George Fernandes Birth Anniversary: तमाम संघर्षों के बाद भी इमरजेंसी में 'हीरो' बनकर उभरे थे जॉर्ज फर्नांडिस
कर्नाटक के मंगलौर के एक कैथोलिक परिवार में 03 जून 1930 को जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा मंगलौर से पूरी की। इसके बाद साल 1971 में पूर्व केंद्रीय मंत्री हुमायूं कबीर की बेटी लैला कबीर से जॉर्ज की शादी हुई।
आज ही के दिन यानी की 03 जून को देश के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म हुआ था। जॉर्ज ने अन्य नेताओं से अलग हटकर अपनी पहचान गढ़ी थी। हालांकि उनके संघर्षों की फेहरिस्त भी काफी लंबी है। उन्होंने कभी सियासत में समझौता नहीं किया और एक खास शैली में अपनी सियासी पारी को पूरा किए। जॉर्ज आजीवन समाजवादी विचारधारा के प्रबल हिमायती बने रहे और उन्होंने हमेशा से हाशिए पर रहे लोगों की आवाज को बुलंद करने का काम किया। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर जॉर्ज फर्नांडिस के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
कर्नाटक के मंगलौर के एक कैथोलिक परिवार में 03 जून 1930 को जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा मंगलौर से पूरी की। इसके बाद साल 1971 में पूर्व केंद्रीय मंत्री हुमायूं कबीर की बेटी लैला कबीर से जॉर्ज की शादी हुई। वह अंग्रेजी, उर्दू, मराठी, हिंदी, कोंकणी, कन्नड़, तमिल और मलयाली भाषा के अच्छे जानकार थे।
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राजनीति में एंट्री
जॉर्ज फर्नांडिस ने एक मजदूर नेता के तौर पर अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। करीब 5 दशक तक सक्रिय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जॉर्ज ने एक बार राज्यसभा और 9 बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया था। मजदूर नेता के रूप में सियासी सफर शुरू करने वाले जॉर्ज ने एक सफल केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय किया।
संघर्ष की अनकही दास्तां
जॉर्ज का पूरा जीवन संघर्ष की अनकही दास्तां हैं। राजनीति में बुलंदी हासिल करने वाले जॉर्ज के हिस्से में भी संघर्ष रहा। बता दें कि साल 1974 में हुई रेलवे की सबसे बड़ी स्ट्राइक में सबसे ज्यादा चर्चित नाम फर्नांडिस रहा। वह उन चुनिंदा लोगों में शुमार थे, जो इंदिरा गांधी के विरोधी थे। आपातकाल के दौरान जब पूरे देश में जेपी आंदोलन अपने चरम पर था, तब जॉर्ज भी इस मुहिम का हिस्सा थे। वहीं विरोध करने वाले नेताओं को सरकार जेल में डाल रही थी। जिसके चलते कई नेता अंडरग्राउंड हो चुके थे। उस दौरान विरोध की आवाज को दबाने और नेताओं को जेल में डालने के लिए बड़ौदा डायनामाइट का सहारा लिया गया।
राजद्रोह का आरोप
दरअसल, इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाने वाले नेताओं के खिलाफ क्रिमिनल केस लगाया जा रहा था। इसमें कई विपक्ष के नेता शामिल थे। जॉर्ज फर्नांडिस के साथ 24 दूसरे नेताओं पर आरोप लगाया गया था कि आपातकाल के खिलाफ सरकारी संस्थानों और रेल ट्रैक को उड़ाने के लिए उन्होंने डायनामाइट की तस्करी की। इसके अलावा जॉर्ज पर सरकार को उखाड़ फेंकने व विद्रोह करने का भी आरोप लगा। इन्हीं आरोपों के चलते साल 1976 में जॉर्ज फर्नांडिस को तिहाड़ जेल में कैद कर दिया गया।
जेल से लड़ा चुनाव
बता दें कि जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए साल 1977 में मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा था। हालांकि इस पूरे चुनाव में वह इस क्षेत्र में नहीं जा सके। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने यहां से शानदार जीत हासिल की। इस चुनाव में फर्नांडिस ने हथकड़ी लगी हुई तस्वीर के जरिए प्रचार किया गया था। इमरजेंसी के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो नेताओं पर दर्ज मामलों को वापस ले लिया गया और सभी को रिहा कर दिया गया।
निधन
जहां फर्नांडिस का शुरूआती जीवन काफी ज्यादा चमकीला था, तो वहीं उनका अंत बड़ा धूमिल रहा। तमाम आरोप, बीमारी, संपत्ति विवाद और पारिवारिक कलह के बीच 29 जनवरी 2019 को समाजवादी जननायक जॉर्ज फर्नांडिस ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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