क्या यूक्रेन की तरह इजरायल को भी अकेला छोड़ने जा रहा है अमेरिका ?
यह बात सही है कि निर्दोष नागरिकों को मारने की कार्रवाई को कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता लेकिन जब एक आतंकी संगठन उन नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल कर आतंकी हमला करें तो फिर संयुक्त राष्ट्र को नसीहत देने की बजाय कार्रवाई करना चाहिए।
कुख्यात आतंकवादी संगठन हमास के खतरनाक आतंकी हमले के बाद इजरायल ने हमास के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया है। इजरायल हर तरीके से हमास को खत्म करने पर तुला हुआ है। इजरायल की तरफ से की जा रही भीषण जवाबी कार्रवाई के दौरान फिलिस्तीन के कुछ निर्दोष नागरिक भी मारे गए हैं और इसी के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर से मानवाधिकार का मुद्दा गरमाता हुआ नजर आ रहा है।
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोमवार रात गाजा में जारी हिंसा पर लाए गए रूस का प्रस्ताव जिसमें गाजा में आम नागरिकों के खिलाफ हो रही हिंसा की निंदा करते हुए युद्धविराम की मांग की गई थी को खारिज कर दिया गया। रूस द्वारा एक तरह से इजरायल के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को 15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद में पास होने के लिए 9 वोटों की जरूरत थी लेकिन प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ चार देशों ने ही वोट दिया, वहीं चार देशों ने इसके खिलाफ भी वोट दिया। रूस के प्रस्ताव में आतंकी संगठन हमास या उसके द्वारा इजरायली नागरिकों पर किए गए बर्बर आतंकी हमलों का कोई जिक्र नहीं था।
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दरअसल, गाजा में हमास को खत्म करने के लिए की जा रही इजरायली कार्रवाई को लेकर चीन और रूस के अलावा कई अरब देश तो सवाल उठा ही रहे हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी जिस अंदाज में इजरायल को नसीहत दी है, उससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
वैसे तो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन हमास के हमले के खिलाफ इजरायल की जनता के प्रति अपना समर्थन जताने के लिए बुधवार को इजरायल के दौरे पर भी जा रहे हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन और अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय ने आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति बाइडेन की इजरायल यात्रा की खबर पर मुहर लगा दी है।
लेकिन यह हमेशा से ही कहा जाता रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में जैसा दिखता है, वैसा हर बार होता नहीं है। अपने साथियों को अलग-थलग छोड़ने,आतंकी संगठन को नजरअंदाज करने या फिर व्यापारिक फायदे के लिए किसी कुख्यात संगठन या देश का साथ देने के मामले में अमेरिका का ट्रैक रिकॉर्ड हमेशा से ही खराब रहा है।
इसलिए अमेरिका के रुख को समझने के लिए हमें तीन तथ्यों पर गौर जरूर करना चाहिए। पहला- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के निमंत्रण पर इजरायल जा रहे हैं। दूसरा- बाइडेन रूस-यूक्रेन की लड़ाई के बीच यूक्रेन जाकर भी रूस को सबक सिखाने की बात कर चुके हैं लेकिन यूक्रेन आज भी रूस जैसी महाशक्ति से अकेले लड़ रहा है और तबाह भी हो रहा है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि अमेरिका जैसा देश भी इजरायल को मानवाधिकार का पाठ पढ़ा रहा है। उस इजरायल को जिसके सैंकड़ों नागरिक हमास के आतंकी हमले का शिकार हुए और जिसके 200 से ज्यादा नागरिकों को हमास ने अभी भी बंधक बनाया हुआ है।
अब तक हर कीमत पर इजरायल के साथ खड़े नजर आने वाले अमेरिका के सुर भी इस बार बदले बदले से नजर आ रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजरायल को नसीहत देते हुए बयान दिया कि हमास का पूरी तरह से खात्मा होना जरूरी है लेकिन इसके साथ ही फिलिस्तीन राज्य का रास्ता भी साफ होना चाहिए। बाइडेन ने कहा कि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इजरायल पर हमास के आतंकी हमलों से फिलिस्तीन के ज्यादातर लोगों को कोई लेना-देना नहीं था लेकिन वे इस हमले के परिणाम को झेल रहे हैं। उन्होंने तो यहां तक उम्मीद जता दी कि इजरायल इस लड़ाई में युद्ध के नियमों के तहत ही कार्रवाई करेगा यानी आतंकी संगठन से लड़ने में भी युद्ध के नियम का पालन ?
यह बात सही है कि निर्दोष नागरिकों को मारने की कार्रवाई को कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता लेकिन जब एक आतंकी संगठन उन नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल कर आतंकी हमला करें तो फिर संयुक्त राष्ट्र को नसीहत देने की बजाय कार्रवाई करना चाहिए।
लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान के बाद अब इजरायल के लिए यह सोचने वाला मुद्दा तो बन ही गया है कि क्या अपने व्यापारिक हितों या बदल रहे वर्ल्ड आर्डर में अपनी भूमिका को सुरक्षित रखने के स्वार्थ से ग्रस्त अमेरिका उसे भी तो गच्चा देने नहीं जा रहा है। यूक्रेन का ताजा-ताजा उदाहरण तो सबके सामने है ही।
-संतोष पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)
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