Guru Gobind Singh Death Anniversary: धर्म की रक्षा के लिए शहीद हुए थे गुरु गोबिंद सिंह, मुगलों के सामने नहीं झुकाया सिर
सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी का आज ही के दिन यानी की 7 अक्टूबर को शहीद हो गए थे। उन्होंने कभी भी मुगलों के जुल्म के आगे घुटने नहीं टेके। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी का आज ही के दिन यानी की 7 अक्टूबर को शहीद हो गए थे। उन्होंने कभी भी मुगलों के जुल्म के आगे घुटने नहीं टेके। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। वाहे गुरु जी की फतेह और सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, वाहे गुरु जी का खालसा, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं जैसे वाक्य गोबिंद सिंह की वीरता को बयां करते हैं। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु गोबिंद सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म
पटना के साहिब में 22 दिसंबर 1666 को नौवें सिख गुरु के घर गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था। बचपन में उनका नाम गोविंद राय था। वहीं साल 1670 में उनका परिवार पंजाब में आकर रहने लगा। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता भी थे। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना साल 1699 में बैसाखी के दिन की थी। यह दिन सिखों के इतिहास का सबसे अहम दिन माना जाता है। बताया जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए गुजारा।
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गुरु गोबिंद जी का विवाह
सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह की तीन शादियां हुई थीं। उनका पहला विवाह आनंदपुर के पास स्थित बसंतगढ़ में रहने वाली एक कन्या के साथ हुआ। जिससे उन्हें जोरावर सिंह, फतेह सिंह और जुझार सिंह नाम की तीन संताने हुईं। इसके बाद उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी से हुआ। जिससे उनको अजित सिंह नामक पुत्र हुआ। वहीं उन्होंने तीसरी शादी माता साहिब से की। बता दें कि तीसरी शादी से उन्हें कोई संतान नहीं थी।
गुरु गोबिंद सिंह जी के कार्य
सिखों के नाम के आगे सिंह लगाने की परंपरा गुरु गोबिंद साहब जी ने ही शुरू की थी। जिसे आज भी सिखों द्वारा चलाया जा रहा है। उन्होंने कई बड़े सिख गुरुओं के महान उपदेशों को सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित किया। गुरुओं के उत्तराधिकारियों की परंपरा को भी खत्म करने का श्रेय गुरु गोबिंद सिंह जी को जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब को सिख धर्म के लोगों के लिए सबसे पवित्र एवं गुरु का प्रतीक बनाया।
खालसा पंथ की स्थापना
सिख धर्म के 10वें गुरु गोबिंद जी ने मुगल बादशाहों के खिलाफ विरोध करने के लिए साल 1669 में खालसा पंथ की स्थापना की थी।
गुरु गोबिन्द सिंह जी के महान विचारों द्वारा सिख साहित्य में 'चंडी दीवार' नामक रचना खास महत्व रखती है।
अपने सिख अनुयायियों के साथ मिलकर गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों के खिलाफ कई बड़ी लड़ाईयां लड़ीं।
इतिहासकारों की मानें तो उन्होंने अपने जीवन में 14 युद्ध लड़े थे।
इस दौरान गुरु गोबिंद सिंह जी ने ना सिर्फ अपने परिवार के सदस्यों को खोया बल्कि कुछ बहादुर सिख सैनिकों को भी खोना पड़ा। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी।
गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु
मुगल शासक औरंगजेब की मौत के बाद उसके बेटे बहादुर शाह को उत्तराधिकारी बनाया गया था। गुरु गोबिंद जी ने बहादुर शाह को बादशाह बनाने में मदद की थी। जिस कारण उन दोनों लोगों के बीच काफी अच्छे संबंध थे। लेकिन गुरु गोविंद सिंह और बहादुर शाह की दोस्ती को सरहद के नवाब वजीद खां नापसंद करते थे। इसलिए नवाब वजीद खां ने दो पठानों से गुरु गोबिंद जी की हत्या करने की साजिश रची। वहीं महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी ने 7 अक्टूबर 1708 में आखिरी सांस ली।
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