आपराधिक आरोपों के प्रत्याशियों से किसी दल को गुरेज नहीं

Indian Politics
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राजनीतिक दलों का एकमात्र उद्देश्य सिर्फ सत्ता प्राप्त करना रह गया है। इसके लिए बेशक संगीन अपराधों के आरोपियों को ही टिकट देकर क्यों न जिताना पड़े। अपराध के आरोपियों को टिकट देने के लिए राजनीतिक दल जितने जिम्मेदार हैं, उतने ही उन लोकसभा क्षेत्रों के मतदाता भी जिम्मेदार हैं।

राजनीतिक दलों में चाहे जितने भी वैचारिक और सैद्धान्तिक मतभेद हों किन्तु एक मुद्दे पर देश के सभी राजनीतिक दलों में मौन सहमति है। यह चुप्पी है आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधियों के चुने जाने को लेकर। लोकसभा चुनाव के दौरान किसी भी राजनीतिक दल ने लोकतंत्र की पवित्रता को बचाए रखने के लिए आपराधिक रिकार्ड वाले प्रत्याशियों को दरकिनार करना तो दूर बल्कि सत्ता का समीकरण बिठाने के लिए बढ़-चढ़ कर टिकट दिए। सत्ता का स्वार्थ इस कदर हावी है कि इस मुद्दे पर कोई चर्चा तक करना नहीं करना चाहता। यही वजह रही कि लोकसभा के चुनाव में अपराध और राजनीति चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। राजनीतिक मंचों से दलों ने एक-दूसरे पर कई तरह के आरोप लगाए पर आपराधिक आरोपों के नेताओं को टिकट देने के मामले में सब के सब मौन रहे। 18वीं लोकसभा चुनाव में कुल 543 सीटों में से 251 नवनिर्वाचित सांसद ऐसे हैं, जिन के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। हत्या, बलात्कार, लूट और डकैती जैसे अपराध के गंभीर आरोपों से नेताओं का दामन दागदार है। ऐसे में देश में अपराध और भय से मुक्ति दिलाने की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।   

आपराधिक आरोपों के विजयी उम्मीदवारों में भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे है। भाजपा के 240 विजयी उम्मीदवारों में से 63 सांसदों पर हर तरह मामले विचाराधीन हैं। कांग्रेस के 99 विजयी उम्मीदवारों में से 32 सांसदों, सपा के 37 विजयी उम्मीदवारों में से 17 सांसदों और तृणमूल कांग्रेस के 29 विजयी उम्मीदवारों में से 7 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। लोकसभा चुनाव में 170 विजयी उम्मीदवारों ने बलात्कार, हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध आदि से संबंधित मामलों सहित गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। अपराधी छवि के जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में 539 सांसदों में से 233 सांसदों ने अपने विरुद्ध आपराधिक मामले घोषित किये थे। इनमें से 159 सांसदों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 

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पिछली लोकसभा में जहां कुल सदस्यों के 43 फीसदी अर्थात 233 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे थे, तो अब नई 18वीं लोकसभा में 46 फीसदी के साथ ये संख्या 251 हो गई है। इसमें तीन फीसदी का इजाफा हो गया है, लेकिन 2009 से मुकाबला करें तो 15 साल में इसमें 55 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस लोकसभा में 170 गंभीर आरोपियों में 27 सांसद सजायाफ्ता हैं, वहीं, 4 पर हत्या के मामले हैं. 15 सांसदों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के इल्जाम हैं, जिनमें से 2 पर रेप का आरोप है। अपराधी पृष्ठभूमि वाले 43 सांसद हेट स्पीच के आरोपी हैं।   

वोट बैंक की राजनीति इस हद तक नीचे गिर गई है आपराधिक कृत्यों के आरोपों में न तो प्रत्याशी में कोई शर्म बाकी रह गई और न ही राजनीतिक दलों में। दूसरे शब्दों में कहें तो राजनीतिक दलों में सत्ता की प्रतिस्पर्धा से अपराधी छवि वाले प्रत्याशी जीत कर देश और राज्यों को चलाने के लिए संसद और विधानसभाओं तक पहुंच रहे हैं। लोकतंत्र में शुचिता और पारदर्शिता की मिसाल पेश करने के बजाए नेता और राजनीतिक दल उल्टी गंगा बहा रहे हैं। सार्वजनिक तौर बिना झिझक माफियाओं से गलबहियां डालना और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने पर नेताओं के संवेदना दिखा कर वोट बटोरने का प्रयास करने का सिलसिला जारी है। सोशल मीडिया की जागरुकता के इस दौर में यह प्रवृत्ति कांग्रेस और भाजपा में कम नजर आती है, किन्तु अन्य दलों में जरा भी लोकलाज नहीं बची है।   

उत्तर प्रदेश में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ऐसे दुर्दांत अपराधियों के खात्मे के बजाए उल्टे आरोप लगाए। यादव ने ट्वीट किया था कि उत्तर प्रदेश में अपराध की पराकाष्ठा हो गयी है और अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। सपा सांसद रहे दिवंगत डॉ शफीकुर्रहमान बर्क ने इस माफिया के अपराधी भाई अतीक अशरफ के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने पर ट्वीट कर कहा था कि देश में कोर्ट कचहरी और थानों में ताले लग जाने चाहिए। कानून-व्यवस्था को मिट्टी में मिला दिया। उत्तर प्रदेश के ही माफिया मुख्तार अंसारी की बीमारी से हुई मौत को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश ने मुस्लिमों की संवेदनाएं बटोरने और उन्हें उकसाने में कसर नहीं छोड़ी। अंसारी के परिवार की मिजाजपुर्सी के लिए पहुंचे अखिलेश ने कहा था परिवार का दुख बांटने और जो घटना हुई है वो शॉकिंग थी सबके लिए। यादव ने अंसारी के आपराधिक कृत्यों पर पर्दा डालते हुए कहा था कि जो व्यक्ति इतने वर्षों जेल रहा हो और उसके बाद भी जनता जिता रही हो तो इसका मतलब परिवार और उस व्यक्ति ने जनता का दुख दर्द बांटा है। अंसारी के खिलाफ 60 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे। बाहुबली अतीक अहमद और शहाबुद्दीन का नाम लेकर वोट की अपील करने पर मुकदमा दर्ज होने से बौखलाए यूपी की संभल सीट पर सपा की टिकट पर सांसद चुने गए जियाउर्रहमान बर्क ने मंच से चुनाव आयोग और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को धमकी भरे तेवर दिखाए थे। उन्होंने कहा कि बीजेपी के लोग आचार संहिता का उल्लंघन करें तो कोई कुछ नहीं कहता, लेकिन हम दायरे में रहकर भी सही बात करें तो मुकदमा दर्ज कर देते हैं। जियाउर्रहमान ने मंच से ही चुनाव आयोग और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों से धमकी भरे अंदाज में कहा था कि याद रखना हमेशा एक जैसे दिन नहीं रहते हैं क्योंकि कभी दिन बड़ा होता है तो कभी रात बड़ी होती है, लेकिन जिस दिन वक्त बदलेगा तो हम इन चीजों को भूलने वाले नहीं हैं। उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी आपराधिक रिकार्डधारी आरोपियों और उनके परिवार के सदस्यों को गले लगाने के लिए राजनीतिक दल आतुर रहे हैं। इस लोकसभा चुनाव में बिहार में पांच बाहुलियों ने अपनी पत्नियों को मैदान में उतारा था, इनमें तीन को हार का सामना करना पड़ा। जबकि दो को जीत मिली। हत्या के मामले में दोषी और डॉन आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने जेडीयू के टिकट पर शिवहर चुनाव जीता है। सिवान से जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीतने वालीं विजयलक्ष्मी देवी बाहुबली नेता रमेश सिंह कुशवाहा की पत्नी हैं। रमेश का ताल्लुक से माओवादी संगठन से सम्बद्ध सीपीआई एमएल से रहा है और शिवजी दुबे हत्याकांड में जेल भी जा चुके हैं।   

राजनीतिक दलों का एकमात्र उद्देश्य सिर्फ सत्ता प्राप्त करना रह गया है। इसके लिए बेशक संगीन अपराधों के आरोपियों को ही टिकट देकर क्यों न जिताना पड़े। अपराध के आरोपियों को टिकट देने के लिए राजनीतिक दल जितने जिम्मेदार हैं, उतने ही उन लोकसभा क्षेत्रों के मतदाता भी जिम्मेदार हैं। मतदाता जात-पांत, धर्म, ऊंच-नीच और प्रचार के दौरान किसी न किसी रूप में फायदा मिलने के लालच में ऐसे प्रत्याशियों को जिताने में पीछे रहते है। हालांकि विगत में होने वाले चुनावों में बाहुबली और माफियाओं के चुनाव जीतने की कहानी अब भले ही इतिहास हो चुकी है पर पूरी तरह से सफाई नहीं हुई है। माफियाओं के लिए बदनाम रहे उत्तर प्रदेश और बिहार में काफी हद इनका खात्मा हो चुका है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं का चुनाव जीतना इस बात का द्योतक है कि देश में विशुद्ध तौर पर लोकतंत्र आने में अभी दशकों का वक्त लगेगा।

- योगेन्द्र योगी

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