थोड़ा दूर भले रह गया चारमीनार, पर तेलंगाना में सत्ता के लक्ष्य के करीब पहुँची भाजपा
जो लोग हैदराबाद के चुनावों में लक्ष्य हासिल नहीं कर पाने के लिए भाजपा का मजाक उड़ा रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि भगवा पार्टी 2016 के चुनाव में सिर्फ चार सीटों पर जीत दर्ज कर सकी थी और वह चुनाव उसने तेलुगू देशम पार्टी (तेदपा) के साथ गठबंधन कर लड़ा था।
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) चुनाव के तहत भाजपा ने अब तक का शानदार प्रदर्शन किया है। हालांकि हैदराबाद में अपना मेयर बनाने का भाजपा का सपना पूरा नहीं हो सका लेकिन पार्टी ने तेलंगाना में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करा दी है। हैदराबाद निगम चुनावों में भले टीआरएस एक बार फिर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो लेकिन उसकी सीटों की जो संख्या कम हुई है वह उसके लिए खतरे की घंटी है। पहले विधानसभा चुनावों में सीटें कम होना, फिर लोकसभा चुनावों में सीटें कम होना और अब ग्रेटर हैदराबाद निगम चुनावों में टीआरएस की सीटें कम होना केसीआर के लिए बड़ी चेतावनी है। मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को यह समझ आ जाना चाहिए कि भाजपा तेजी से उभरती ताकत है और टीआरएस को सीटों का जो भी नुकसान हो रहा है वह भाजपा के लिए फायदा बनता जा रहा है। विभिन्न राज्यों में सीधी लड़ाई में कांग्रेस को चित्त करने के बाद अब भाजपा खासतौर पर दक्षिणी राज्यों में अपना आधार बढ़ाने के मिशन पर है और जिस तरह से क्षेत्रीय दलों से टक्कर ले रही है वह परिवार आधारित राजनीतिक दलों के लिए तो खुली चेतावनी ही है।
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भाजपा ने निगम चुनावों को सिर्फ स्थानीय चुनाव नहीं समझते हुए इसे पूरी गंभीरता के साथ लड़ा और जिस तरह से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व प्रचार में जुटा उससे आगे के संकेत साफ मिल गये हैं। इन चुनावों के माध्यम से भाजपा ने उस आरोप की भी हवा निकाल दी है जिसके तहत कहा जाता है कि ओवैसी के साथ उसकी सांठगांठ है ताकि विभिन्न राज्यों में मुस्लिम मतों का बिखराव हो सके। भाजपा ने ओवैसी को उनके गढ़ में चुनौती दी और काफी नुकसान पहुँचाया। जो लोग हैदराबाद के चुनावों में लक्ष्य हासिल नहीं कर पाने के लिए भाजपा का मजाक उड़ा रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि भगवा पार्टी 2016 के चुनाव में सिर्फ चार सीटों पर जीत दर्ज कर सकी थी और वह चुनाव उसने तेलुगू देशम पार्टी (तेदपा) के साथ गठबंधन कर लड़ा था। लेकिन अपने यहां एक प्रचलन है कि अपनी सीटें कम होने का राजनीतिक दल उतना दुख नहीं मनाते जितना दूसरे का लक्ष्य हासिल करने से चूकने का जश्न मनाते हैं।
यह चुनाव इस मायने में भी अहम थे कि भाजपा के शानदार प्रदर्शन के लिए अन्य दल ईवीएम को 'जिम्मेदार' नहीं बता सकते क्योंकि इस चुनाव में मतपत्रों का इस्तेमाल किया गया और पोस्टल बैलेट के अधिकांश मत हर बार की तरह भाजपा के खाते में थे। भाजपा ने जिस तरह इस चुनाव को मुख्यमंत्री के कामकाज पर जनमत का रूप दे दिया था उससे निश्चित ही मुख्यमंत्री को अब सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा। भाजपा इस चुनाव परिणाम से और हालिया विधानसभा उपचुनाव परिणाम के बाद से जोश में है और उसे आगे बढ़ने से रोक पाना टीआरएस के लिए नामुमकिन नहीं तो कठिन चुनौती तो जरूर बन गया है। इन चुनाव परिणामों ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि एक समय राज्य में राज करने वाली कांग्रेस अब अपना आधार पूरी तरह खो चुकी है और मुख्य विपक्षी की भूमिका में भाजपा ही आ गयी है। पहले कांग्रेस से सत्तापक्ष की भूमिका छीनने के बाद भाजपा ने धीरे-धीरे देश की सबसे पुरानी पार्टी को मुख्य विपक्षी दल की भूमिका से भी दूर कर दिया है।
अब बात जरा अन्य राज्यों में हुए चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन की कर ली जाये। महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्यों के लिए हुए चुनावों में भाजपा को निश्चित रूप से झटका लगा है और पार्टी ने अपनी कमियों को स्वीकार कर आगे बढ़ने की बात कही है। यहाँ शिवसेना की खुशी इसलिए समझ नहीं आ रही क्योंकि वह भाजपा को मात्र एक सीट मिलने पर खुशी जता रही है लेकिन खुद एक भी सीट नहीं जीत पाई इसका गम उसे नहीं दिख रहा है। महाराष्ट्र में भाजपा को लगे झटके को लेकर पार्टी नेता देवेंद्र फडणवीस ने माना है कि उनकी पार्टी महा विकास अघाडी (एमवीए) के सहयोगियों की संयुक्त ताकत का आकलन करने में असफल रही।
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वहीं अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो विधान परिषद की शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों के परिणाम मिश्रित रहे। हालाँकि सत्तारुढ़ भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन कर सबसे ज्यादा सीटें जीती हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में स्थानीय खंड शिक्षक क्षेत्र से समाजवादी पार्टी की जीत तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में गोरखपुर फैजाबाद खंड शिक्षक क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी की जीत से भाजपा को सचेत हो जाना चाहिए। बहरहाल, भाजपा ने इस समय जम्मू-कश्मीर में हो रहे डीडीसी चुनावों में भी पूरी ताकत झोंक रखी है देखना होगा कि वहां के मतदाता क्या फैसला करते हैं। यह चुनाव इसलिए ज्यादा महत्व रखता है क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाये जाने और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का स्वरूप मिलने के बाद वहाँ पहली बार कोई चुनाव हो रहा है।
-नीरज कुमार दुबे
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