दिल को झकझोर कर रख देने वाले शायर थे साहिर लुधियानवी, जिंदगी में कई बार मुहब्बत की
1943 में साहिर लुधियानवी लाहौर आ गए और उसी साल उन्होंने अपना पहला कविता संग्रह तलखियां शाया कराया, जो बेहद लोकप्रिय हुआ और उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। इसके बाद 1945 में वह प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार लाहौर के संपादक बन गए।
साहिर लुधियानवी, जिन्हें उनकी शायरी के लिए, विशेषकर युवाओं के दिलों को उभारने और फिल्मों के लिए साहित्यिक गीत लिखने के लिए, "अंफवान-ए-शबाब का शायर" के रूप में जाना जाता है। साहिर लुधियानवी लोकप्रिय कवियों में से एक हैं और प्रगतिशील का गौरव हैं। जिस तरह से साहिर ने अपने भावों को काव्यात्मक रूप दिया है, इस तरह से उनके किसी भी समकालीन कवि ने नहीं दिया था। साहिर का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था, लेकिन उन्होंने इसे बदल कर साहिर लुधियानवी रख लिया था। उनका जन्म 8 मार्च, 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में हुआ था। उनके पिता बेहद अमीर थे। घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी, लेकिन माता-पिता के अलगाव के बाद वह अपनी मां के साथ रहे और इस दौरान उन्हें ग़ुरबत में दिन गुज़ारने पड़े। उन्होंने लुधियाना के ख़ालसा हाईस्कूल से दसवीं की। गवर्नमेंट कॉलेज से 1939 में उन्हें निकाल दिया गया था। बाद में इसी कॉलेज में वह मुख्य अतिथि बनकर आए थे। यहां से संबंधित उनकी नज़्म बहुत मशहूर हुई-
इस सर ज़मीन पे आज हम इक बार ही सही
दुनिया हमारे नाम से बेज़ार ही सही
लेकिन हम इन फ़िज़ाओं के पाले हुए तो हैं
गर यहां नहीं तो यहां से निकाले हुए तो हैं
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1943 में वह लाहौर आ गए और उसी साल उन्होंने अपना पहला कविता संग्रह तलखियां शाया कराया, जो बेहद लोकप्रिय हुआ और उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। इसके बाद 1945 में वह प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार लाहौर के संपादक बन गए। बाद में वह द्वैमासिक पत्रिका सवेरा के भी संपादक बने। इस पत्रिका में उनकी एक नज़्म को पाकिस्तान सरकार ने अपने ख़िलाफ़ बग़ावत मानते हुए उनके विरुद्ध वारंट जारी कर दिया। 1949 में उन्होंने लाहौर छोड़ दिया और दिल्ली आ गए। यहां उनका दिल नहीं लगा और वह मुंबई चले आए। वहां वह उर्दू पत्रिका शाहराह और प्रीतलड़ी के संपादक बने। इसी साल उन्होंने फ़िल्म आज़ादी की राह के लिए गीत लिखे। संगीतकार सचिन देव बर्मन की फ़िल्म नौजवान के गीत ठंडी हवाएं लहरा के आएं…ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई। इसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने सचिन देव बर्मन के अलावा, एन. दत्ता, शंकर जयकिशन और ख़य्याम जैसे संगीतकारों के साथ काम किया। साहिर एक रूमानी शायर थे। उन्होंने ज़िंदगी में कई बार मुहब्बत की, लेकिन उनका इश्क़ कभी परवान नहीं चढ़ पाया। वह अविवाहित रहे। कहा जाता है कि एक गायिका ने फ़िल्मों में काम पाने के लिए साहिर से नज़दीकियां बढ़ाईं और बाद में उनसे किनारा कर लिया।
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अमृता प्रीतम और सुधा मल्होत्रा से साहिर के प्रेम संबंध कहे जाते हैं, लेकिन उन्होंने कभी शादी नहीं की। अमृता के साथ उनका रिश्ता अजीब और प्रगाढ़ था, हालाँकि अमृता शादीशुदा थी, साहिर जब भी उनके पास जाते और सिगरेट पीकर निकलते, तो वह ऐशट्रे से उनकी बुझी हुई सिगरेट के टूटे हुए टुकड़े उठाती और उन्हें फिर से जलाकर अपने होठों पर रख लेती। सुधा के मामले में उन्होंने साहिर को किसी और के लिए छोड़ दिया, इसके बावजूद साहिर ने फिल्म इंडस्ट्री में सुधा को प्रमोट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। और यह उनके लिए ही था कि साहिर ने बेहद लोकप्रिय नज़्म 'चलो इक बार फिर हम अजनबी बन जाएं' लिखी।
मशहूर शायर एवं गीतकार साहिर लुधियानवी के ढ़ेर सारे बेशकीमती हस्तलिखित पत्र, डायरियां, नज्में और उनकी श्याम-श्वेत तस्वीरें मुम्बई में कबाड़ की एक दुकान से मिले। एक गैर लाभकारी संगठन ने इन चीजों का संरक्षण करने के लिए इन्हें महज 3,000 रूपये में खरीदा है।
- रेनू तिवारी
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