बसपा में सीटिंग एमपी की जगह नये चेहरों की तलाश

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अजय कुमार । Jan 23 2024 5:13PM

बसपा भले ही इस बार अकेले ही चुनाव मैदान में उतर रही हो, लेकिन बसपा प्रमुख ने यह भी कहा है कि चुनाव बाद अपनी शर्तों पर सरकार में शामिल हो सकती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए बसपा अपनी रणनीति तैयार कर रही है।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के साथ ही सीटवार कसरत तेज कर दी है। बसपा का सबसे पहले उन 10 सीटों पर फोकस है, जिन पर उसने 2019 में जीत हासिल की थी। उसके वर्तमान सांसदों के दूसरे दलों के संपर्क में आने की खबरें आ रही हैं। इसे देखते हुए बसपा उनके विकल्प तलाश रही है। सूत्रों के अनुसार बसपा ज्यादातर सीटों पर प्रभारी तय कर चुकी है। सहारनपुर की सीट पर माजिद अली को काफी पहले प्रभारी घोषित किया जा चुका है, लेकिन उसके बाद यह काम रोक दिया गया था। मायावती ने अब प्रत्याशियों के चयन पर और अधिक काम करने के निर्देश दिए हैं। पूरी कसरत करने के बाद ही प्रत्याशियों का ऐलान किया जाएगा।

पार्टी उन खास सीटों पर भी काम कर रही है जहां 35 और 40 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए थे। गौरतलब हो, बसपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा था. उसने 38 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से जीती हुई सीटों के अलावा 10 और सीटें ऐसी थीं जिन पर उसे 40 फीसदी से अधिक वोट हासिल हुए। यहां बहुत कम वोटों के अंतर से हार मिली थीं। वहीं जीती हुई सीटों के अलावा 21 सीटें ऐसी थीं, जहां 35 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे। पार्टी ने ऐसी सीटें भी तलाशी हैं जहां दलित वोटर बहुसंख्यक हैं और यहां बसपा का प्रदर्शन अक्सर बेहतर रहता है। इनमें सहारनपुर, अम्बेडकर नगर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, आगरा जैसी कुछ सीटें हैं। पार्टी की कोशिश है कि ऐसे मजबूत सीटों पर बेहतर प्रत्याशी देकर वहां ठीक से प्रचार किया जाए। यहां पर बड़े नेताओं की अधिक से अधिक बैठकें और सभाएं की जाएं।

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खैर, बसपा भले ही इस बार अकेले ही चुनाव मैदान में उतर रही हो, लेकिन बसपा प्रमुख ने यह भी कहा है कि चुनाव बाद अपनी शर्तों पर सरकार में शामिल हो सकती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए बसपा अपनी रणनीति तैयार कर रही है। कोशिश है मजबूत सीटों पर फोकस कर लिया जाए तो प्रदर्शन बेहतर हो सकता है। इनमें सबसे बड़ी चुनौती वह सिटिंग सीटें हैं, जहां वह पिछली बार जीती थी। यदि वह कुछ सीटें भी जीत लेती है तो यह चुनाव बाद उसकी योजना के लिए जरूरी है। यदि चुनाव नतीजे आने के बाद किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो कुछ सीटों के दम पर वह उसके साथ जा सकती है, जिसकी सरकार बनने की उम्मीद हो। ऐसे में वह सरकार में शामिल हो सकती है।

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