M Karunanidhi Birth Anniversary: दक्षिण भारत की राजनीति में 'अजेय' थे एम करुणानिधि, कभी नहीं चखा हार का स्वाद

M Karunanidhi
ANI

थिरुक्कुवालाई गांव में 03 जून 1924 को जन्मे करुणानिधि के घर को म्यूजियम में बदल दिया गया है। उनकी गिनती कवि, विचारक, एक सफल लेखक और वक्ता के साथ ही भारत के दिग्गज राजनेताओं में की जाती है। उनकी पर्सनल जिंदगी भी काफी दिलचस्प रही।

दक्षिण भारत की राजनीति के केंद्र रहे एम करुणानिधि का 03 जून को जन्म हुआ था। भले ही आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वह दक्षिण भारतीय राजनीति के एक मजबूत शख्सियत माने जाते थे। उनका पूरा नाम मुत्तुवेल करुणानिधि है। बता दें कि करुणानिधि 5 बार तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। डीएमके के संस्थापक सी.एन.अन्नादुरई की मौत के बाद करुणानिधि ने पार्टी को संभाला था। राजनीति में एंट्री लेने से पहले वह सिनेमा जगत का हिस्सा हुआ करते थे। वह तमिल सिनेमा जगत के एक नाटककार और पटकथा लेखक थे। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर एम करुणानिधि के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म

थिरुक्कुवालाई गांव में 03 जून 1924 को जन्मे करुणानिधि के घर को म्यूजियम में बदल दिया गया है। उनकी गिनती कवि, विचारक, एक सफल लेखक और वक्ता के साथ ही भारत के दिग्गज राजनेताओं में की जाती है। उनकी पर्सनल जिंदगी भी काफी दिलचस्प रही। बता दें कि करुणानिधि ने तीन शादियां की थीं। इनकी पत्नी का नाम पद्मावती, दयालु अम्मल और रजती अम्मल था। पद्मावती की बीमारी के बाद मौत हो गई, जिसके बाद उन्होंने दो और शादियां की।

इसे भी पढ़ें: George Fernandes Birth Anniversary: तमाम संघर्षों के बाद भी इमरजेंसी में 'हीरो' बनकर उभरे थे जॉर्ज फर्नांडिस

करुणानिधि की जिंदगी के कुछ पन्नों को पलटे तो ऐसा लगता है कि हीरो की कहानी लिखते-लिखते वह खुद दक्षिण के हीरो बन गए। वह एक करिश्माई व्यक्तित्व वाले शख्स थे। उनकी इस छवि के कारण ही राज्य में न सिर्फ पार्टी सत्ता में आई बल्कि वह 5 बार राज्य के सीएम और 13 बार विधायक बनें। आप उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि करुणानिधि ने चुनाव में कभी भी हार का स्वाद नहीं चखा। 

सियासी सफर

करुणानिधि महज 14 साल की उम्र में पढ़ाई-लिखाई छोड़कर राजनीतिक सफर पर निकल चुके। हिंदी विरोध पर मुखर होते दक्षिण भारत में करुणानिधि 'हिंदी हटाओ आंदोलन' की तख्ती हाथ में थाम ली। साल 1937 में स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने पर बड़ी संख्या में युवाओं ने इसका विरोध किया था। करुणानिधि भी इस विरोध का हिस्सा थे। जिसके बाद उन्होंने तमिल भाषा को अपना हथियार बनाया।

करुणानिधि की बेहतरीन भाषण शैली को देखते हुए अन्नादुराई और पेरियार ने उन्हें 'कुदियारासु' का संपादन बना दिया। हालांकि अन्नादुराई और पेरियार के बीच पैदा हुए मतभेद हुए। जिसके बाद दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। वहीं करुणानिधि अन्नादुराई के साथ जुड़ गए। साल 1957 में हुए चुनावों में करुणानिधि पहली बार विधायक बने। उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में जमकर मेहनत की और साल 1967 के चुनावों में पार्टी ने बहुमत हासिल की। 

तमिलनाडु में अन्नादुराई पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनें। जब करुणानिधि साल 1957 में पहली बार विधायक बने थे, तो केंद्र में पीएम के तौर पर जवाहरलाल नेहरु विराजमान थे। वहीं जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बनें, तो पीएम इंदिरा गांधी थीं। 

DMK में पड़ी फूट

राज्य की राजनीति में एक समय ऐसा भी आया, जब डीएमके में फूट पड़ गई। पार्टी दो भागों में विभाजित हो गई। पार्टी के विभाजन के बाद साल 1972 में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कणगम यानी की AIADMK का जन्म हुआ। वर्तमान समय में करुणानिधि के बेटे एमके स्टालिन तमिलनाडु की प्रमुख पार्टी डीएमके के अध्यक्ष हैं।

मृत्यु

दक्षिण की राजनीति के पितामह और 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि का 07 अगस्त 2018 को 94 साल की उम्र में निधन हो गया। वह भारतीय राजनीति में बेहद अलग स्थान रखते हैं। करुणानिधि द्वारा हर चुनाव जीतने का रिकॉर्ड पूरी राजनीति में किसी के पास नहीं है।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़