Mahadevi Varma Birth Anniversary: छायावादी युग की महान कवियत्री थीं महादेवी वर्मा, बनना चाहती थी बौद्ध भिक्षुणी

Mahadevi Varma
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आज ही के दिन यानी की 26 मार्च को कवियत्री महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था। हिंदी साहित्य में निराला, प्रसाद और पंत के साथ साथ महादेवी वर्मा को छायावाद युग का एक महान स्तंभ माना जाता है। महादेवी वर्मा को प्यार से 'आधुनिक युग की मीरा' कहा जाता है।

हिंदी कवियत्री महादेवी वर्मा सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि हिंदी साहित्य की वह रोशनी थीं, जिसने अपनी कविताओं से असंख्य दिलों को छुआ था। महादेवी वर्मा को प्यार से 'आधुनिक युग की मीरा' कहा जाता है। क्योंकि महादेवी वर्मा की कविताओं में पीड़ा, प्रेम और आध्यात्मिकता की वही गहराई झलकती है, जोकि मीरा की भक्ति में थी। आज ही के दिन यानी की 26 मार्च को कवियत्री महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था। हिंदी साहित्य में निराला, प्रसाद और पंत के साथ साथ महादेवी वर्मा को छायावाद युग का एक महान स्तंभ माना जाता है। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर महादेवी वर्मा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में 26 मार्च 1907 को महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम गोविंद प्रसाद वर्मा था, जोकि एक प्रगतिशील विचारधारा के थे और मां का नाम हेमरानी देवी था। जोकि काफी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। ऐसे में उनका बचपन साहित्य और संस्कारों की छांव में बीता था। इसलिए महादेवी वर्मा के मन में बचपन से ही शब्दों की महक बस गई थी। उन्होंने इंदौर के मिशन स्कूल से पढ़ाई की और यहां पर उन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत, संगीत और चित्रकला सीखी। लेकिन महादेवी वर्मा के मन को साहित्य का संसार सबसे ज्यादा भाया।

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छायावाद की आत्मा

बता दें कि महादेवी छायावादी युग की उन स्तंभों में शामिल थीं, जिन्होंने हिंदी कविता को नई आत्मा दी थी। उनके शब्द सिर्फ भावनाओं की अभिव्यक्ति तक ही नहीं बल्कि वेदना, प्रेम और विरह का स्पंदन था। महादेवी वर्मा की रचनाएं सिर्फ प्रेम और पीड़ा तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने स्त्री स्वाधीनता और आध्यात्मिकता को भी अपने लेखन में उतारा था। महादेवी वर्मा ने अपने समय की महिलाओं की स्थिति पर भी गंभीरता से लिखा था।

जीवनभर पहने सफेद वस्त्र

महादेवी वर्मा महात्मा बुद्ध के विचारों से काफी ज्यादा प्रभावित थीं। उनका मानना था कि जीवन दुख का मूल है। वहीं यह उनकी कविताओं में भी बार-बार दिखाई देता है। हालांकि उनकी जिंदगी में एक ऐसा भी आया, जब उन्होंने घर-गृहस्थी छोड़ संन्यासी बनने का मन बना लिया था। लेकिन तभी उनकी मुलाकात गांधीजी से हुई और उन्होंने महादेवी को साहित्य साधना जारी रखने की सलाह दी। उनकी सलाह मानकर वह रुकी और हिंदी साहित्य को अपनी रचनाओं से समृद्ध किया। साल 1966 में पति के निधन के बाद वह स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं। महादेवी वर्मा ने जीवनभर सफेद साड़ी पहनी और तख्त पर सोईं। इसके साथ ही उन्होंने शीशा नहीं देखा था।

मृत्यु

वहीं 11 सितंबर 1987 को महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद में अंतिम सांस ली। वहीं साहित्य प्रेमियों के दिलों में आज भी उनके शब्द और संवेदनाएं जीवित हैं।

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