21 साल बाद उधम सिंह ने लिया जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला

udham singh
Prabhasakshi
रेनू तिवारी । Jul 30 2022 4:09PM

पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में 1899 में जन्म लेने वाले उधम सिंह का नाम शेर सिंह रखा गया था। उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे। उन्होंने अपने माता-पिता दोनों को बेहद ही छोटी कम उम्र में खो दिया।

भारत की आजादी के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। कुछ क्रांतिकारियों की कुर्बानी को दुनिया जानती है और कुछ की कहानी इतिहास के पन्नों में दबी रह गयी। इन्हीं में से एक थे शहीद उधम सिंह। ये वह क्रांतिकारी थे जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड को होते हुए अपनी आंखों से देखा था। यह इतना डरावना और विभत्स था कि इसकी छाप उद्धम सिंह के जहन से कभी निकल ही नहीं सकी। इतिहास के पन्नों में मिलता है कि जिस दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था उस दिन शहीद उधम सिंह भी वही थे। जब अंग्रेजी सैनिकों ने एक साथ बैसाखी के दिन जमा हुए लोगों को गोलियों से भून दिया था, तब उद्धम सिंह ने घायलों को कंधे पर लादकर अस्पताल पहुंचाने में मदद की थी। जनरल डायर द्वारा किए गए नरसंहार को उन्होंने अपनी आंखों से देखा था।

उधम सिंह ग़दर पार्टी और HSRA से संबंधित एक भारतीय क्रांतिकारी थे। कहा जाता है कि उन्होंने साल 1919 जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ'डायर को लंदन में सबके सामने गोली मार दी थी। इतिहासकारों के अनुसार जलियांवाला बाग हत्याकांड के पीछे लिए माइकल ओ' ड्वायर जिम्मेदार था। उसने ही इस नरसंहार को करने का ऑर्डर दिया था। 13 मार्च 1940 को ऊधम सिंह कैंथस्चन हॉल में एक मीटिंग में पहुंचे। मीटिंग खत्म होने को थी तभी ऊधम सिंह ने स्टेज की तरफ गोलियां चलाई। वो जलियांवाला बाग कांड के वक्त पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ' ड्वायर और सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडियन अफेयर्स लॉरेंस को मारना चाहते थे। इस कार्य को अंजान देने के बाद सिंह पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया और जुलाई 1940 में उन्हें फांसी दे दी गई। हिरासत में रहते हुए, उन्होंने राम मोहम्मद सिंह आजाद नाम का इस्तेमाल किया, जो भारत में तीन प्रमुख धर्मों और उनकी उपनिवेश विरोधी भावना का प्रतिनिधित्व करता है।

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पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में 1899 में जन्म लेने वाले उधम सिंह का नाम शेर सिंह रखा गया था। उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे। उन्होंने अपने माता-पिता दोनों को बेहद ही छोटी कम उम्र में खो दिया। उधम सिंह ने अपने भाई के साथ अपना अधिकांश बचपन अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में बिताया। अनाथालय में ही उन्होंने और उनके बड़े भाई ने सिख धर्म में अपना लिया। अनाथालय में लोगों ने दोनों भाइयों को नया नाम दिया। शेर सिंह बन गए उधम सिंह और उनके भाई मुख्ता सिंह बन गए साधु सिंह। अपने बचपन और किशोरावस्था के दौरान ही वो सिख धर्म की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित थे। उधम सिंह के साहस के किस्से उनके गांव में सुनाए जाते हैं। एक प्रसिद्ध घटना उसके बारे में है कि वह एक तेंदुए से उनके भिड़ंत की है, जब बकरियों पर हमला करने के लिए तेंदुआ उनके घर में घुस गया था। 

हालांकि सिंह की शिक्षा के बारे में स्पष्टता की कमी है। इतिहासकार नवतेज सिंह ने उधम सिंह की जीवनी में कहा है कि एक ब्रिटिश रिकॉर्ड में कहा गया है कि उन्होंने अमृतसर के खालसा कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी। हालाँकि, उधम सिंह ने खुद कहा है कि उन्होंने कोई शिक्षा प्राप्त नहीं की है। नवतेज सिंह के अनुसार कुछ रिकॉर्ड उन्हें एक इलेक्ट्रीशियन बताते हैं वहीं कुछ अन्य ने उन्हें एक इंजीनियर होने के रूप में प्रलेखित किया है। लेकिन यह निश्चित है कि वह उर्दू और अंग्रेजी में धाराप्रवाह लिख सकते थे। गुरुमुखी में भी काफी अच्छी पकड़ थी। इसके साथ ही धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने में भी सक्षम थे।

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उधम सिंह भगत सिंह की गतिविधियों से गहराई से प्रभावित थे। वे 1924 में ग़दर पार्टी में शामिल हो गए। अमेरिका और कनाडा में रह रहे भारतीयों ने 1913 में इस पार्टी को भारत में क्रांति भड़काने के लिए बनाया था। क्रांति के लिए पैसा जुटाने के मकसद से उधम सिंह ने दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा भी की। भगत सिंह के कहने के बाद वे 1927 में भारत लौट आए। अपने साथ वे 25 साथी, कई रिवॉल्वर और गोला-बारूद भी लाए थे। जल्द ही अवैध हथियार और गदर पार्टी के प्रतिबंधित अखबार गदर की गूंज रखने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चला और उन्हें पांच साल जेल की सजा हुई। जेल से छूटने के बाद भी पंजाब पुलिस उधम सिंह की कड़ी निगरानी कर रही थी। इसी दौरान वे कश्मीर गए और गायब हो गए। बाद में पता चला कि वे जर्मनी पहुंच चुके हैं। बाद में उधम सिंह लंदन जा पहुंचे।

- रेनू तिवारी

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