महापुरुषों के नाम पर छुट्टी की जगह ज्यादा काम होना चाहिए
ये बिलकुल सही बात है कि ऐसी छुट्टी की परंपरा बंद होनी चाहिए और ऐसे मौकों पर स्कूलों में एक-दो घंटे का विशेष सत्र आयोजित कर संबंधित महापुरुष के बारे में बच्चों को जानकारी दी जानी चाहिए।
लगातार कार्य दिवस के बाद जब छुट्टी वाला दिन आता है तो किसे अच्छा नहीं लगता? लोग बड़ी बेसब्री से इंतजार भी करते हैं इन छुट्टियों का। लेकिन उत्तर प्रदेश में लोगों को छुट्टियों का इंतजार नहीं करना पड़ता है, खासकर सरकारी लोगों को। वैसे तो पूरे भारत में राष्ट्रीय और धार्मिक आधार पर कई सारे अवकाश पहले ही रहते हैं। साथ ही हर प्रदेश अपनी सुविधाओं और संरचना के हिसाब से अलग से अवकाश भी घोषित किये हुए हैं। मगर इस लिस्ट में सबसे आगे है उत्तर प्रदेश, जहाँ सबसे अधिक सरकारी अवकाश घोषित हैं, क्योंकि यहाँ जातीय और धार्मिक राजनीतिक समीकरण को साधने के लिए महापुरुषों के नाम पर सरकारी अवकाश की घोषणाएं, कुछ कुछ रेवड़ियां बांटने की तरह की गयी हैं।
इस सन्दर्भ में बात करें तो, मुख्यमंत्री योगी ने जब से कुर्सी संभाली है उनकी पैनी नज़र कई बारीक़ चीजों पर जा रही है। शायद सीएम योगी को आभास हो गया है कि जब तक छोटी-छोटी चीजों को दुरुस्त नहीं किया जायेगा, तब तक उत्तर प्रदेश की हालत सुधरने वाली नहीं है। इसी के अंतर्गत यूपी में होने वाली बेहिसाब सरकारी छुट्टियों पर कैंची चलाने की बात भी सामने आयी है। बीती अम्बेडकर जयंती के अवसर पर मुख्यमंत्री ने एक कार्यक्रम में कहा कि "यहाँ बच्चों को ये तक नहीं पता कि आज छुट्टी क्यों है और ऐसा इसलिए कि उन्हें महापुरुषों के जीवन से अवगत ही नहीं कराया जाता।" ये बिलकुल सत्य है अब जब किसी भी महापुरुष के जयंती पर अवकाश रहेगा तो भला बच्चों को कैसे पता चलेगा इन महापुरुषों के बारे में? इसलिए ये बिलकुल सही बात है कि ऐसी छुट्टी की परंपरा बंद होनी चाहिए और ऐसे मौकों पर स्कूलों में एक-दो घंटे का विशेष सत्र आयोजित कर संबंधित महापुरुष के बारे में बच्चों को जानकारी दी जानी चाहिए।
अगर गौर करें तो बात सिर्फ स्कूली बच्चों के अवकाश का ही नहीं है, बल्कि सारा का सारा सरकारी कामकाज भी प्रभवित होता है, जब इन अवकाशों की वजह से सरकारी डिपार्टमेंट बंद होते हैं। चूंकि, सरकारी विभागों से ही जुड़े होते हैं प्राइवेट विभाग भी, तो जाहिर तौर पर उन पर भी अप्रत्यक्ष रूप से ही सही असर तो पड़ता ही है।
क्या हैं छुट्टियों के आंकड़े
अगर बात उत्तर प्रदेश की हो, तो यहाँ 146 दिनों का सरकारी अवकाश रहता है और अगर इसमें कर्मचारियों को मिलने वाले 15 अर्न्ड लीव और 14 कैजुअल लीव शामिल करें तो करीब 175 दिन की छुट्टी होती है। इस तरह लगभग 1 साल में 6 महीनों का अवकाश। कितना अजीब है ये सुनने में ही? जो उत्तर प्रदेश अपनी बदहाली और पिछड़ेपन के लिए जाना जाता है, वहां के सरकारी कर्मचारियों को साल में 6 महीनों की छुट्टियां मिलती हैं? ध्यान देने वाली बात ये है कि यहाँ प्रत्येक जाति को ध्यान में रखकर कुछ छुट्टियों का विशेष प्रबंधन किया गया है। अब देखिये, ब्राह्मणों के लिए परशुराम जयंती तो क्षत्रियों के लिए चंद्रशेखर जयंती, महाराणा प्रताप जयंती। इतना ही नहीं जननायक कर्पूरी ठाकुर जयंती, महर्षि कश्यप एवं महाराज गुह्य जयंती, सरदार वल्लभ भाई पटेल जयंती, ऊदा देवी शहीद दिवस जैसे अवसरों पर छुट्टी कर पिछड़े वर्ग को साधने का प्रयास तो वाल्मीकि जयंती, संत रविदास जयंती, अम्बेडकर परिनिर्वाण दिवस, डॉ. अम्बेडकर जयंती के द्वारा दलितों को खुश करने की कोशिश की गयी है।
इसी कड़ी में, चौधरी चरण सिंह जयंती और चेटीचंद के द्वारा सिंधी और वैश्य समाज में पैठ बनाने का प्रयास भी किया गया है। इतना ही नहीं मुस्लिम लोगों के लिए हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, अजमेरी गरीब नवाज का उर्स आदि अवसरों पर भी सरकारी अवकाश की घोषणा की गयी है।
वहीं भारत के दूसरे राज्यों की बात करें तो गोवा, तमिलनाडु, असम, कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों को छोड़ कर बाकि सारे राज्यों में हिन्दुओं के सभी प्रचलित त्यौहार के लिए अवकाश रहता है, तो भिन्न प्रदेशों की सरकारें भी छुट्टियों के मामले में कुछ कम नहीं हैं।
गौर करने वाली बात ये है कि जहाँ एक तरफ बेतहाशा छुट्टियों की वजह से जहाँ स्कूल अपने 220 दिनों के शैक्षणिक सत्र को पूरा नहीं कर पाते और बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है वहीं सरकारी कार्यालयों में अवकाश के चलते काम अधूरे रह जाते हैं। एक तो वैसे ही सरकारी कर्मचारी 'तेज' कार्य करने के लिए विश्व विख्यात हैं, ऊपर से यह छुट्टियां! अब चाहे उत्तर प्रदेश हो या देश का कोई भी राज्य हो सरकारी तंत्र के फिसड्डी होने का हाल लगभग एक समान है। ऐसे में इतनी भारी मात्रा में छुट्टी देने का क्या औचित्य बनता है?
सरकारी विभाग पिछड़ा फिर भी मौज
अक्सर हम बात करते हैं कि अमेरिका इत्यादि देश हम से इतने आगे क्यों हैं? तो एक रीजन ये भी है कि वहां हमारे यहाँ की तरह इतनी ज्यादा छुट्टियां नहीं होती हैं। अगर अमेरिका की बात करें तो वहां 10 से 11 सरकारी छुट्टी ही होती है। विदेशों की तो बात ही छोड़िये हमारे देश में ही प्राइवेट सेक्टर में इतनी छुट्टियां नहीं होती हैं और शायद एक यह भी बड़ी वजह है कि हर क्षेत्र में प्राइवेट सेक्टर अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। और रेलवे से लेकर बिजली विभाग तक को प्राइवेट सेक्टर को दिए जाने की मांग होती रहती है। इसके उलट सरकारी विभाग के लगातार पिछड़ने के बाद भी उन्हें छुट्टियों के रूप में सौगात दिया जाना समझ से परे है।
कब छुट्टी हो और कब नहीं हो...
ऐसा नहीं है कि समाज में छुट्टियां होनी ही नहीं चाहिए, बल्कि जिन त्योहारों में समाज और परिवार की सहभागिता हो जैसे: होली, दीवाली, दशहरा, ईद, गुरु पूर्णिमा, क्रिसमस इत्यादि तो इन अवसरों पर कार्यालयों और विद्यालयों का बंद होना समझ में आता है। लेकिन वाल्मीकि जयंती, अग्रसेन जयंती और उर्स जैसे अवसरों पर क्यों बंद हों कार्यालय? इन अवसरों को मनाने का मतलब है कि इन महापुरूषों के आदर्शों को समाज को बताया जाये और उनकी राह पर चलने के लिए प्रेरित किया जाये। ताकि जहाँ बच्चे इनसे कुछ सीख सकें तो वहीं बड़े इनके आदर्शों को फिर से याद कर सकें।
क्या होंगे फायदे?
अगर सच में योगी सरकार ने इस विषय पर पहल करते हुए बेवजह की छुट्टियों को खत्म कर दिया तो निःसंदेह ही स्कूली बच्चों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश भी विकास की तरफ एक कदम आगे बढ़ाएगा। ज्यादा दिन कार्यालय खुलने से सालों से पेंडिंग पड़े काम संपन्न हो पाएंगे तो वहीं आम लोगों को भी काफी सहूलियत होगी जब समय से उनके काम पूरे हो जाया करेंगे।
हालाँकि, किसी को भी इन छुट्टियों के ख़त्म हो जाने को लेकर ऐतराज नहीं होना चाहिए, पर राजनीति भी तो है। क्या वाकई राजनीति से पार पाकर योगी आदित्यनाथ की सरकार सुधार की दिशा में आगे बढ़ेगी? यदि सच में ऐसा होता है तो निःसंदेह यह एक सराहनीय कदम होगा।
विंध्यवासिनी सिंह
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