JP Narayan Death Anniversary: राजनीति की दिशा बदलने में सक्षम थे जेपी नारायण, आज के दिन हो गया था निधन

JP Narayan
Prabhasakshi

बंगाल प्रेसिडेंसी के सारण जिले के सिताबदियारा गांव में 11 अक्टूबर 1911 को हुआ था। उनमें बचपन से ही आत्मनिर्भर बनने की लालसा थी। 9 साल की उम्र में जेपी नारायण ने शिक्षा के लिए अपना घर और गांव दोनों छोड़ दिए।

भारत में गांधीवादी तो बहुत से लोग हुए और कई लोगों ने तो आदर्शों के नई मिसालें तक पेश की। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कोई ऐसा भी व्यक्ति हो सकता है, जो महात्मा गांधी की विचारधार से इत्तेफाक रखता हो, लेकिन उस व्यक्ति ने अपने जीवन में एक अलग रास्ता चुना था। इस व्यक्ति ने अपनी एक अलग राजनैतिक पहचान बनाई थी। बता दें कि हम यहां पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण की बात कर रहे हैं। जे.पी नारायण ऐसे शख्स थे, जो कभी गांधीवादी तो नहीं कहलाए। लेकिन वह, उनकी विचारधारा और उनका आचरण गांधी जी के आदर्शों से प्रभावित था। आज ही के दिन यानी की 8 अक्टूबर को जेपी नारायण का निधन हो गया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर जेपी नारायण के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

बंगाल प्रेसिडेंसी के सारण जिले के सिताबदियारा गांव में 11 अक्टूबर 1911 को हुआ था। उनमें बचपन से ही आत्मनिर्भर बनने की लालसा थी। 9 साल की उम्र में जेपी नारायण ने शिक्षा के लिए अपना घर और गांव दोनों छोड़ दिए। इस दौरान उन्होंने पटना आकर कॉलेजियट स्कूल में 7वीं क्लास एडमिशन लिया। वह स्कूल के जिस हॉस्टल में रहते थे, वहां से बिहार के कई राजनेता निकले थे। असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने बिहार नेशनल कॉलेज छोड़ दिया। जब जेपी ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया तो उनकी परीक्षा में सिर्फ 20 दिन का समय बाकी थी। 

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हांलाकि उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी। वहीं पैसे की तंगी होने की वजह से वह 20 साल की उम्र में कार्गो जहाज पर अमेरिका पढ़ाई के लिए चले गए। इसके बाद जेपी अपनी पत्नी को साबरमती आश्रम में छोड़कर कैलिफोर्नियां पहुंचे। वहां पर उन्होंने बर्केले में एडमिशन लिया। वहीं पढ़ाई के लिए जेपी नारायण ने कई काम जैसे गैराज में मैकेनिक, लोशन बेचना, बर्तन धोना और शिक्षण आदि का काम किया।

मार्कवादी समाजवाद का प्रभाव

महात्मा गांधी के सर्वोदय, अहिंसा आदि विचारों से जेपी काफी ज्यादा प्रभावित थे। लेकिन उस दौरान उनको अमेरिका में पढ़ाई के दौरान कामगारों और मजदूर की समस्याओं व परेशानियों को काफी करीब से जानने का मौका मिला। इस दौरान उन पर कार्लमार्क्स के समाजवाद और रूसी क्रांति से काफी प्रभावित थे, लेकिन उन पर गांधी जी का काफी प्रभाव था। साल 1929 में वह भारत वापस आ गए और फिर कांग्रेस में शामिल हो गए।

कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी

साल 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेपी नारायण को जेल यात्रा भी करनी पड़ी। इसके बाद जेपी ने समाजवादी सोच रखने वाले कई कांग्रेसी साथियों को जोड़कर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाई। लेकिन स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर गांधीवादी रहे। जिसके बाद फिर वह कभी भी गांधी जी के खिलाफ नहीं जा सके। वहीं भारत छोड़ो आंदोलन में भी जेपी ने बहुत योगदान दिया। आजादी के बाद जेपी का गांधीवादी खुल कर सामने आया।

जेपी ने अहिंसा को दिया महत्व

जयप्रकाश नारायण ने भूदान और ग्रामदान जैसे आंदोलन के जरिए समाजिक पुनर्निर्माण के प्रयासों में अहिंसा को काफी महत्व दिया था। साल 1975 से 1977 के बीच उन्होंने आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में अहिंसा पर काफी जोर दिया था। वहीं जेपी नारायण ने 8 अक्टूबर 1979 को इस दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दिया था।

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