीट छोड़ें। बदले में दिल्ली व पंजाब में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को कुछ सीट दे सकती है। मगर कांग्रेस चाहती है कि पंजाब में अधिक सीटों पर वह लड़े। इसी के चलते पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब की सभी 13 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है।
बिहार में कांग्रेस को राष्ट्रीय जनता दल, भाकपा माले, भाकपा, माकपा के साथ ही अन्य दलों के साथ समझौता करना पड़ेगा। इसी तरह झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा व राष्ट्रीय जनता दल के प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में उतरेंगे। महाराष्ट्र में शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार आज भी चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। बाबा साहेब आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी भी महाविकास अघाड़ी में शामिल हो गयी है। महाराष्ट्र में कांग्रेस को अघाड़ी में शामिल दलों की भावनाओं का सम्मान करते हुए सीटों के बंटवारे की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
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विपक्ष में सबसे बड़ा दल होने के चलते कांग्रेस की नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है कि वह अपने साथ इंडिया गठबंधन में शामिल सभी छोटे-बड़े दलों को जोड़कर उनकी भावनाओं को समझे और उन्हें सम्मानजनक स्थिति प्रदान करें। ममता बनर्जी, भगवंत मान, अखिलेश यादव की सीट बंटवारे पर एकतरफा घोषणा करने व नीतीश कुमार के एनडीए के साथ जाने से इंडिया गठबंधन को तगड़ा झटका लगा है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं को इस बात पर चिंतन मनन करना चाहिए कि ऐसी परिस्थितियों क्यों बन रही है जिसके कारण नीतीश कुमार जैसे मजबूत नेता को इंडिया गठबंधन छोड़ना पड़ा। भविष्य में ऐसी स्थिति फिर से ना बने जिससे उनके किसी अन्य सहयोगी को भी गठबंधन से अलग होना पड़े। इस बात की पूरी जिम्मेवारी कांग्रेस पार्टी को लेनी होगी। बहरहाल तो नीतीश कुमार के जाने से इंडिया गठबंधन में टूट का जो सिलसिला शुरू हुआ है। उसका नतीजा क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।
-रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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