कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम हकीकत कम ज्यादा चुनावी
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस का वोट बैंक की खातिर मुस्लिम प्रेम नया है। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी राजीव गांधी की ही सरकार थी जिसने शाहबानो केस में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाबजूद उस पर कानून नहीं बनाया। इस पर मौजूदा भाजपा की केंद्र सरकार ने कानून बनाया। तीन तलाक के मुद्दे पर भी कांग्रेस का यही आलम रहा।
केंद्र और ज्यादातर राज्यों से चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस ने इतिहास से सबक नहीं लेने की ठान ली है। यही वजह है कि कांग्रेस का अभी तक अल्पसंख्यक मोह खत्म नहीं हुआ है। अल्पसंख्यकों के गैरकानूनी कामों में भी कांग्रेस उनका बचाव करती नजर आती रही है। इंडिया गठबंधन में कांग्रेस ही अकेली नहीं है, बल्कि दूसरे राजनीतिक दल भी वोट बैंक की राजनीतिक के कारण मुस्लिमों के अपराधों को माफ करने के पक्ष में रहे हैं। बेशक अपराध आतंकवाद से जुड़े हुए ही क्यों ना हो। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने दंगा करने, थाने पर हमला करने, आगजनी और तोडफ़ोड़ जैसे गंभीर आरोपों में शामिल मुस्लिम समुदाय के आरोपियों के खिलाफ मामला वापस लेकर कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रेम को उजागर किया है। लगातार हारने के बाद भी कांग्रेस को डूबती नैया का सहारा मुसलमान वोट बैंक ही नजर आता है। यह बात दीगर है कि इस वोट बैंक के दावेदार कई राजनीतिक दल हैं। कांग्रेस की इन्हीं हरकतों की वजह से भाजपा देश में हिन्दू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब रही है।
कर्नाटक सरकार ने कैबिनेट मीटिंग के बाद 43 केसों को रद्द करने का फैसला लिया। इसमें एक मामला हुबली पुलिस स्टेशन में तोडफ़ोड़ से जुड़ा हुआ है। 16 अप्रैल, 2022 को हुबली में सोशल मीडिया पर विवादित पोस्ट लिखने वाले युवक को पुलिस गिरफ्तार कर स्टेशन लेकर आई, कुछ देर में वहां मुस्लिम समाज की भीड़ जमा हो गई और आरोपी को भीड़ को सौंपने की मांग को लेकर हंगामा हुआ, जिसके बाद हिंसा हुई थी। पुलिस स्टेशन और वाहनों को नुकसान पहुंचाया था, साथ ही आसपास की दुकानों में तोडफ़ोड़ की गई। इस हिंसा में 4 पुलिसकर्मी घायल भी हुए थे। एआइएमआइएम के नेता आरिफ और 138 अन्य के खिलाफ हत्या के प्रयास, दंगा और अन्य गंभीर आरोप लगाए गए थे। मुस्लिम वोट बैंक के लिए कांग्रेस ने पहली बार ऐसा नहीं किया। जब भी देश के संविधान और कानून को समानता से लागू करने की बात होती है, कांग्रेस हमेशा से मुसलमानों का दूसरे चश्में से देखती रही है। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने का कांग्रेस ने जमकर विरोध किया। यह जानते हुए भी कि विशेष राज्य और कानून की आड़ में इस केंद्रशासित प्रदेश में आतंकी वारदातें कर रहे है। इन पाक परस्त आतंकियों को बचाने के लिए भाड़े के पत्थरबाज सुरक्षा कवच का काम कर रहे हैं। इस विशेष प्रावधान के हटने के बाद पत्थरबाजी की घटनाएं बंद हो गई। साथ ही सुरक्षा बल और पुलिस काफी हद तक आतंकियों की नकेल कसने में कामयाब रहे। यह मुद्दा देश की एकता-अखंडता से जुड़ा होने के बावजूद कांग्रेस ने इसे हटाने पर कायम नेशनल कांफे्रंस के साथ महज मुस्लिम वोट बैंक की खातिर चुनावी गठबंधन किया।
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इसी तरह अवैध रूप से रह रहे रोहिग्यां शरणार्थियों के मुद्दे पर कांग्रेस ने सहानुभूति का रुख रखा। भारत में कुल 40 हज़ार रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं। इनमें से ज्यादातर के पास संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त का रिफ्यूजी कार्ड तक नहीं है। अक्टूबर 2018 में भारत सरकार ने सात रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजा था। इन्हें साल 2012 में गैरकानूनी तरीक़े से सीमा पार करके भारत आने के आरोप में फ़ॉरनर्स एक्ट क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया था। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने अपनी सीधी राय कभी नहीं बनाई। कांग्रेस ना अल्पसंख्यकों को नाराज़ करना चाहती है और ना ही बहुसंख्यक समाज के सामने विलेन बनना चाहती है। इसलिए इस मुद्दे पर वह सरकार को कटघरे में खड़ा कर पीछा छुड़ाने का प्रयास किया। कांग्रेस का कहना था कि आखिर यह कैसे हो सकता है कि, एक तरफ आप मानवीयता के आधार पर रोहिंग्या मुस्लिमों को मदद भेजें और दूसरी तरफ उनको देशविरोधी गतिविधियों में शामिल बताएं, सरकार किसी एक नीति पर आगे नहीं बढ़ रही है।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस का वोट बैंक की खातिर मुस्लिम प्रेम नया है। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी राजीव गांधी की ही सरकार थी जिसने शाहबानो केस में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाबजूद उस पर कानून नहीं बनाया। इस पर मौजूदा भाजपा की केंद्र सरकार ने कानून बनाया। तीन तलाक के मुद्दे पर भी कांग्रेस का यही आलम रहा। कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता में रहते हुए इस मुद्दे पर कानून नहीं बनाया। शाहबानो ने अदालत से न्याय की मांग की थी कि तीन तलाक के बाद तलाकशुदा महिला की देखरेख की जिम्मेदारी उसके पति की होती है। पांच जजो की संविधान पीठ ने 23 अप्रैल 1985 को मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड के आदेश के खिलाफ जाते हुए शाहबानो के पति को आदेश दिया कि वो अपने बच्चों को गुजारा भत्ता दे। मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध के आगे राजीव गांधी सरकार ने घुटने टेक दिए थे। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। केंद्र की भाजपा सरकार ने सरकार ने तीन तलाक को प्रतिबंधित करते हुए संसद में वर्ष 2019 में नया कानून बना दिया। इस विधेयक में मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से संरक्षण देने के साथ ऐसे मामलों में दंड का भी प्रावधान किया गया है। देश की करोड़ों मुस्लिम महिलाओं के हितों से जुड़े इस कानून का कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के घटक दलों ने जमकर विरोध किया। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में तीन तलाक को वापस करने का वायदा किया। इसी दोहरी नीति के कारण भाजपा कांग्रेस पर हमलावर रही है। कांग्रेस की मुस्लिम परस्त नीतियों के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाए। राजस्थान के बांसवाड़ा की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के एक बयान का हवाला देते हुए कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यक मुसलमानों का बताया था।
आश्चर्य की बात यह है कि कांग्रेस एक तरफ मुस्लिम की हितेषी बनती हैं, किन्तु हकीकत में मुसलमानों के विकास के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान काम किया है। आजादी कांग्रेस ने देश में 50 साल से ज्यादा शासन किया है। इस अवधि में ज्यादातर राज्यों में भी कांग्रेस की सरकारें रही हैं। इसके बावजूद देश में साक्षरता की दर, मुस्लिम महिला सशक्तिकरण, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं में कोई खास इजाफा नहीं हुआ। कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम हकीकत कम चुनावी ज्यादा साबित हुआ है।
- योगेन्द्र योगी
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