भारत की स्वतंत्रता में मौलाना अबुल कलाम आजाद ने निभाई थी अहम भूमिका, जानें कुछ इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स
स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देते थे। इसके अलावा वह गांधीजी के अनुयायी थे। उनके लिए स्वतंत्र राष्ट्र से भी ज्यादा महत्वपूर्ण राष्ट्र की एकता थी।
मौलाना अबुल कलाम आजाद स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। वह प्रमुख राजनीतिक नेता तथा मुस्लिम विद्वान थे। उनका असली नाम अबुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन अहमद था। लेकिन आगे चलकर लोग उन्हें मौलाना आजाद के नाम से बुलाते थे। अबुल कलाम ने हिन्दू मुस्लिम एकता का समर्थन किया। वह एक दूरदर्शी नेता होने के अलावा विद्वान, प्रखर पत्रकार और लेखक भी थे। आज ही के दिन यानि की 22 फरवरी को मौलाना अबुल कलाम का निधन हुआ था। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको मौलाना अबुल कलाम के बारे में कुछ खास जानकारी देने जा रहे हैं।
मौलाना आजाद प्रारंभिक जीवन
मौलाना आजाद का जन्म मक्का, सऊदी अरब में 11 नवंबर 1888 को हुआ था। इनके पिता मौलाना सैयद मोहम्मद खैरुद्दीन बिन अहमद अलहुसैनी एक लेखक थे। उन्होंने 12 किताबें लिखी थीं। पिता मौलाना सैयद के किताबें लिखने के कारण उनके छात्रों की संख्या ज्यादा थी। बताया जाता है कि वह इमाम हुसैन के वंश से थे। वहीं मौलाना आजाद की मां का नाम खेल आलिया बिंते मोहम्मद थी। साल 1890 में मौलाना आजाद का परिवार मक्का से कलकत्ता आ गया। मौलाना आजाद बचपन से ही काफी कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्हें हिन्दी, फारसी, बंगाली, अरबी, उर्दू और अग्रेजी भाषा में महारथ हासिल थी। वहीं काफी कम उम्र में उनकी शादी खदीजा बेगम से हो गई।
शिक्षा
मौलाना आजाद अपने पढ़ाई के दिनों से काफी प्रतिभावान और मजबूत इरादे वाले छात्रों में आते थे। स्टूडेंट लाइफ में ही उन्होंने अपना पुस्तकालय चलाना शुरू कर दिया। बता दें कि उन्होंने काहिरा के अल अजहर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की थी। इसके अलावा इतिहास और समकालीन राजनीतिक और पश्चिमी दर्शनशास्त्र का भी अध्ययन किया था। वह बचपन से ही चीजों के बारे में जानने-समझने के लिए काफी ज्यादा उत्सुक रहते थे। उन्होंने अफगानिस्तान, मिस्र, इराक, सीरिया और तुर्की जैसे देशों का सफर किया। इसके अलावा उन्होंने एक डिबेटिंग सोसायटी खोली। जिसमें वह अपने से दोगुनी उम्र वाले छात्रों को पढ़ाया करते थे।
इसे भी पढ़ें: Dadasaheb Phalke Death Anniversary: जानिए दादा साहेब फाल्के कैसे बनें भारतीय सिनेमा के पितामह
पत्रकारिता का सफर
मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कोलकाता में लिसान-उल-सिद नामक पत्रिका की शुरूआत की। बता दें कि 13 से 18 साल की उम्र में उन्होंने बहुत सी पत्रिकाओं का संपादन भी किया और कई पुस्तकों की रचना की। उनके द्वारा लिखी गई किताबों में इंडिया विन्स फ्रीडम और गुबार-ए-खातिर प्रमुख रुप से शामिल हैं। वहीं साल 1912 में उन्होंने साप्ताहिक पत्रिका अल हिलाल निकालना शुरू किया। इस पत्रिका के माध्यम से वह सांप्रदायिक सौहार्द और हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देते थे। बाद में ब्रिटिश शासन की आलोचना के कारण इस पत्रिका को बैन कर दिया गया।
विशेष कार्य
आपको बता दें कि मौलाना अबुल कलाम आजाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में 1947 से 1958 तक शिक्षा मंत्री रहे। उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की। बता दें कि वह 35 साल की उम्र में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने थे। उन्होंने शिक्षामंत्री के तौर पर शिक्षा के क्षेत्र में कई अतुलनीय कार्य किए। शिक्षामंत्री बनने पर मौलाना आजाद ने निशुल्क शिक्षा और उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना का कार्य किया। शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों के सम्मान में मौलाना आजाद के जन्म दिवस 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित किया गया।
निधन
बता दें कि मौलाना आजाद गांधीजी के अनुयायी थे। उन्होंने अहिंसा का साथ देते हुए गांधीजी के साथ सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ के हिस्सा लिया था। 22 फ़रवरी 1958 को स्ट्रोक के चलते अचानक से मौलाना आजाद की दिल्ली में निधन हो गया। उनके निधन के बाद उन्हें 1992 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही कई शिक्षा संस्थानों और संगठनों का नाम उनके नाम पर रखा गया। बता दें कि वह नए और पुराने युग की अच्छाइयों का बेजोड़ संगम थे।
अन्य न्यूज़