Dadasaheb Phalke Death Anniversary: जानिए दादा साहेब फाल्के कैसे बनें भारतीय सिनेमा के पितामह

 Dadasaheb Phalke
Prabhasakshi

इंडियन सिनेमा को हर साल सबसे ज्यादा फिल्में बनाने के लिए जाना जाता है। वहीं हर दूसरा युवा मुंबई की मायानगरी में जाने का सपना देखता है। लेकिन इसकी शुरूआत करने में दादा साहब ने काफी मुश्किलों का सामना किया। आज हम आपको इस आर्टिकल के जरिए दादा साहेब फाल्के के कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।

देश-दुनिया के इतिहास में 16 फरवरी के दिन कई महत्वपूर्ण घटनाएं दर्ज हैं। 16 फरवरी 1944 में इसी दिन हिंदी सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के का निधन हुआ था। बता दें कि उन्होंने ही सिनेमा जगत के सुंदर अनुभव से लोगों को परिचित कराया था। दादासाहेब फाल्के को दुनिया में सबसे बड़ा मनोरंजन उद्योग विकसित करने का श्रेय दिया जाता है। दादा साहेब फाल्के ने ही देश की पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई थी। जिसके बाद से फीचर फिल्मों का चलन लगातार बढ़ता चला गया। उनके सम्मान में फिल्म इंडस्ट्री में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड को शुरू किया गया। यह सिनेमा जगत का सर्वोच्च अवॉर्ड है। इस अवॉर्ड के लिए किसे सम्मानित किया जाएगा, इसका फैसला समिति करती है। जिसमें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की प्रतिष्ठित हस्तियां शामिल होती हैं। फाल्के ने सिनेमा की दुनिया में उस दौरान कदम रखा जब अपने देश में सिनेमा का कोई अस्तित्व नहीं था।

भारतीय सिनेमा के पितामह यानि की दादासाहेब फाल्के का असली नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। 30 अप्रैल, 1870 को महाराष्ट्र के नासिक में एक मराठी परिवार में उनका जन्म हुआ था। फाल्के के पिता संस्कृत कि विद्वान थे। वहीं दादा साहेब ने अपनी शिक्षा बड़ौदा के कला भवन से पूरी की। यहां से फाल्के ने मूर्तिकला, इंजीनियरिंग, चित्रकला, पेंटिंग और फोटॉग्राफी की शिक्षा ली। साल 1910 में मुंबई के अमरीका-इंडिया पिक्चर पैलेस में ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ दिखाई गई। इस दौरान थियेटर में फिल्म देख रहे दादा साहेब को फिल्म इतनी पसंद आई कि वह थियेटर में तेज-तेज से तालियां पीटने लगे। तभी से उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वह भी भारतीय धार्मिक और नाटकीय चरित्रों को रुपहले पर्दे पर जीवंत करेंगे।

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सिनेमा की चाहत ने छीनी आखों की रोशनी

जहां एक ओर दादा साहेब को अपना लक्ष्य बिल्कुल साफ नजर आ रहा था तो वहीं दूसरी ओर उन्हें फिल्म बनाने के लिए इंग्लैंड से फिल्म बनाने वाले कुछ उपकरण लाने थे। आप फिल्मों में उनकी शिद्दत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इस यात्रा में उन्होंने अपनी बीमा की पूरी राशि लगा दी थी। इंग्लैंड पहुंचते ही फाल्के साहेब ने सबसे पहले बाइस्कोप फिल्म पत्रिका की सदस्यता हासिल की। इसके बाद वह तीन महीने की यात्रा के बाद भारत वापस लौटे। इसके बाद फाल्के साहेब ने मुंबई में मौजूद सभी थियेटरों की सारी पिक्चरें देख डालीं। हर रोज शाम को वह 4 से 5 घंटे सिनेमा देखकर उनकी बारीकियों को समझते थे। जिसका उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ा और उनके आखों की रोशनी चली गई।

दादा साहेब ने बनाई थी पहली फीचर फिल्म

इसके बाद फाल्के साहेब ने पहली फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाई। इस फिल्म का न सिर्फ दादा साहेब ने निर्माण किया, बल्कि फिल्म के निर्देशक, कॉस्ट्यूम डिजाइन, लाइटमैन और कैमरा डिपार्टमेंट भी उन्होंने ही संभाला। इस फिल्म के लेखक भी वही थे। बता दें कि उनकी इस फिल्म को कोरोनेशन सिनेमा बॉम्बे में 3 मई 1913 को रिलीज किया गया था। दादा साहेब फाल्के ने राजा हरिश्चंद्र की सफलता के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस फिल्म की सफलता के बाद उन्होंने एक बिजनेसमैन के साथ मिलकर हिंदुस्तान फिल्म्स कंपनी बनाई। यह देश की पहली कंपनी थी। इसके अलावा वह अभिनेताओं के साथ टेक्नीशियनों को भी ट्रेनिंग देने लगे।

भारत सरकार ने सम्मान में शुरू किया फाल्के साहेब अवॉर्ड

बिजनेसमैन से संबंध खराब होने पर 1920 में उन्होंने हिंदुस्तान फिल्म्स से इस्तीफा देने के साथ सिनेमा जगत से भी रिटायरमेंट लेने की घोषणा कर दी। राजा हरिश्चंद्र से शुरू हुआ फाल्के का करिअर 19 सालों तक चला। इस दौरान उन्होंने 26 शॉर्ट फिल्में और 95 फिल्में बनाईं। वहीं दादा साहेब ने आखिरी फिल्म सेतुबंधन बनाई। बता दें कि यह मूक फिल्म थी। साल 1969 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड शुरू कर दिया। यह प्रतिष्ठित सम्मान सबसे पहले देविका रानी चौधरी को मिला। दादा साहेब फाल्के के सम्मान में भारतीय डाक ने एक डाक टिकट भी जारी किया। जिस पर उनका चित्र था।

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