Nathuram Godse Death Anniversary: आज ही के दिन नाथूराम गोडसे को दी गई थी फांसी, जानिए क्यों गुपचुप तरीके से किया गया अंतिम संस्कार
आज ही के दिन यानी की 15 नवंबर को महात्मां गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा दी गई थी। बता दें कि 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
आज ही के दिन यानी की 15 नवंबर को महात्मां गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा दी गई थी। बता दें कि 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिसके बाद उनको मौके पर ही किसी ने पकड़ लिया था और पुलिस के हवाले कर दिया गया। गांधी जी की हत्या में नाथूराम के अलावा उनके कई साथी भी शामिल थे। हत्या का केस चलने के दौरान कुछ लोग बरी को गए। वहीं जो हत्या में संलिप्त पाए गए उन्हें फांसी की सजा दी गई। गांधी जी की हत्या के आरोप में नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में फांसी पर लटका दिया गया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर नाथूराम गोडसे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
पुणे, महाराष्ट्र के मध्यमवर्गीय चितपावन ब्राह्मण परिवार में 19 मई, 1910 को नाथूराम गोडसे का जन्म हुआ थे। नाथूराम का असली नाम 'नथूराम' था। नाथूराम की परवरिश लड़कियों की तरह हुई थी। जिसका कारण यह था कि परिवार में नाथूराम से पहले जितने भी लड़के पैदा हुए थे, उन सबकी मौत हो जाती थी। इसके बाद जब नाथूराम गोडसे पैदा हुए तो परिवार ने उनकी परवरिश लड़कियों की तरह की गई। इसके अलाना उनको लड़कियों की तरह नथ पहनाई गई और लड़कियों के कपड़े भी पहनाए जाते थे। इसी नथ के कारण उनका नाम नाथूराम पड़ गया।
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आपको बता दें कि नाथूराम गोडसे की शिक्षा मराठी माध्यम से हुई। हांलाकि वह मैट्रिक की परीक्षा भी नहीं पास कर सके थे। जिसके कारण नौकरी के लिए नाथूराम को काफी संघर्ष करना पड़ा। इसी के चलते वह रत्नागिरि चले आए, जहां पर उनकी मुलाकात वीर सावरकर से हुई। यहीं से नाथूराम ने राजनीति की ओर कदम बढ़ाने का फैसला किया।
राजनीतिक करियर
नाथूराम गोडसे जब हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे थे, तो समाजिक कार्यो से जुड़ने की इच्छा हुई, तब वह अपनी पढ़ाई छोड़कर हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे समूह से एक कार्यकर्ता के रूप में जुड़ गए। इस दौरान गोडसे मुस्लिम लीग वाली अलगाववादी राजनीति के विरोध में थे। हिन्दू महासभा समूह से जुड़ने के बाद गोडसे ने इसके लिए एक समाचार पत्र का प्रकाशन किया था। जो मराठी भाषा में था। इस समाचार पत्र का नाम 'अग्रणी' था।
जब एक बार गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। जो कि एक अहिंसक और प्रतिरोधी आंदोलन था। पहले इस आंदोलन में हिंदू महासभा ने अपना समर्थन दिया। लेकिन बाद में इस आंदोलन से खुद को अलग कर लिया। फिर हिंदू महासभा महात्मा गांधी के विरोध में हो गया। हिंदू महासभा का कहना था कि महात्मा गांधी हिन्दुओं और अल्पसंख्यक समूहों में भेदभाव कर रहे हैं। उनका आरोप था कि अल्पसंख्यक समूह के लोगों को खुश करने के चक्कर में गांधी जी हिंदूओं के हित को नजरअंदाज कर रहे हैं।
गांधीजी की हत्या
इसके अलावा भारत-पाकिस्तान विभाजन के लिए भी महात्मा गांधी को दोषी ठहराया गया था। भारत पाकिस्तान के विभाजन में हजारों की संख्या में हिंदू व मुसलमानों की मौत हो गई थी। जिसके कारण नाथूराम गोडसे और उनके साथियों में महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रच दी। एक शाम जब रोज की तरह महात्मा गांधी शाम को प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए जा रहे थे। तभी नाथूराम गोडसे ने मौके पर एंट्री की और गांधी जी के सीने में 3 गोलियां मार दी।
गांधी जी की हत्या करने के बाद नाथूराम गोडसे भागे नहीं बल्कि अपने स्थान पर खड़े रहे। इस अपराध में गोडसे और नारायण आप्टे के अलावा 6 लोग शामिल थे। गोली लगने के बाद गांधी जी को फौरन उनके कमरे में ले जाया गया, लेकिन तब तक महात्मा गांधी की मौत हो चुकी थी।
नाथूराम गोडसे को हुई फांसी की सजा
महात्मा गांधी की हत्या के आरोप में नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गई। लेकिन उनके शव को परिवार को नहीं दिया गया। बल्कि अंबाला जेल के अंदर ही अंदर एक गाड़ी में उनके शव को घाघर नदी के पास ले जाय़ा गया। सरकार ने गुपचुप तरीके से नाथूराम गोडसे का अंतिम संस्कार कर दिया था। नाथूराम गोडसे हमेशा अखंड भारत का सपना देखते थे। उनकी आखिरी इच्छा थी कि उनकी अस्थियों को तब तक विसर्जित न किया जाए, जब तक भारत-पाकिस्तान एक ना हो जाएं। बता दें कि गोडसे की इच्छा का सम्मान करते हुए उनके परिवार ने अभी तक गोडसे की अस्थियों को चांदी के एक कलश में सुरक्षित रखा है।
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