KR Narayan Death Anniversary: देश के पहले दलित राष्ट्रपति थे के आर नारायणन, जानिए क्लास के बाहर क्यों सुनते थे लेक्चर

KR Narayanan
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आज हम आपको एक ऐसे राष्ट्रपति के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने गरीबी की गोद से उठकर राजनीति के शीर्ष पद का सफर तय किया। हम यहां पर देश के पहले दलित राष्ट्रपति कोचेरिल रमन नारायणन के बारे में बात कर रहे हैं।

भारतीय राजनीति में कई ऐसे राजनेता हुए, जिनकी कहानी किसी फेरीटेल से कम नहीं लगती है। बता दें कि आज हम आपको एक ऐसे राष्ट्रपति के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने गरीबी की गोद से उठकर राजनीति के शीर्ष पद का सफर तय किया। हम यहां पर देश के पहले दलित राष्ट्रपति कोचेरिल रमन नारायणन के बारे में बात कर रहे हैं। के आर नारायणन की सफलता की कहानी देश के करोड़ों लोगों के लिए आदर्श का पर्याय है। आज ही के दिन यानी की 9 नवंबर को देश के पहले दलित राष्ट्रपति केआर नारायणन की मौत हो गई थी। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर के आर नारायणन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

केरल के एक छोटे से गांव पेरुमथॉनम उझावूर त्रावणकोर में 27 अक्तूबर 1920 को के आर नारायणन का जन्म हुआ था। हांलाकि इनका जन्म 4 फ़रवरी 1920 को हुआ था। लेकिन स्कूल में दाखिले के समय सही तारीख पता ना होने की वजह से के आर नारायणन ने डेट ऑफ बर्थ 27 अक्टूबर 1920 लिखवा दी। जिसके बाद से इसे ही ऑफिशियल मान लिया गया। के आर नारायणन बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। वह रोजाना 15 किमी पैदल चल कर स्कूल जाया करते थे। वहीं आर्थिक तंगी के चलते कई बार फीस ना चुका पाने पर इन्हें क्लासरूम के बाहर खड़े होकर लेक्चर सुनना पड़ता था। गरीब होने के बावजूद इनके पिता ने शिक्षा को हमेशा प्राथमिकता दी।

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शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने त्रावणकोर विश्वविद्यालय से B.A (hons) एवं M.A English literature में डिग्री प्राप्त की। के आर नारायणन विदेश में जाकर आगे की पढ़ाई करना चाहते थे। लेकिन आर्थिक तंगी होने के कारण ऐसा संभव नहीं था। जिसके बाद उन्होंने जे आर डी टाटा को एक चिठ्ठी लिख कर मदद मांगी। टाटा से मदद मिलने के बाद वे राजनीति विज्ञान की पढ़ाई के लिए लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स चले गए। 

राजनीति में प्रवेश

भारत लौटने के बाद देश की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के कहने पर वह साल 1984 में राजनीति में आ गए। इसके बाद वह लगातार तीन लोकसभा चुनावों में ओट्टापलल (केरल) में कांग्रेस की सीट से विजयी होकर लोकसभा पहुंचे। वहीं साल 1985 में वह राजीव गांधी सरकार के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में सम्मिलित हुए। इस दौरान नारायणन ने विज्ञान, विदेश से जुड़े मामले एवं तकनीकी से जुड़े कार्यों को संभाला। साल 1989 में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर थी तो के आर नारायणन ने विपक्षी सांसद की भूमिका निभाई। लेकिन जब साल 1991 में कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में वापस लौटी तो इस बाद उन्हें कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया।

आपको बता दें कि साल 1992 में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा जी के कार्यकाल में के आर नारायणन को उपराष्ट्रपति बनाया गया। फिर 17 जुलाई 1997 में वह देश के पहले दलित राष्टपति बने। के आर नारायणन ने राष्ट्रपति पद सर्वसम्मति से हासिल किया था। अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उन्होंने गरीबों, दलितों व अल्पसंख्यकों के हित में कई कार्य किए। इसके बाद साल 2002 में के आर नारायणन का कार्यकाल समाप्त हो गया।

मृत्यु

आर्मी रिसर्च एण्ड रैफरल हॉस्पिटल, नई दिल्ली में 9 नवम्बर, 2005 को उनका निधन निमोनिया बीमारी के कारण हो गया था। वहीं दिल्ली में जवाहर लाल नेहरु के शांति वन के बाजु में इनका समाधी स्थल बनाई गई। इसे एकता स्थल भी कहा जाता है।

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