Deendayal Upadhyaya Death Anniversary: रहस्यमय तरीके से हुई थी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत, नहीं उठा इस राज से पर्दा

Pandit Deendayal Upadhyay
Prabhasakshi

आज ही के दिन यानी की 11 फरवरी को पंडित दीनदयाल उपाध्याय का निधन हो गया था। कई लोग पंडित दीनदयाल को भाजपा का गांधी भी कहा जाता है। वह दार्शनिक और विचारक के रूप में भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापकों में से एक थे।

भारत की आजादी के बाद के इतिहास में सत्ताधारी दल के नेताओं के योगदान का जिक्र किया जाता है। लेकिन कई विरोधी दल के नेताओं ने भी खासा प्रभाव छोड़ा है। जब भी भारतीय जनसंघ या भाजपा पार्टी सत्ता में रही, तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जिक्र होता है। आज ही के दिन यानी की 11 फरवरी को पंडित दीनदयाल उपाध्याय का निधन हो गया था। कई लोग पंडित दीनदयाल को भाजपा का गांधी भी कहा जाता है। वह दार्शनिक और विचारक के रूप में भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापकों में से एक थे। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर पंडित दीयदयाल उपाध्याय के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में

जन्म और शिक्षा

उत्तर प्रदेश के मथुरा में 25 सितंबर 1916 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म हुआ था। इनकी परवरिश सीकर में मामा-मामी द्वारा की गई। दीनदयाल उपाध्याय ने बीए और आगरा में अंग्रेजी साहित्य में एमए की पढ़ाई की। साल 1937 में वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से और साल 1952 में जनसंघ के महामंत्री बन गए।

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मार्गदर्शन में पार्टी का संगठन

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जनसंघ से जुड़ने के बाद मार्गदर्शन में पार्टी का संगठन चलता रहा। अपनी मृत्यु से 43 दिन पहले वह जनसंघ के अध्यक्ष बने थे। फिर जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। इसके बाद पंडित जी की विचारधारा का असर राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी पर आज भी दिखाई देता है। कहा तो यहां तक जाता है कि जिस जनसंघ को सत्ता में आने में दशक बीत गए। यदि पंडित जी जिंदा होते तो यह काम पहले हो जाता।

संदिग्ध हालात में मौत

वाराणसी के करीब मुगलसराय जंक्शन में 11 फरवरी 1968 को पंडित दीन दयाल उपाध्याय का शव लावारिस स्थिति में पाया गया था। उनकी संदिग्ध हालात में हुई मौत का रहस्य कई उजागर नहीं हो पाया। वहीं जिन लोगों ने उनकी हत्या की थी, उनका इरादा चोरी का बताया गया था। हांलाकि बाद में जनसंघ के एक बड़े नेता ने उनकी मौत को राजनैतिक हत्या भी बताया था। कहा जाता है कि यदि पंडित दीनदयाल उपाध्याय कुछ साल और जी लेते, तो शायद आज देश की तस्वीर कुछ अलग होती। 

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